Joshua (17/24)  

1. यूसुफ़ के पहलौठे मनस्सी की औलाद को दो इलाक़े मिल गए। दरया-ए-यर्दन के मशरिक़ में मकीर के घराने को जिलिआद और बसन दिए गए। मकीर मनस्सी का पहलौठा और जिलिआद का बाप था, और उस की औलाद माहिर फ़ौजी थी।
2. अब क़ुरआ डालने से दरया-ए-यर्दन के मग़रिब में वह इलाक़ा मुक़र्रर किया गया जहाँ मनस्सी के बाक़ी बेटों की औलाद को आबाद होना था। इन के छः कुंबे थे जिन के नाम अबीअज़र, ख़लक़, अस्रीएल, सिकम, हिफ़र और समीदा थे।
3. सिलाफ़िहाद बिन हिफ़र बिन जिलिआद बिन मकीर बिन मनस्सी के बेटे नहीं थे बल्कि सिर्फ़ बेटियाँ। उन के नाम महलाह, नूआह, हुज्लाह, मिल्काह और तिर्ज़ा थे।
4. यह ख़वातीन इलीअज़र इमाम, यशूअ बिन नून और क़ौम के बुज़ुर्गों के पास आईं और कहने लगीं, “रब्ब ने मूसा को हुक्म दिया था कि वह हमें भी क़बाइली इलाक़े का कोई हिस्सा दे।” यशूअ ने रब्ब का हुक्म मान कर न सिर्फ़ मनस्सी की नरीना औलाद को ज़मीन दी बल्कि उन्हें भी।
5. नतीजे में मनस्सी के क़बीले को दरया-ए-यर्दन के मग़रिब में ज़मीन के दस हिस्से मिल गए और मशरिक़ में जिलिआद और बसन।
6. मग़रिब में न सिर्फ़ मनस्सी की नरीना औलाद के ख़ान्दानों को ज़मीन मिली बल्कि बेटियों के ख़ान्दानों को भी। इस के बरअक्स मशरिक़ में जिलिआद की ज़मीन सिर्फ़ नरीना औलाद में तक़्सीम की गई।
7. मनस्सी के क़बीले के इलाक़े की सरहद्द आशर से शुरू हुई और सिकम के मशरिक़ में वाक़े मिक्मताह से हो कर जुनूब की तरफ़ चलती हुई ऐन-तफ़्फ़ूअह की आबादी तक पहुँची।
8. तफ़्फ़ूअह के गिर्द-ओ-नवाह की ज़मीन इफ़्राईम की मिल्कियत थी, लेकिन मनस्सी की सरहद्द पर के यह शहर मनस्सी की अपनी मिल्कियत थे।
9. वहाँ से सरहद्द क़ाना नदी के जुनूबी किनारे तक उतरी। फिर नदी के साथ चलती चलती वह समुन्दर पर ख़त्म हुई। नदी के जुनूबी किनारे पर कुछ शहर इफ़्राईम की मिल्कियत थे अगरचि वह मनस्सी के इलाक़े में थे।
10. लेकिन मज्मूई तौर पर मनस्सी का क़बाइली इलाक़ा क़ाना नदी के शिमाल में था और इफ़्राईम का इलाक़ा उस के जुनूब में। दोनों क़बीलों का इलाक़ा मग़रिब में समुन्दर पर ख़त्म हुआ। मनस्सी के इलाक़े के शिमाल में आशर का क़बाइली इलाक़ा था और मशरिक़ में इश्कार का।
11. आशर और इश्कार के इलाक़ों के दर्ज-ए-ज़ैल शहर मनस्सी की मिल्कियत थे : बैत-शान, इब्लीआम, दोर यानी नाफ़त-दोर, ऐन-दोर, तानक और मजिद्दो उन के गिर्द-ओ-नवाह की आबादियों समेत।
12. लेकिन मनस्सी का क़बीला वहाँ के कनआनियों को निकाल न सका बल्कि वह वहाँ बसते रहे।
13. बाद में भी जब इस्राईल की ताक़त बढ़ गई तो कनआनियों को निकाला न गया बल्कि उन्हें बेगार में काम करना पड़ा।
14. यूसुफ़ के क़बीले इफ़्राईम और मनस्सी दरया-ए-यर्दन के मग़रिब में ज़मीन पाने के बाद यशूअ के पास आए और कहने लगे, “आप ने हमारे लिए क़ुरआ डाल कर ज़मीन का सिर्फ़ एक हिस्सा क्यूँ मुक़र्रर किया? हम तो बहुत ज़ियादा लोग हैं, क्यूँकि रब्ब ने हमें बर्कत दे कर बड़ी क़ौम बनाया है।”
15. यशूअ ने जवाब दिया, “अगर आप इतने ज़ियादा हैं और आप के लिए इफ़्राईम का पहाड़ी इलाक़ा काफ़ी नहीं है तो फिर फ़रिज़्ज़ियों और रफ़ाइयों के पहाड़ी जंगलों में जाएँ और उन्हें काट कर काश्त के क़ाबिल बना लें।”
16. यूसुफ़ के क़बीलों ने कहा, “पहाड़ी इलाक़ा हमारे लिए काफ़ी नहीं है, और मैदानी इलाक़े में आबाद कनआनियों के पास लोहे के रथ हैं, उन के पास भी जो वादी-ए-यज़्रएल में हैं और उन के पास भी जो बैत-शान और उस के गिर्द-ओ-नवाह की आबादियों में रहते हैं।”
17. लेकिन यशूअ ने जवाब में कहा, “आप इतनी बड़ी और ताक़तवर क़ौम हैं कि आप का इलाक़ा एक ही हिस्से पर मह्दूद नहीं रहेगा
18. बल्कि जंगल का पहाड़ी इलाक़ा भी आप की मिल्कियत में आएगा। उस के जंगलों को काट कर काश्त के क़ाबिल बना लें तो यह तमाम इलाक़ा आप ही का होगा। आप बाक़ी इलाक़े पर भी क़ब्ज़ा करके कनआनियों को निकाल देंगे अगरचि वह ताक़तवर हैं और उन के पास लोहे के रथ हैं।”

  Joshua (17/24)