| ← Jonah (3/4) → | 
| 1. | रब्ब एक बार फिर यूनुस से हमकलाम हुआ, | 
| 2. | “बड़े शहर नीनवा जा कर उसे वह पैग़ाम सुना दे जो मैं तुझे दूँगा।” | 
| 3. | इस मर्तबा यूनुस रब्ब की सुन कर नीनवा के लिए रवाना हुआ। रब्ब के नज़्दीक नीनवा अहम शहर था। उस में से गुज़रने के लिए तीन दिन दरकार थे। | 
| 4. | पहले दिन यूनुस शहर में दाख़िल हुआ और चलते चलते लोगों को पैग़ाम सुनाने लगा, “ऐन 40 दिन के बाद नीनवा तबाह हो जाएगा।” | 
| 5. | यह सुन कर नीनवा के बाशिन्दे अल्लाह पर ईमान लाए। उन्हों ने रोज़े का एलान किया, और छोटे से ले कर बड़े तक सब टाट ओढ़ कर मातम करने लगे। | 
| 6. | जब यूनुस का पैग़ाम नीनवा के बादशाह तक पहुँचा तो उस ने तख़्त पर से उतर कर अपने शाही कपड़ों को उतार दिया और टाट ओढ़ कर ख़ाक में बैठ गया। | 
| 7. | उस ने शहर में एलान किया, “बादशाह और उस के शुरफ़ा का फ़रमान सुनो! किसी को भी खाने या पीने की इजाज़त नहीं। गाय-बैल और भेड़-बक्रियों समेत तमाम जानवर भी इस में शामिल हैं। न उन्हें चरने दो, न पानी पीने दो। | 
| 8. | लाज़िम है कि सब लोग जानवरों समेत टाट ओढ़ लें। हर एक पूरे ज़ोर से अल्लाह से इल्तिजा करे, हर एक अपनी बुरी राहों और अपने ज़ुल्म-ओ-तशद्दुद से बाज़ आए। | 
| 9. | क्या मालूम, शायद अल्लाह पछताए। शायद उस का शदीद ग़ज़ब टल जाए और हम हलाक न हों।” | 
| 10. | जब अल्लाह ने उन का यह रवय्या देखा, कि वह वाक़ई अपनी बुरी राहों से बाज़ आए तो वह पछताया और उन पर वह आफ़त न लाया जिस का एलान उस ने किया था। | 
| ← Jonah (3/4) → |