John (8/21)  

1. ईसा ख़ुद ज़ैतून के पहाड़ पर चला गया।
2. अगले दिन पौ फटते वक़्त वह दुबारा बैत-उल-मुक़द्दस में आया। वहाँ सब लोग उस के गिर्द जमा हुए और वह बैठ कर उन्हें तालीम देने लगा।
3. इस दौरान शरीअत के उलमा और फ़रीसी एक औरत को ले कर आए जिसे ज़िना करते वक़्त पकड़ा गया था। उसे बीच में खड़ा करके
4. उन्हों ने ईसा से कहा, “उस्ताद, इस औरत को ज़िना करते वक़्त पकड़ा गया है।
5. मूसा ने शरीअत में हमें हुक्म दिया है कि ऐसे लोगों को संगसार करना है। आप क्या कहते हैं?”
6. इस सवाल से वह उसे फंसाना चाहते थे ताकि उस पर इल्ज़ाम लगाने का कोई बहाना उन के हाथ आ जाए। लेकिन ईसा झुक गया और अपनी उंगली से ज़मीन पर लिखने लगा।
7. जब वह उस से जवाब का तक़ाज़ा करते रहे तो वह खड़ा हो कर उन से मुख़ातिब हुआ, “तुम में से जिस ने कभी गुनाह नहीं किया, वह पहला पत्थर मारे।”
8. फिर वह दुबारा झुक कर ज़मीन पर लिखने लगा।
9. यह जवाब सुन कर इल्ज़ाम लगाने वाले यके बाद दीगरे वहाँ से खिसक गए, पहले बुज़ुर्ग, फिर बाक़ी सब। आख़िरकार ईसा और दर्मियान में खड़ी वह औरत अकेले रह गए।
10. फिर उस ने खड़े हो कर कहा, “ऐ औरत, वह सब कहाँ गए? क्या किसी ने तुझ पर फ़त्वा नहीं लगाया?”
11. औरत ने जवाब दिया, “नहीं ख़ुदावन्द।” ईसा ने कहा, “मैं भी तुझ पर फ़त्वा नहीं लगाता। जा, आइन्दा गुनाह न करना।”
12. फिर ईसा दुबारा लोगों से मुख़ातिब हुआ, “दुनिया का नूर मैं हूँ। जो मेरी पैरवी करे वह तारीकी में नहीं चलेगा, क्यूँकि उसे ज़िन्दगी का नूर हासिल होगा।”
13. फ़रीसियों ने एतिराज़ किया, “आप तो अपने बारे में गवाही दे रहे हैं। ऐसी गवाही मोतबर नहीं होती।”
14. ईसा ने जवाब दिया, “अगरचि मैं अपने बारे में ही गवाही दे रहा हूँ तो भी वह मोतबर है। क्यूँकि मैं जानता हूँ कि मैं कहाँ से आया हूँ और कहाँ को जा रहा हूँ। लेकिन तुम को तो मालूम नहीं कि मैं कहाँ से आया हूँ और कहाँ जा रहा हूँ।
15. तुम इन्सानी सोच के मुताबिक़ लोगों का फ़ैसला करते हो, लेकिन मैं किसी का भी फ़ैसला नहीं करता।
16. और अगर फ़ैसला करूँ भी तो मेरा फ़ैसला दुरुस्त है, क्यूँकि मैं अकेला नहीं हूँ। बाप जिस ने मुझे भेजा है मेरे साथ है।
17. तुम्हारी शरीअत में लिखा है कि दो आदमियों की गवाही मोतबर है।
18. मैं ख़ुद अपने बारे में गवाही देता हूँ जबकि दूसरा गवाह बाप है जिस ने मुझे भेजा।”
19. उन्हों ने पूछा, “आप का बाप कहाँ है?” ईसा ने जवाब दिया, “तुम न मुझे जानते हो, न मेरे बाप को। अगर तुम मुझे जानते तो फिर मेरे बाप को भी जानते।”
20. ईसा ने यह बातें उस वक़्त कीं जब वह उस जगह के क़रीब तालीम दे रहा था जहाँ लोग अपना हदिया डालते थे। लेकिन किसी ने उसे गिरिफ़्तार न किया क्यूँकि अभी उस का वक़्त नहीं आया था।
21. एक और बार ईसा उन से मुख़ातिब हुआ, “मैं जा रहा हूँ और तुम मुझे ढूँड ढूँड कर अपने गुनाहों में मर जाओगे। जहाँ मैं जा रहा हूँ वहाँ तुम नहीं पहुँच सकते।”
22. यहूदियों ने पूछा, “क्या वह ख़ुदकुशी करना चाहता है? क्या वह इसी वजह से कहता है, ‘जहाँ मैं जा रहा हूँ वहाँ तुम नहीं पहुँच सकते’?”
