John (19/21)  

1. फिर पीलातुस ने ईसा को कोड़े लगवाए।
2. फ़ौजियों ने काँटेदार टहनियों का एक ताज बना कर उस के सर पर रख दिया। उन्हों ने उसे अर्ग़वानी रंग का लिबास भी पहनाया।
3. फिर उस के सामने आ कर वह कहते, “ऐ यहूदियों के बादशाह, आदाब!” और उसे थप्पड़ मारते थे।
4. एक बार फिर पीलातुस निकल आया और यहूदियों से बात करने लगा, “देखो, मैं इसे तुम्हारे पास बाहर ला रहा हूँ ताकि तुम जान लो कि मुझे इसे मुज्रिम ठहराने की कोई वजह नहीं मिली।”
5. फिर ईसा काँटेदार ताज और अर्ग़वानी रंग का लिबास पहने बाहर आया। पीलातुस ने उन से कहा, “लो यह है वह आदमी।”
6. उसे देखते ही राहनुमा इमाम और उन के मुलाज़िम चीख़ने लगे, “इसे मस्लूब करें, इसे मस्लूब करें!” पीलातुस ने उन से कहा, “तुम ही इसे ले जा कर मस्लूब करो। क्यूँकि मुझे इसे मुज्रिम ठहराने की कोई वजह नहीं मिली।”
7. यहूदियों ने इस्रार किया, “हमारे पास शरीअत है और इस शरीअत के मुताबिक़ लाज़िम है कि वह मारा जाए। क्यूँकि इस ने अपने आप को अल्लाह का फ़र्ज़न्द क़रार दिया है।”
8. यह सुन कर पीलातुस मज़ीद डर गया।
9. दुबारा महल में जा कर ईसा से पूछा, “तुम कहाँ से आए हो?” लेकिन ईसा ख़ामोश रहा।
10. पीलातुस ने उस से कहा, “अच्छा, तुम मेरे साथ बात नहीं करते? क्या तुम्हें मालूम नहीं कि मुझे तुम्हें रिहा करने और मस्लूब करने का इख़तियार है?”
11. ईसा ने जवाब दिया, “आप को मुझ पर इख़तियार न होता अगर वह आप को ऊपर से न दिया गया होता। इस वजह से उस शख़्स से ज़ियादा संगीन गुनाह हुआ है जिस ने मुझे दुश्मन के हवाले कर दिया है।”
12. इस के बाद पीलातुस ने उसे आज़ाद करने की कोशिश की। लेकिन यहूदी चीख़ चीख़ कर कहने लगे, “अगर आप इसे रिहा करें तो आप रोमी शहनशाह क़ैसर के दोस्त साबित नहीं होंगे। जो भी बादशाह होने का दावा करे वह शहनशाह की मुख़ालफ़त करता है।”
13. इस तरह की बातें सुन कर पीलातुस ईसा को बाहर ले आया। फिर वह जज की कुर्सी पर बैठ गया। उस जगह का नाम “पच्चीकारी” था। (अरामी ज़बान में वह गब्बता कहलाती थी।)
14. अब दोपहर के तक़्रीबन बारह बज गए थे। उस दिन ईद के लिए तय्यारियाँ की जाती थीं, क्यूँकि अगले दिन ईद का आग़ाज़ था। पीलातुस बोल उठा, “लो, तुम्हारा बादशाह!”
15. लेकिन वह चिल्लाते रहे, “ले जाएँ इसे, ले जाएँ! इसे मस्लूब करें!” पीलातुस ने सवाल किया, “क्या मैं तुम्हारे बादशाह को सलीब पर चढ़ाऊँ?” राहनुमा इमामों ने जवाब दिया, “सिवा-ए-शहनशाह के हमारा कोई बादशाह नहीं है।”
16. फिर पीलातुस ने ईसा को उन के हवाले कर दिया ताकि उसे मस्लूब किया जाए। चुनाँचे वह ईसा को ले कर चले गए।
17. वह अपनी सलीब उठाए शहर से निकला और उस जगह पहुँचा जिस का नाम खोपड़ी (अरामी ज़बान में गुल्गुता) था।
18. वहाँ उन्हों ने उसे सलीब पर चढ़ा दिया। साथ साथ उन्हों ने उस के बाएँ और दाएँ हाथ दो और आदमियों को मस्लूब किया।
19. पीलातुस ने एक तख़्ती बनवा कर उसे ईसा की सलीब पर लगवा दिया। तख़्ती पर लिखा था, ‘ईसा नासरी, यहूदियों का बादशाह।’
20. बहुत से यहूदियों ने यह पढ़ लिया, क्यूँकि मस्लूबियत का मक़ाम शहर के क़रीब था और यह जुमला अरामी, लातीनी और यूनानी ज़बानों में लिखा था।
21. यह देख कर यहूदियों के राहनुमा इमामों ने एतिराज़ किया, “‘यहूदियों का बादशाह’ न लिखें बल्कि यह कि ‘इस आदमी ने यहूदियों का बादशाह होने का दावा किया’।”
