John (7/21)  

1. इस के बाद ईसा ने गलील के इलाक़े में इधर उधर सफ़र किया। वह यहूदिया में फिरना नहीं चाहता था क्यूँकि वहाँ के यहूदी उसे क़त्ल करने का मौक़ा ढूँड रहे थे।
2. लेकिन जब यहूदी ईद बनाम झोंपड़ियों की ईद क़रीब आई
3. तो उस के भाइयों ने उस से कहा, “यह जगह छोड़ कर यहूदिया चला जा ताकि तेरे पैरोकार भी वह मोजिज़े देख लें जो तू करता है।
4. जो शख़्स चाहता है कि अवाम उसे जाने वह पोशीदगी में काम नहीं करता। अगर तू इस क़िस्म का मोजिज़ाना काम करता है तो अपने आप को दुनिया पर ज़ाहिर कर।”
5. (असल में ईसा के भाई भी उस पर ईमान नहीं रखते थे।)
6. ईसा ने उन्हें बताया, “अभी वह वक़्त नहीं आया जो मेरे लिए मौज़ूँ है। लेकिन तुम जा सकते हो, तुम्हारे लिए हर वक़्त मौज़ूँ है।
7. दुनिया तुम से दुश्मनी नहीं रख सकती। लेकिन मुझ से वह दुश्मनी रखती है, क्यूँकि मैं उस के बारे में यह गवाही देता हूँ कि उस के काम बुरे हैं।
8. तुम ख़ुद ईद पर जाओ। मैं नहीं जाऊँगा, क्यूँकि अभी वह वक़्त नहीं आया जो मेरे लिए मौज़ूँ है।”
9. यह कह कर वह गलील में ठहरा रहा।
10. लेकिन बाद में, जब उस के भाई ईद पर जा चुके थे तो वह भी गया, अगरचि अलानिया नहीं बल्कि ख़ुफ़िया तौर पर।
11. यहूदी ईद के मौक़े पर उसे तलाश कर रहे थे। वह पूछते रहे, “वह आदमी कहाँ है?”
12. हुजूम में से कई लोग ईसा के बारे में बुड़बुड़ा रहे थे। बाज़ ने कहा, “वह अच्छा बन्दा है।” लेकिन दूसरों ने एतिराज़ किया, “नहीं, वह अवाम को बहकाता है।”
13. लेकिन किसी ने भी उस के बारे में खुल कर बात न की, क्यूँकि वह यहूदियों से डरते थे।
14. ईद का आधा हिस्सा गुज़र चुका था जब ईसा बैत-उल-मुक़द्दस में जा कर तालीम देने लगा।
15. उसे सुन कर यहूदी हैरतज़दा हुए और कहा, “यह आदमी किस तरह इतना इल्म रखता है हालाँकि इस ने कहीं से भी तालीम हासिल नहीं की!”
16. ईसा ने जवाब दिया, “जो तालीम मैं देता हूँ वह मेरी अपनी नहीं बल्कि उस की है जिस ने मुझे भेजा।
17. जो उस की मर्ज़ी पूरी करने के लिए तय्यार है वह जान लेगा कि मेरी तालीम अल्लाह की तरफ़ से है या कि मेरी अपनी तरफ़ से।
18. जो अपनी तरफ़ से बोलता है वह अपनी ही इज़्ज़त चाहता है। लेकिन जो अपने भेजने वाले की इज़्ज़त-ओ-जलाल बढ़ाने की कोशिश करता है वह सच्चा है और उस में नारास्ती नहीं है।
19. क्या मूसा ने तुम को शरीअत नहीं दी? तो फिर तुम मुझे क़त्ल करने की कोशिश क्यूँ कर रहे हो?”
20. हुजूम ने जवाब दिया, “तुम किसी बदरुह की गिरिफ़्त में हो। कौन तुम्हें क़त्ल करने की कोशिश कर रहा है?”
21. ईसा ने उन से कहा, “मैं ने सबत के दिन एक ही मोजिज़ा किया और तुम सब हैरतज़दा हुए।
22. लेकिन तुम भी सबत के दिन काम करते हो। तुम उस दिन अपने बच्चों का ख़तना करवाते हो। और यह रस्म मूसा की शरीअत के मुताबिक़ ही है, अगरचि यह मूसा से नहीं बल्कि हमारे बापदादा इब्राहीम, इस्हाक़ और याक़ूब से शुरू हुई।
23. क्यूँकि शरीअत के मुताबिक़ लाज़िम है कि बच्चे का ख़तना आठवें दिन करवाया जाए, और अगर यह दिन सबत हो तो तुम फिर भी अपने बच्चे का ख़तना करवाते हो ताकि शरीअत की ख़िलाफ़वरज़ी न हो जाए। तो फिर तुम मुझ से क्यूँ नाराज़ हो कि मैं ने सबत के दिन एक आदमी के पूरे जिस्म को शिफ़ा दी?
24. ज़ाहिरी सूरत की बिना पर फ़ैसला न करो बल्कि बातिनी हालत पहचान कर मुन्सिफ़ाना फ़ैसला करो।”
25. उस वक़्त यरूशलम के कुछ रहने वाले कहने लगे, “क्या यह वह आदमी नहीं है जिसे लोग क़त्ल करने की कोशिश कर रहे हैं?
26. ताहम वह यहाँ खुल कर बात कर रहा है और कोई भी उसे रोकने की कोशिश नहीं कर रहा। क्या हमारे राहनुमाओं ने हक़ीक़त में जान लिया है कि यह मसीह है?