23. ईसा ने अपनी बात जारी रखी, “तुम नीचे से हो जबकि मैं ऊपर से हूँ। तुम इस दुनिया के हो जबकि मैं इस दुनिया का नहीं हूँ।
24. मैं तुम को बता चुका हूँ कि तुम अपने गुनाहों में मर जाओगे। क्यूँकि अगर तुम ईमान नहीं लाते कि मैं वही हूँ तो तुम यक़ीनन अपने गुनाहों में मर जाओगे।”
25. उन्हों ने सवाल किया, “आप कौन हैं?” ईसा ने जवाब दिया, “मैं वही हूँ जो मैं शुरू से ही बताता आया हूँ।
26. मैं तुम्हारे बारे में बहुत कुछ कह सकता हूँ। बहुत सी ऐसी बातें हैं जिन की बिना पर मैं तुम को मुज्रिम ठहरा सकता हूँ। लेकिन जिस ने मुझे भेजा है वही सच्चा और मोतबर है और मैं दुनिया को सिर्फ़ वह कुछ सुनाता हूँ जो मैं ने उस से सुना है।”
27. सुनने वाले न समझे कि ईसा बाप का ज़िक्र कर रहा है।
28. चुनाँचे उस ने कहा, “जब तुम इब्न-ए-आदम को ऊँचे पर चढ़ाओगे तब ही तुम जान लोगे कि मैं वही हूँ, कि मैं अपनी तरफ़ से कुछ नहीं करता बल्कि सिर्फ़ वही सुनाता हूँ जो बाप ने मुझे सिखाया है।
29. और जिस ने मुझे भेजा है वह मेरे साथ है। उस ने मुझे अकेला नहीं छोड़ा, क्यूँकि मैं हर वक़्त वही कुछ करता हूँ जो उसे पसन्द आता है।”
30. यह बातें सुन कर बहुत से लोग उस पर ईमान लाए।
31. जो यहूदी उस का यक़ीन करते थे ईसा अब उन से हमकलाम हुआ, “अगर तुम मेरी तालीम के ताबे रहोगे तब ही तुम मेरे सच्चे शागिर्द होगे।
32. फिर तुम सच्चाई को जान लोगे और सच्चाई तुम को आज़ाद कर देगी।”
33. उन्हों ने एतिराज़ किया, “हम तो इब्राहीम की औलाद हैं, हम कभी भी किसी के ग़ुलाम नहीं रहे। फिर आप किस तरह कह सकते हैं कि हम आज़ाद हो जाएँगे?”
34. ईसा ने जवाब दिया, “मैं तुम को सच्च बताता हूँ कि जो भी गुनाह करता है वह गुनाह का ग़ुलाम है।
35. ग़ुलाम तो आरिज़ी तौर पर घर में रहता है, लेकिन मालिक का बेटा हमेशा तक।
36. इस लिए अगर फ़र्ज़न्द तुम को आज़ाद करे तो तुम हक़ीक़तन आज़ाद होगे।
37. मुझे मालूम है कि तुम इब्राहीम की औलाद हो। लेकिन तुम मुझे क़त्ल करने के दरपै हो, क्यूँकि तुम्हारे अन्दर मेरे पैग़ाम के लिए गुन्जाइश नहीं है।
38. मैं तुम को वही कुछ बताता हूँ जो मैं ने बाप के हाँ देखा है, जबकि तुम वही कुछ सुनाते हो जो तुम ने अपने बाप से सुना है।”
39. उन्हों ने कहा, “हमारा बाप इब्राहीम है।” ईसा ने जवाब दिया, “अगर तुम इब्राहीम की औलाद होते तो तुम उस के नमूने पर चलते।
40. इस के बजाय तुम मुझे क़त्ल करने की तलाश में हो, इस लिए कि मैं ने तुम को वही सच्चाई सुनाई है जो मैं ने अल्लाह के हुज़ूर सुनी है। इब्राहीम ने कभी भी इस क़िस्म का काम न किया।
41. नहीं, तुम अपने बाप का काम कर रहे हो।” उन्हों ने एतिराज़ किया, “हम हरामज़ादे नहीं हैं। अल्लाह ही हमारा वाहिद बाप है।”
