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1. | इस के बाद ईसा ने गलील की झील को पार किया। (झील का दूसरा नाम तिबरियास था।) |
2. | एक बड़ा हुजूम उस के पीछे लग गया था, क्यूँकि उस ने इलाही निशान दिखा कर मरीज़ों को शिफ़ा दी थी और लोगों ने इस का मुशाहदा किया था। |
3. | फिर ईसा पहाड़ पर चढ़ कर अपने शागिर्दों के साथ बैठ गया। |
4. | (यहूदी ईद-ए-फ़सह क़रीब आ गई थी।) |
5. | वहाँ बैठे ईसा ने अपनी नज़र उठाई तो देखा कि एक बड़ा हुजूम पहुँच रहा है। उस ने फ़िलिप्पुस से पूछा, “हम कहाँ से खाना खरीदें ताकि उन्हें खिलाएँ?” |
6. | (यह उस ने फ़िलिप्पुस को आज़्माने के लिए कहा। ख़ुद तो वह जानता था कि क्या करेगा।) |
7. | फ़िलिप्पुस ने जवाब दिया, “अगर हर एक को सिर्फ़ थोड़ा सा मिले तो भी चाँदी के 200 सिक्के काफ़ी नहीं होंगे।” |
8. | फिर शमाऊन पत्रस का भाई अन्द्रियास बोल उठा, |
9. | “यहाँ एक लड़का है जिस के पास जौ की पाँच रोटियाँ और दो मछलियाँ हैं। मगर इतने लोगों में यह क्या हैं!” |
10. | ईसा ने कहा, “लोगों को बिठा दो।” उस जगह बहुत घास थी। चुनाँचे सब बैठ गए। (सिर्फ़ मर्दों की तादाद 5,000 थी।) |
11. | ईसा ने रोटियाँ ले कर शुक्रगुज़ारी की दुआ की और उन्हें बैठे हुए लोगों में तक़्सीम करवाया। यही कुछ उस ने मछलियों के साथ भी किया। और सब ने जी भर कर रोटी खाई। |
12. | जब सब सेर हो गए तो ईसा ने शागिर्दों को बताया, “अब बचे हुए टुकड़े जमा करो ताकि कुछ ज़ाए न हो जाए।” |
13. | जब उन्हों ने बचा हुआ खाना इकट्ठा किया तो जौ की पाँच रोटियों के टुकड़ों से बारह टोकरे भर गए। |
14. | जब लोगों ने ईसा को यह इलाही निशान दिखाते देखा तो उन्हों ने कहा, “यक़ीनन यह वही नबी है जिसे दुनिया में आना था।” |
15. | ईसा को मालूम हुआ कि वह आ कर उसे ज़बरदस्ती बादशाह बनाना चाहते हैं, इस लिए वह दुबारा उन से अलग हो कर अकेला ही किसी पहाड़ पर चढ़ गया। |
16. | शाम को शागिर्द झील के पास गए |
17. | और कश्ती पर सवार हो कर झील के पार शहर कफ़र्नहूम के लिए रवाना हुए। अंधेरा हो चुका था और ईसा अब तक उन के पास वापस नहीं आया था। |
18. | तेज़ हवा के बाइस झील में लहरें उठने लगीं। |
19. | कश्ती को खेते खेते शागिर्द चार या पाँच किलोमीटर का सफ़र तै कर चुके थे कि अचानक ईसा नज़र आया। वह पानी पर चलता हुआ कश्ती की तरफ़ बढ़ रहा था। शागिर्द दह्शतज़दा हो गए। |
20. | लेकिन उस ने उन से कहा, “मैं ही हूँ। ख़ौफ़ न करो।” |
21. | वह उसे कश्ती में बिठाने पर आमादा हुए। और कश्ती उसी लम्हे उस जगह पहुँच गई जहाँ वह जाना चाहते थे। |
22. | हुजूम तो झील के पार रह गया था। अगले दिन लोगों को पता चला कि शागिर्द एक ही कश्ती ले कर चले गए हैं और कि उस वक़्त ईसा कश्ती में नहीं था। |
23. | फिर कुछ कश्तियाँ तिबरियास से उस मक़ाम के क़रीब पहुँचीं जहाँ ख़ुदावन्द ईसा ने रोटी के लिए शुक्रगुज़ारी की दुआ करके उसे लोगों को खिलाया था। |
24. | जब लोगों ने देखा कि न ईसा और न उस के शागिर्द वहाँ हैं तो वह कश्तियों पर सवार हो कर ईसा को ढूँडते ढूँडते कफ़र्नहूम पहुँचे। |
25. | जब उन्हों ने उसे झील के पार पाया तो पूछा, “उस्ताद, आप किस तरह यहाँ पहुँच गए?” |