27. लेकिन जब मसीह आएगा तो किसी को भी मालूम नहीं होगा कि वह कहाँ से है। यह आदमी फ़र्क़ है। हम तो जानते हैं कि यह कहाँ से है।”
28. ईसा बैत-उल-मुक़द्दस में तालीम दे रहा था। अब वह पुकार उठा, “तुम मुझे जानते हो और यह भी जानते हो कि मैं कहाँ से हूँ। लेकिन मैं अपनी तरफ़ से नहीं आया। जिस ने मुझे भेजा है वह सच्चा है और उसे तुम नहीं जानते।
29. लेकिन मैं उसे जानता हूँ, क्यूँकि मैं उस की तरफ़ से हूँ और उस ने मुझे भेजा है।”
30. तब उन्हों ने उसे गिरिफ़्तार करने की कोशिश की। लेकिन कोई भी उस को हाथ न लगा सका, क्यूँकि अभी उस का वक़्त नहीं आया था।
31. तो भी हुजूम के कई लोग उस पर ईमान लाए, क्यूँकि उन्हों ने कहा, “जब मसीह आएगा तो क्या वह इस आदमी से ज़ियादा इलाही निशान दिखाएगा?”
32. फ़रीसियों ने देखा कि हुजूम में इस क़िस्म की बातें धीमी धीमी आवाज़ के साथ फैल रही हैं। चुनाँचे उन्हों ने राहनुमा इमामों के साथ मिल कर बैत-उल-मुक़द्दस के पहरेदार ईसा को गिरिफ़्तार करने के लिए भेजे।
33. लेकिन ईसा ने कहा, “मैं सिर्फ़ थोड़ी देर और तुम्हारे साथ रहूँगा, फिर मैं उस के पास वापस चला जाऊँगा जिस ने मुझे भेजा है।
34. उस वक़्त तुम मुझे ढूँडोगे, मगर नहीं पाओगे, क्यूँकि जहाँ मैं हूँ वहाँ तुम नहीं आ सकते।”
35. यहूदी आपस में कहने लगे, “यह कहाँ जाना चाहता है जहाँ हम उसे नहीं पा सकेंगे? क्या वह बैरून-ए-मुल्क जाना चाहता है, वहाँ जहाँ हमारे लोग यूनानियों में बिखरी हालत में रहते हैं? क्या वह यूनानियों को तालीम देना चाहता है?
36. मतलब क्या है जब वह कहता है, ‘तुम मुझे ढूँडोगे मगर नहीं पाओगे’ और ‘जहाँ मैं हूँ वहाँ तुम नहीं आ सकते’।”
37. ईद के आख़िरी दिन जो सब से अहम है ईसा खड़ा हुआ और ऊँची आवाज़ से पुकार उठा, “जो पियासा हो वह मेरे पास आए,
38. और जो मुझ पर ईमान लाए वह पिए। कलाम-ए-मुक़द्दस के मुताबिक़ ‘उस के अन्दर से ज़िन्दगी के पानी की नहरें बह निकलेंगी’।”
39. (‘ज़िन्दगी के पानी’ से वह रूह-उल-क़ुद्स की तरफ़ इशारा कर रहा था जो उन को हासिल होता है जो ईसा पर ईमान लाते हैं। लेकिन वह उस वक़्त तक नाज़िल नहीं हुआ था, क्यूँकि ईसा अब तक अपने जलाल को न पहुँचा था।)
40. ईसा की यह बातें सुन कर हुजूम के कुछ लोगों ने कहा, “यह आदमी वाक़ई वह नबी है जिस के इन्तिज़ार में हम हैं।”
41. दूसरों ने कहा, “यह मसीह है।” लेकिन बाज़ ने एतिराज़ किया, “मसीह गलील से किस तरह आ सकता है!
42. पाक कलाम तो बयान करता है कि मसीह दाऊद के ख़ान्दान और बैत-लहम से आएगा, उस गाँओ से जहाँ दाऊद बादशाह पैदा हुआ।”
43. यूँ ईसा की वजह से लोगों में फूट पड़ गई।
44. कुछ तो उसे गिरिफ़्तार करना चाहते थे, लेकिन कोई भी उस को हाथ न लगा सका।
45. इतने में बैत-उल-मुक़द्दस के पहरेदार राहनुमा इमामों और फ़रीसियों के पास वापस आए। वह ईसा को ले कर नहीं आए थे, इस लिए राहनुमाओं ने पूछा, “तुम उसे क्यूँ नहीं लाए?”
46. पहरेदारों ने जवाब दिया, “किसी ने कभी इस आदमी की तरह बात नहीं की।”
47. फ़रीसियों ने तन्ज़न कहा, “क्या तुम को भी बहका दिया गया है?
48. क्या राहनुमाओं या फ़रीसियों में कोई है जो उस पर ईमान लाया हो? कोई भी नहीं!
49. लेकिन शरीअत से नावाक़िफ़ यह हुजूम लानती है!”
50. इन राहनुमाओं में नीकुदेमुस भी शामिल था जो कुछ देर पहले ईसा के पास गया था। अब वह बोल उठा,
51. “क्या हमारी शरीअत किसी पर यूँ फ़ैसला देने की इजाज़त देती है? नहीं, लाज़िम है कि उसे पहले अदालत में पेश किया जाए ताकि मालूम हो जाए कि उस से क्या कुछ सरज़द हुआ है।”
52. दूसरों ने एतिराज़ किया, “क्या तुम भी गलील के रहने वाले हो? कलाम-ए-मुक़द्दस में तफ़्तीश करके ख़ुद देख लो कि गलील से कोई नबी नहीं आएगा।”
53. यह कह कर हर एक अपने अपने घर चला गया।

  John (7/21)