John (2/21)  

1. तीसरे दिन गलील के गाँओ क़ाना में एक शादी हुई। ईसा की माँ वहाँ थी
2. और ईसा और उस के शागिर्दों को भी दावत दी गई थी।
3. मै ख़त्म हो गई तो ईसा की माँ ने उस से कहा, “उन के पास मै नहीं रही।”
4. ईसा ने जवाब दिया, “ऐ ख़ातून, मेरा आप से क्या वास्ता? मेरा वक़्त अभी नहीं आया।”
5. लेकिन उस की माँ ने नौकरों को बताया, “जो कुछ वह तुम को बताए वह करो।”
6. वहाँ पत्थर के छः मटके पड़े थे जिन्हें यहूदी दीनी ग़ुसल के लिए इस्तेमाल करते थे। हर एक में तक़्रीबन 100 लिटर की गुन्जाइश थी।
7. ईसा ने नौकरों से कहा, “मटकों को पानी से भर दो।” चुनाँचे उन्हों ने उन्हें लबालब भर दिया।
8. फिर उस ने कहा, “अब कुछ निकाल कर ज़ियाफ़त का इन्तिज़ाम चलाने वाले के पास ले जाओ।” उन्हों ने ऐसा ही किया।
9. जूँ ही ज़ियाफ़त का इन्तिज़ाम चलाने वाले ने वह पानी चखा जो मै में बदल गया था तो उस ने दूल्हे को बुलाया। (उसे मालूम न था कि यह कहाँ से आई है, अगरचि उन नौकरों को पता था जो उसे निकाल कर लाए थे।)
10. उस ने कहा, “हर मेज़्बान पहले अच्छी क़िस्म की मै पीने के लिए पेश करता है। फिर जब लोगों को नशा चढ़ने लगे तो वह निस्बतन घटिया क़िस्म की मै पिलाने लगता है। लेकिन आप ने अच्छी मै अब तक रख छोड़ी है।”
11. यूँ ईसा ने गलील के क़ाना में यह पहला इलाही निशान दिखा कर अपने जलाल का इज़्हार किया। यह देख कर उस के शागिर्द उस पर ईमान लाए।
12. इस के बाद वह अपनी माँ, अपने भाइयों और अपने शागिर्दों के साथ कफ़र्नहूम को चला गया। वहाँ वह थोड़े दिन रहे।
13. जब यहूदी ईद-ए-फ़सह क़रीब आ गई तो ईसा यरूशलम चला गया।
14. बैत-उल-मुक़द्दस में जा कर उस ने देखा कि कई लोग उस में गाय-बैल, भेड़ें और कबूतर बेच रहे हैं। दूसरे मेज़ पर बैठे ग़ैरमुल्की सिक्के बैत-उल-मुक़द्दस के सिक्कों में बदल रहे हैं।
15. फिर ईसा ने रस्सियों का कोड़ा बना कर सब को बैत-उल-मुक़द्दस से निकाल दिया। उस ने भेड़ों और गाय-बैलों को बाहर हाँक दिया, पैसे बदलने वालों के सिक्के बिखेर दिए और उन की मेज़ें उलट दीं।
16. कबूतर बेचने वालों को उस ने कहा, “इसे ले जाओ। मेरे बाप के घर को मंडी में मत बदलो।”
17. यह देख कर ईसा के शागिर्दों को कलाम-ए-मुक़द्दस का यह हवाला याद आया कि “तेरे घर की ग़ैरत मुझे खा जाएगी।”
18. यहूदियों ने जवाब में पूछा, “आप हमें क्या इलाही निशान दिखा सकते हैं ताकि हमें यक़ीन आए कि आप को यह करने का इख़तियार है?”
19. ईसा ने जवाब दिया, “इस मक़्दिस को ढा दो तो मैं इसे तीन दिन के अन्दर दुबारा तामीर कर दूँगा।”
20. यहूदियों ने कहा, “बैत-उल-मुक़द्दस को तामीर करने में 46 साल लग गए थे और आप उसे तीन दिन में तामीर करना चाहते हैं?”
21. लेकिन जब ईसा ने “इस मक़्दिस” के अल्फ़ाज़ इस्तेमाल किए तो इस का मतलब उस का अपना बदन था।
22. उस के मुर्दों में से जी उठने के बाद उस के शागिर्दों को उस की यह बात याद आई। फिर वह कलाम-ए-मुक़द्दस और उन बातों पर ईमान लाए जो ईसा ने की थीं।
23. जब ईसा फ़सह की ईद के लिए यरूशलम में था तो बहुत से लोग उस के पेशकरदा इलाही निशानों को देख कर उस के नाम पर ईमान लाने लगे।
24. लेकिन उस को उन पर एतिमाद नहीं था, क्यूँकि वह सब को जानता था।
25. और उसे इन्सान के बारे में किसी की गवाही की ज़रूरत नहीं थी, क्यूँकि वह जानता था कि इन्सान के अन्दर क्या कुछ है।

  John (2/21)