26. | ईसा ने जवाब दिया, “मैं तुम को सच्च बताता हूँ, तुम मुझे इस लिए नहीं ढूँड रहे कि इलाही निशान देखे हैं बल्कि इस लिए कि तुम ने जी भर कर रोटी खाई है। |
27. | ऐसी ख़ुराक के लिए जिद्द-ओ-जह्द न करो जो गल सड़ जाती है, बल्कि ऐसी के लिए जो अबदी ज़िन्दगी तक क़ाइम रहती है और जो इब्न-ए-आदम तुम को देगा, क्यूँकि ख़ुदा बाप ने उस पर अपनी तस्दीक़ की मुहर लगाई है।” |
28. | इस पर उन्हों ने पूछा, “हमें क्या करना चाहिए ताकि अल्लाह का मतलूबा काम करें?” |
29. | ईसा ने जवाब दिया, “अल्लाह का काम यह है कि तुम उस पर ईमान लाओ जिसे उस ने भेजा है।” |
30. | उन्हों ने कहा, “तो फिर आप क्या इलाही निशान दिखाएँगे जिसे देख कर हम आप पर ईमान लाएँ? आप क्या काम सरअन्जाम देंगे? |
31. | हमारे बापदादा ने तो रेगिस्तान में मन्न खाया। चुनाँचे कलाम-ए-मुक़द्दस में लिखा है कि मूसा ने उन्हें आस्मान से रोटी खिलाई।” |
32. | ईसा ने जवाब दिया, “मैं तुम को सच्च बताता हूँ कि ख़ुद मूसा ने तुम को आस्मान से रोटी नहीं खिलाई बल्कि मेरे बाप ने। वही तुम को आस्मान से हक़ीक़ी रोटी देता है। |
33. | क्यूँकि अल्लाह की रोटी वह शख़्स है जो आस्मान पर से उतर कर दुनिया को ज़िन्दगी बख़्शता है।” |
34. | उन्हों ने कहा, “ख़ुदावन्द, हमें यह रोटी हर वक़्त दिया करें।” |
35. | जवाब में ईसा ने कहा, “मैं ही ज़िन्दगी की रोटी हूँ। जो मेरे पास आए उसे फिर कभी भूक नहीं लगेगी। और जो मुझ पर ईमान लाए उसे फिर कभी पियास नहीं लगेगी। |
36. | लेकिन जिस तरह मैं तुम को बता चुका हूँ, तुम ने मुझे देखा और फिर भी ईमान नहीं लाए। |
37. | जितने भी बाप ने मुझे दिए हैं वह मेरे पास आएँगे और जो भी मेरे पास आएगा उसे मैं हरगिज़ निकाल न दूँगा। |
38. | क्यूँकि मैं अपनी मर्ज़ी पूरी करने के लिए आस्मान से नहीं उतरा बल्कि उस की जिस ने मुझे भेजा है। |
39. | और जिस ने मुझे भेजा उस की मर्ज़ी यह है कि जितने भी उस ने मुझे दिए हैं उन में से मैं एक को भी खो न दूँ बल्कि सब को क़ियामत के दिन मुर्दों में से फिर ज़िन्दा करूँ। |
40. | क्यूँकि मेरे बाप की मर्ज़ी यही है कि जो भी फ़र्ज़न्द को देख कर उस पर ईमान लाए उसे अबदी ज़िन्दगी हासिल हो। ऐसे शख़्स को मैं क़ियामत के दिन मुर्दों में से फिर ज़िन्दा करूँगा।” |
41. | यह सुन कर यहूदी इस लिए बुड़बुड़ाने लगे कि उस ने कहा था, “मैं ही वह रोटी हूँ जो आस्मान पर से उतर आई है।” |
42. | उन्हों ने एतिराज़ किया, “क्या यह ईसा बिन यूसुफ़ नहीं, जिस के बाप और माँ से हम वाक़िफ़ हैं? वह क्यूँकर कह सकता है कि ‘मैं आस्मान से उतरा हूँ’?” |
43. | ईसा ने जवाब में कहा, “आपस में मत बुड़बुड़ाओ। |
44. | सिर्फ़ वह शख़्स मेरे पास आ सकता है जिसे बाप जिस ने मुझे भेजा है मेरे पास खैंच लाया है। ऐसे शख़्स को मैं क़ियामत के दिन मुर्दों में से फिर ज़िन्दा करूँगा। |
45. | नबियों के सहीफ़ों में लिखा है, ‘सब अल्लाह से तालीम पाएँगे।’ जो भी अल्लाह की सुन कर उस से सीखता है वह मेरे पास आ जाता है। |
46. | इस का मतलब यह नहीं कि किसी ने कभी बाप को देखा। सिर्फ़ एक ही ने बाप को देखा है, वही जो अल्लाह की तरफ़ से है। |