22. पीलातुस ने जवाब दिया, “जो कुछ मैं ने लिख दिया सो लिख दिया।”
23. ईसा को सलीब पर चढ़ाने के बाद फ़ौजियों ने उस के कपड़े ले कर चार हिस्सों में बाँट लिए, हर फ़ौजी के लिए एक हिस्सा। लेकिन चोग़ा बेजोड़ था। वह ऊपर से ले कर नीचे तक बुना हुआ एक ही टुकड़े का था।
24. इस लिए फ़ौजियों ने कहा, “आओ, इसे फाड़ कर तक़्सीम न करें बल्कि इस पर क़ुरआ डालें।” यूँ कलाम-ए-मुक़द्दस की यह पेशगोई पूरी हुई, “उन्हों ने आपस में मेरे कपड़े बाँट लिए और मेरे लिबास पर क़ुरआ डाला।” फ़ौजियों ने यही कुछ किया।
25. कुछ ख़वातीन भी ईसा की सलीब के क़रीब खड़ी थीं : उस की माँ, उस की ख़ाला, क्लोपास की बीवी मरियम और मरियम मग्दलीनी।
26. जब ईसा ने अपनी माँ को उस शागिर्द के साथ खड़े देखा जो उसे पियारा था तो उस ने कहा, “ऐ ख़ातून, देखें आप का बेटा यह है।”
27. और उस शागिर्द से उस ने कहा, “देख, तेरी माँ यह है।” उस वक़्त से उस शागिर्द ने ईसा की माँ को अपने घर रखा।
28. इस के बाद जब ईसा ने जान लिया कि मेरा मिशन तक्मील तक पहुँच चुका है तो उस ने कहा, “मुझे पियास लगी है।” (इस से भी कलाम-ए-मुक़द्दस की एक पेशगोई पूरी हुई।)
29. क़रीब मै के सिरके से भरा बर्तन पड़ा था। उन्हों ने एक इस्पंज सिरके में डुबो कर उसे ज़ूफ़े की शाख़ पर लगा दिया और उठा कर ईसा के मुँह तक पहुँचाया।
30. यह सिरका पीने के बाद ईसा बोल उठा, “काम मुकम्मल हो गया है।” और सर झुका कर उस ने अपनी जान अल्लाह के सपुर्द कर दी।
31. फ़सह की तय्यारी का दिन था और अगले दिन ईद का आग़ाज़ और एक ख़ास सबत था। इस लिए यहूदी नहीं चाहते थे कि मस्लूब हुई लाशें अगले दिन तक सलीबों पर लटकी रहें। चुनाँचे उन्हों ने पीलातुस से गुज़ारिश की कि वह उन की टाँगें तुड़वा कर उन्हें सलीबों से उतारने दे।
32. तब फ़ौजियों ने आ कर ईसा के साथ मस्लूब किए जाने वाले आदमियों की टाँगें तोड़ दीं, पहले एक की फिर दूसरे की।
33. जब वह ईसा के पास आए तो उन्हों ने देखा कि वह फ़ौत हो चुका है, इस लिए उन्हों ने उस की टाँगें न तोड़ीं।
34. इस के बजाय एक ने नेज़े से ईसा का पहलू छेद दिया। ज़ख़्म से फ़ौरन ख़ून और पानी बह निकला।
35. (जिस ने यह देखा है उस ने गवाही दी है और उस की गवाही सच्ची है। वह जानता है कि वह हक़ीक़त बयान कर रहा है और उस की गवाही का मक़्सद यह है कि आप भी ईमान लाएँ।)
36. यह यूँ हुआ ताकि कलाम-ए-मुक़द्दस की यह पेशगोई पूरी हो जाए, “उस की एक हड्डी भी तोड़ी नहीं जाएगी।”
37. कलाम-ए-मुक़द्दस में यह भी लिखा है, “वह उस पर नज़र डालेंगे जिसे उन्हों ने छेदा है।”
38. बाद में अरिमतियाह के रहने वाले यूसुफ़ ने पीलातुस से ईसा की लाश उतारने की इजाज़त माँगी। (यूसुफ़ ईसा का ख़ुफ़िया शागिर्द था, क्यूँकि वह यहूदियों से डरता था।) इस की इजाज़त मिलने पर वह आया और लाश को उतार लिया।
39. नीकुदेमुस भी साथ था, वह आदमी जो गुज़रे दिनों में रात के वक़्त ईसा से मिलने आया था। नीकुदेमुस अपने साथ मुर और ऊद की तक़्रीबन 34 किलोग्राम ख़ुश्बू ले कर आया था।
40. यहूदी जनाज़े की रुसूमात के मुताबिक़ उन्हों ने लाश पर ख़ुश्बू लगा कर उसे पट्टियों से लपेट दिया।
41. सलीबों के क़रीब एक बाग़ था और बाग़ में एक नई क़ब्र थी जो अब तक इस्तेमाल नहीं की गई थी।
42. उस के क़रीब होने के सबब से उन्हों ने ईसा को उस में रख दिया, क्यूँकि फ़सह की तय्यारी का दिन था और अगले दिन ईद का आग़ाज़ था।

  John (19/21)