Joshua (24/24)    

1. फिर यशूअ ने इस्राईल के तमाम क़बीलों को सिकम शहर में जमा किया। उस ने इस्राईल के बुज़ुर्गों, सरदारों, क़ाज़ियों और निगहबानों को बुलाया, और वह मिल कर अल्लाह के हुज़ूर हाज़िर हुए।
2. फिर यशूअ इस्राईली क़ौम से मुख़ातिब हुआ। “रब्ब इस्राईल का ख़ुदा फ़रमाता है, ‘क़दीम ज़माने में तुम्हारे बापदादा दरया-ए-फ़ुरात के पार बसते और दीगर माबूदों की पूजा करते थे। इब्राहीम और नहूर का बाप तारह भी वहाँ आबाद था।
3. लेकिन मैं तुम्हारे बाप इब्राहीम को वहाँ से ले कर यहाँ लाया और उसे पूरे मुल्क-ए-कनआन में से गुज़रने दिया। मैं ने उसे बहुत औलाद दी। मैं ने उसे इस्हाक़ दिया
4. और इस्हाक़ को याक़ूब और एसौ। एसौ को मैं ने पहाड़ी इलाक़ा सईर अता किया, लेकिन याक़ूब अपने बेटों के साथ मिस्र चला गया।
5. बाद में मैं ने मूसा और हारून को मिस्र भेज दिया और मुल्क पर बड़ी मुसीबतें नाज़िल करके तुम्हें वहाँ से निकाल लाया।
6. चलते चलते तुम्हारे बापदादा बहर-ए-क़ुल्ज़ुम पहुँच गए। लेकिन मिस्री अपने रथों और घुड़सवारों से उन का ताक़्क़ुब करने लगे।
7. तुम्हारे बापदादा ने मदद के लिए रब्ब को पुकारा, और मैं ने उन के और मिस्रियों के दर्मियान अंधेरा पैदा किया। मैं समुन्दर उन पर चढ़ा लाया, और वह उस में ग़र्क़ हो गए। तुम्हारे बापदादा ने अपनी ही आँखों से देखा कि मैं ने मिस्रियों के साथ क्या कुछ किया। तुम बड़े अर्से तक रेगिस्तान में घूमते फिरे।
8. आख़िरकार मैं ने तुम्हें उन अमोरियों के मुल्क में पहुँचाया जो दरया-ए-यर्दन के मशरिक़ में आबाद थे। गो उन्हों ने तुम से जंग की, लेकिन मैं ने उन्हें तुम्हारे हाथ में कर दिया। तुम्हारे आगे आगे चल कर मैं ने उन्हें नेस्त-ओ-नाबूद कर दिया, इस लिए तुम उन के मुल्क पर क़ब्ज़ा कर सके।
9. मोआब के बादशाह बलक़ बिन सफ़ोर ने भी इस्राईल के साथ जंग छेड़ी। इस मक़्सद के तहत उस ने बलआम बिन बओर को बुलाया ताकि वह तुम पर लानत भेजे।
10. लेकिन मैं बलआम की बात मानने के लिए तय्यार नहीं था बल्कि वह तुम्हें बर्कत देने पर मज्बूर हुआ। यूँ मैं ने तुम्हें उस के हाथ से मह्फ़ूज़ रखा।
11. फिर तुम दरया-ए-यर्दन को पार करके यरीहू के पास पहुँच गए। इस शहर के बाशिन्दे और अमोरी, फ़रिज़्ज़ी, कनआनी, हित्ती, जिर्जासी, हिव्वी और यबूसी तुम्हारे ख़िलाफ़ लड़ते रहे, लेकिन मैं ने उन्हें तुम्हारे क़ब्ज़े में कर दिया।
12. मैं ने तुम्हारे आगे ज़म्बूर भेज दिए जिन्हों ने अमोरियों के दो बादशाहों को मुल्क से निकाल दिया। यह सब कुछ तुम्हारी अपनी तल्वार और कमान से नहीं हुआ बल्कि मेरे ही हाथ से।
13. मैं ने तुम्हें बीज बोने के लिए ज़मीन दी जिसे तय्यार करने के लिए तुम्हें मेहनत न करनी पड़ी। मैं ने तुम्हें शहर दिए जो तुम्हें तामीर करने न पड़े। उन में रह कर तुम अंगूर और ज़ैतून के ऐसे बाग़ों का फल खाते हो जो तुम ने नहीं लगाए थे’।”
14. यशूअ ने बात जारी रखते हुए कहा, “चुनाँचे रब्ब का ख़ौफ़ मानें और पूरी वफ़ादारी के साथ उस की ख़िदमत करें। उन बुतों को निकाल फैंकें जिन की पूजा आप के बापदादा दरया-ए-फ़ुरात के पार और मिस्र में करते रहे। अब रब्ब ही की ख़िदमत करें!