47. | मैं तुम को सच्च बताता हूँ कि जो ईमान रखता है उसे अबदी ज़िन्दगी हासिल है। |
48. | ज़िन्दगी की रोटी मैं हूँ। |
49. | तुम्हारे बापदादा रेगिस्तान में मन्न खाते रहे, तो भी वह मर गए। |
50. | लेकिन यहाँ आस्मान से उतरने वाली ऐसी रोटी है जिसे खा कर इन्सान नहीं मरता। |
51. | मैं ही ज़िन्दगी की वह रोटी हूँ जो आस्मान से उतर आई है। जो इस रोटी से खाए वह अबद तक ज़िन्दा रहेगा। और यह रोटी मेरा गोश्त है जो मैं दुनिया को ज़िन्दगी मुहय्या करने की ख़ातिर पेश करूँगा।” |
52. | यहूदी बड़ी सरगर्मी से एक दूसरे से बह्स करने लगे, “यह आदमी हमें किस तरह अपना गोश्त खिला सकता है?” |
53. | ईसा ने उन से कहा, “मैं तुम को सच्च बताता हूँ कि सिर्फ़ इब्न-ए-आदम का गोश्त खाने और उस का ख़ून पीने ही से तुम में ज़िन्दगी होगी। |
54. | जो मेरा गोश्त खाए और मेरा ख़ून पिए अबदी ज़िन्दगी उस की है और मैं उसे क़ियामत के दिन मुर्दों में से फिर ज़िन्दा करूँगा। |
55. | क्यूँकि मेरा गोश्त हक़ीक़ी ख़ुराक और मेरा ख़ून हक़ीक़ी पीने की चीज़ है। |
56. | जो मेरा गोश्त खाता और मेरा ख़ून पीता है वह मुझ में क़ाइम रहता है और मैं उस में। |
57. | मैं उस ज़िन्दा बाप की वजह से ज़िन्दा हूँ जिस ने मुझे भेजा। इसी तरह जो मुझे खाता है वह मेरी ही वजह से ज़िन्दा रहेगा। |
58. | यही वह रोटी है जो आस्मान से उतरी है। तुम्हारे बापदादा मन्न खाने के बावुजूद मर गए, लेकिन जो यह रोटी खाएगा वह अबद तक ज़िन्दा रहेगा।” |
59. | ईसा ने यह बातें उस वक़्त कीं जब वह कफ़र्नहूम में यहूदी इबादतख़ाने में तालीम दे रहा था। |
60. | यह सुन कर उस के बहुत से शागिर्दों ने कहा, “यह बातें नागवार हैं। कौन इन्हें सुन सकता है!” |
61. | ईसा को मालूम था कि मेरे शागिर्द मेरे बारे में बुड़बुड़ा रहे हैं, इस लिए उस ने कहा, “क्या तुम को इन बातों से ठेस लगी है? |
62. | तो फिर तुम क्या सोचोगे जब इब्न-ए-आदम को ऊपर जाते देखोगे जहाँ वह पहले था? |
63. | अल्लाह का रूह ही ज़िन्दा करता है जबकि जिस्मानी ताक़त का कोई फ़ाइदा नहीं होता। जो बातें मैं ने तुम को बताई हैं वह रूह और ज़िन्दगी हैं। |
64. | लेकिन तुम में से कुछ हैं जो ईमान नहीं रखते।” (ईसा तो शुरू से ही जानता था कि कौन कौन ईमान नहीं रखते और कौन मुझे दुश्मन के हवाले करेगा।) |
65. | फिर उस ने कहा, “इस लिए मैं ने तुम को बताया कि सिर्फ़ वह शख़्स मेरे पास आ सकता है जिसे बाप की तरफ़ से यह तौफ़ीक़ मिले।” |
66. | उस वक़्त से उस के बहुत से शागिर्द उलटे पाँओ फिर गए और आइन्दा को उस के साथ न चले। |
67. | तब ईसा ने बारह शागिर्दों से पूछा, “क्या तुम भी चले जाना चाहते हो?” |
68. | शमाऊन पत्रस ने जवाब दिया, “ख़ुदावन्द, हम किस के पास जाएँ? अबदी ज़िन्दगी की बातें तो आप ही के पास हैं। |
69. | और हम ने ईमान ला कर जान लिया है कि आप अल्लाह के क़ुद्दूस हैं।” |
70. | जवाब में ईसा ने कहा, “क्या मैं ने तुम बारह को नहीं चुना? तो भी तुम में से एक शख़्स शैतान है।” |
71. | (वह शमाऊन इस्करियोती के बेटे यहूदाह की तरफ़ इशारा कर रहा था जो बारह शागिर्दों में से एक था और जिस ने बाद में उसे दुश्मन के हवाले कर दिया।) |
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