42. ईसा ने उन से कहा, “अगर अल्लाह तुम्हारा बाप होता तो तुम मुझ से मुहब्बत रखते, क्यूँकि मैं अल्लाह में से निकल आया हूँ। मैं अपनी तरफ़ से नहीं आया बल्कि उसी ने मुझे भेजा है।
43. तुम मेरी ज़बान क्यूँ नहीं समझते? इस लिए कि तुम मेरी बात सुन नहीं सकते।
44. तुम अपने बाप इब्लीस से हो और अपने बाप की ख़्वाहिशों पर अमल करने के ख़्वाहाँ रहते हो। वह शुरू ही से क़ातिल है और सच्चाई पर क़ाइम न रहा, क्यूँकि उस में सच्चाई है नहीं। जब वह झूट बोलता है तो यह फ़ित्री बात है, क्यूँकि वह झूट बोलने वाला और झूट का बाप है।
45. लेकिन मैं सच्ची बातें सुनाता हूँ और यही वजह है कि तुम को मुझ पर यक़ीन नहीं आता।
46. क्या तुम में से कोई साबित कर सकता है कि मुझ से कोई गुनाह सरज़द हुआ है? मैं तो तुम को हक़ीक़त बता रहा हूँ। फिर तुम को मुझ पर यक़ीन क्यूँ नहीं आता?
47. जो अल्लाह से है वह अल्लाह की बातें सुनता है। तुम यह इस लिए नहीं सुनते कि तुम अल्लाह से नहीं हो।”
48. यहूदियों ने जवाब दिया, “क्या हम ने ठीक नहीं कहा कि तुम सामरी हो और किसी बदरुह के क़ब्ज़े में हो?”
49. ईसा ने कहा, “मैं बदरुह के क़ब्ज़े में नहीं हूँ बल्कि अपने बाप की इज़्ज़त करता हूँ जबकि तुम मेरी बेइज़्ज़ती करते हो।
50. मैं ख़ुद अपनी इज़्ज़त का ख़्वाहाँ नहीं हूँ। लेकिन एक है जो मेरी इज़्ज़त और जलाल का ख़याल रखता और इन्साफ़ करता है।
51. मैं तुम को सच्च बताता हूँ कि जो भी मेरे कलाम पर अमल करता रहे वह मौत को कभी नहीं देखेगा।”
52. यह सुन कर लोगों ने कहा, “अब हमें पता चल गया है कि तुम किसी बदरुह के क़ब्ज़े में हो। इब्राहीम और नबी सब इन्तिक़ाल कर गए जबकि तुम दावा करते हो, ‘जो भी मेरे कलाम पर अमल करता रहे वह मौत का मज़ा कभी नहीं चखेगा।’
53. क्या तुम हमारे बाप इब्राहीम से बड़े हो? वह मर गया, और नबी भी मर गए। तुम अपने आप को क्या समझते हो?”
54. ईसा ने जवाब दिया, “अगर में अपनी इज़्ज़त और जलाल बढ़ाता तो मेरा जलाल बातिल होता। लेकिन मेरा बाप ही मेरी इज़्ज़त-ओ-जलाल बढ़ाता है, वही जिस के बारे में तुम दावा करते हो कि ‘वह हमारा ख़ुदा है।’
55. लेकिन हक़ीक़त में तुम ने उसे नहीं जाना जबकि मैं उसे जानता हूँ। अगर मैं कहता कि मैं उसे नहीं जानता तो मैं तुम्हारी तरह झूटा होता। लेकिन मैं उसे जानता और उस के कलाम पर अमल करता हूँ।
56. तुम्हारे बाप इब्राहीम ने ख़ुशी मनाई जब उसे मालूम हुआ कि वह मेरी आमद का दिन देखेगा, और वह उसे देख कर मसरूर हुआ।”
57. यहूदियों ने एतिराज़ किया, “तुम्हारी उम्र तो अभी पचास साल भी नहीं, तो फिर तुम किस तरह कह सकते हो कि तुम ने इब्राहीम को देखा है?”
58. ईसा ने उन से कहा, “मैं तुम को सच्च बताता हूँ, इब्राहीम की पैदाइश से पेशतर ‘मैं हूँ’।”
59. इस पर लोग उसे संगसार करने के लिए पत्थर उठाने लगे। लेकिन ईसा ग़ाइब हो कर बैत-उल-मुक़द्दस से निकल गया।

  John (8/21)