15. लेकिन अगर रब्ब की ख़िदमत करना आप को बुरा लगे तो आज ही फ़ैसला करें कि किस की ख़िदमत करेंगे, उन देवताओं की जिन की पूजा आप के बापदादा ने दरया-ए-फ़ुरात के पार की या अमोरियों के देवताओं की जिन के मुल्क में आप रह रहे हैं। लेकिन जहाँ तक मेरा और मेरे ख़ान्दान का ताल्लुक़ है हम रब्ब ही की ख़िदमत करेंगे।”
16. अवाम ने जवाब दिया, “ऐसा कभी न हो कि हम रब्ब को तर्क करके दीगर माबूदों की पूजा करें।
17. रब्ब हमारा ख़ुदा ही हमारे बापदादा को मिस्र की ग़ुलामी से निकाल लाया और हमारी आँखों के सामने ऐसे अज़ीम निशान पेश किए। जब हमें बहुत क़ौमों में से गुज़रना पड़ा तो उसी ने हर वक़्त हमारी हिफ़ाज़त की।
18. और रब्ब ही ने हमारे आगे आगे चल कर इस मुल्क में आबाद अमोरियों और बाक़ी क़ौमों को निकाल दिया। हम भी उसी की ख़िदमत करेंगे, क्यूँकि वही हमारा ख़ुदा है!”
19. यह सुन कर यशूअ ने कहा, “आप रब्ब की ख़िदमत कर ही नहीं सकते, क्यूँकि वह क़ुद्दूस और ग़यूर ख़ुदा है। वह आप की सरकशी और गुनाहों को मुआफ़ नहीं करेगा।
20. बेशक वह आप पर मेहरबानी करता रहा है, लेकिन अगर आप रब्ब को तर्क करके अजनबी माबूदों की पूजा करें तो वह आप के ख़िलाफ़ हो कर आप पर बलाएँ लाएगा और आप को नेस्त-ओ-नाबूद कर देगा।”
21. लेकिन इस्राईलियों ने इस्रार किया, “जी नहीं, हम रब्ब की ख़िदमत करेंगे!”
22. फिर यशूअ ने कहा, “आप ख़ुद इस के गवाह हैं कि आप ने रब्ब की ख़िदमत करने का फ़ैसला कर लिया है।” उन्हों ने जवाब दिया, “जी हाँ, हम इस के गवाह हैं!”
23. यशूअ ने कहा, “तो फिर अपने दर्मियान मौजूद बुतों को तबाह कर दें और अपने दिलों को रब्ब इस्राईल के ख़ुदा के ताबे रखें।”
24. अवाम ने यशूअ से कहा, “हम रब्ब अपने ख़ुदा की ख़िदमत करेंगे और उसी की सुनेंगे।”
25. उस दिन यशूअ ने इस्राईलियों के लिए रब्ब से अह्द बाँधा। वहाँ सिकम में उस ने उन्हें अह्काम और क़वाइद दे कर
26. अल्लाह की शरीअत की किताब में दर्ज किए। फिर उस ने एक बड़ा पत्थर ले कर उसे उस बलूत के साय में खड़ा किया जो रब्ब के मक़्दिस के पास था।
27. उस ने तमाम लोगों से कहा, “इस पत्थर को देखें! यह गवाह है, क्यूँकि इस ने सब कुछ सुन लिया है जो रब्ब ने हमें बता दिया है। अगर आप कभी अल्लाह का इन्कार करें तो यह तुम्हारे ख़िलाफ़ गवाही देगा।”
28. फिर यशूअ ने इस्राईलियों को फ़ारिग़ कर दिया, और हर एक अपने अपने क़बाइली इलाक़े में चला गया।
29. कुछ देर के बाद रब्ब का ख़ादिम यशूअ बिन नून फ़ौत हुआ। उस की उम्र 110 साल थी।
30. उसे उस की मौरूसी ज़मीन में दफ़नाया गया, यानी तिम्नत-सिरह में जो इफ़्राईम के पहाड़ी इलाक़े में जास पहाड़ के शिमाल में है।
31. जब तक यशूअ और वह बुज़ुर्ग ज़िन्दा रहे जिन्हों ने अपनी आँखों से सब कुछ देखा था जो रब्ब ने इस्राईल के लिए किया था उस वक़्त तक इस्राईल रब्ब का वफ़ादार रहा।
32. मिस्र को छोड़ते वक़्त इस्राईली यूसुफ़ की हड्डियाँ अपने साथ लाए थे। अब उन्हों ने उन्हें सिकम शहर की उस ज़मीन में दफ़न कर दिया जो याक़ूब ने सिकम के बाप हमोर की औलाद से चाँदी के सौ सिक्कों के बदले ख़रीद ली थी। यह ज़मीन यूसुफ़ की औलाद की विरासत में आ गई थी।
33. इलीअज़र बिन हारून भी फ़ौत हुआ। उसे जिबिआ में दफ़नाया गया। इफ़्राईम के पहाड़ी इलाक़े का यह शहर उस के बेटे फ़ीन्हास को दिया गया था।

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