Jonah (1/4)  

1. रब्ब यूनुस बिन अमित्ती से हमकलाम हुआ,
2. “बड़े शहर नीनवा जा कर उस पर मेरी अदालत का एलान कर, क्यूँकि उन की बुराई मेरे हुज़ूर तक पहुँच गई है।”
3. यूनुस रवाना हुआ, लेकिन मशरिक़ी शहर नीनवा के लिए नहीं बल्कि मग़रिबी शहर तरसीस के लिए। रब्ब के हुज़ूर से फ़रार होने के लिए वह याफ़ा शहर पहुँच गया जहाँ एक बहरी जहाज़ तरसीस को जाने वाला था। सफ़र का किराया अदा करके यूनुस जहाज़ में बैठ गया ताकि रब्ब के हुज़ूर से भाग निकले।
4. लेकिन रब्ब ने समुन्दर पर ज़बरदस्त आँधी भेजी। तूफ़ान इतना शदीद था कि जहाज़ के टुकड़े टुकड़े होने का ख़त्रा था।
5. मल्लाह सहम गए, और हर एक चीख़ता चिल्लाता अपने देवता से इल्तिजा करने लगा। जहाज़ को हल्का करने के लिए उन्हों ने सामान को समुन्दर में फैंक दिया। लेकिन यूनुस जहाज़ के निचले हिस्से में लेट गया था। अब वह गहरी नींद सो रहा था।
6. फिर कप्तान उस के पास आया और कहने लगा, “आप किस तरह सो सकते हैं? उठें, अपने देवता से इल्तिजा करें! शायद वह हम पर ध्यान दे और हम हलाक न हों।”
7. मल्लाह आपस में कहने लगे, “आओ, हम क़ुरआ डाल कर मालूम करें कि कौन हमारी मुसीबत का बाइस है।” उन्हों ने क़ुरआ डाला तो यूनुस का नाम निकला।
8. तब उन्हों ने उस से पूछा, “हमें बताएँ कि यह आफ़त किस के क़ुसूर के बाइस हम पर नाज़िल हुई है? आप क्या करते हैं, कहाँ से आए हैं, किस मुल्क और किस क़ौम से हैं?”
9. यूनुस ने जवाब दिया, “मैं इब्रानी हूँ, और रब्ब का परस्तार हूँ जो आस्मान का ख़ुदा है। समुन्दर और ख़ुश्की दोनों उसी ने बनाए हैं।”
10. यूनुस ने उन्हें यह भी बताया कि मैं रब्ब के हुज़ूर से फ़रार हो रहा हूँ। यह सब कुछ सुन कर दीगर मुसाफ़िरों पर शदीद दह्शत तारी हुई। उन्हों ने कहा, “यह आप ने क्या किया है?”
11. इतने में समुन्दर मज़ीद मुतलातिम होता जा रहा था। चुनाँचे उन्हों ने पूछा, “अब हम आप के साथ क्या करें ताकि समुन्दर थम जाए और हमारा पीछा छोड़ दे?”
12. यूनुस ने जवाब दिया, “मुझे उठा कर समुन्दर में फैंक दें तो वह थम जाएगा। क्यूँकि मैं जानता हूँ कि यह बड़ा तूफ़ान मेरी ही वजह से आप पर टूट पड़ा है।”
13. पहले मल्लाहों ने उस का मश्वरा न माना बल्कि चप्पू मार मार कर साहिल पर पहुँचने की सिरतोड़ कोशिश करते रहे। लेकिन बेफ़ाइदा, समुन्दर पहले की निस्बत कहीं ज़ियादा मुतलातिम हो गया।
14. तब वह बुलन्द आवाज़ से रब्ब से इल्तिजा करने लगे, “ऐ रब्ब, ऐसा न हो कि हम इस आदमी की ज़िन्दगी के सबब से हलाक हो जाएँ। और जब हम उसे समुन्दर में फैंकेंगे तो हमें बेगुनाह आदमी की जान लेने के ज़िम्मादार न ठहरा। क्यूँकि जो कुछ हो रहा है वह तेरी ही मर्ज़ी से हो रहा है।”
15. यह कह कर उन्हों ने यूनुस को उठा कर समुन्दर में फैंक दिया। पानी में गिरते ही समुन्दर ठाठें मारने से बाज़ आ कर थम गया।
16. यह देख कर मुसाफ़िरों पर सख़्त दह्शत छा गई, और उन्हों ने रब्ब को ज़बह की क़ुर्बानी पेश की और मन्नतें मानीं।
17. लेकिन रब्ब ने एक बड़ी मछली को यूनुस के पास भेजा जिस ने उसे निगल लिया। यूनुस तीन दिन और तीन रात मछली के पेट में रहा।

      Jonah (1/4)