John (11/21)  

1. उन दिनों में एक आदमी बीमार पड़ गया जिस का नाम लाज़र था। वह अपनी बहनों मरियम और मर्था के साथ बैत-अनियाह में रहता था।
2. यह वही मरियम थी जिस ने बाद में ख़ुदावन्द पर ख़ुश्बू उंडेल कर उस के पाँओ अपने बालों से ख़ुश्क किए थे। उसी का भाई लाज़र बीमार था।
3. चुनाँचे बहनों ने ईसा को इत्तिला दी, “ख़ुदावन्द, जिसे आप पियार करते हैं वह बीमार है।”
4. जब ईसा को यह ख़बर मिली तो उस ने कहा, “इस बीमारी का अन्जाम मौत नहीं है, बल्कि यह अल्लाह के जलाल के वास्ते हुआ है, ताकि इस से अल्लाह के फ़र्ज़न्द को जलाल मिले।”
5. ईसा मर्था, मरियम और लाज़र से मुहब्बत रखता था।
6. तो भी वह लाज़र के बारे में इत्तिला मिलने के बाद दो दिन और वहीं ठहरा।
7. फिर उस ने अपने शागिर्दों से बात की, “आओ, हम दुबारा यहूदिया चले जाएँ।”
8. शागिर्दों ने एतिराज़ किया, “उस्ताद, अभी अभी वहाँ के यहूदी आप को संगसार करने की कोशिश कर रहे थे, फिर भी आप वापस जाना चाहते हैं?”
9. ईसा ने जवाब दिया, “क्या दिन में रौशनी के बारह घंटे नहीं होते? जो शख़्स दिन के वक़्त चलता फिरता है वह किसी भी चीज़ से नहीं टकराएगा, क्यूँकि वह इस दुनिया की रौशनी के ज़रीए देख सकता है।
10. लेकिन जो रात के वक़्त चलता है वह चीज़ों से टकरा जाता है, क्यूँकि उस के पास रौशनी नहीं है।”
11. फिर उस ने कहा, “हमारा दोस्त लाज़र सो गया है। लेकिन मैं जा कर उसे जगा दूँगा।”
12. शागिर्दों ने कहा, “ख़ुदावन्द, अगर वह सो रहा है तो वह बच जाएगा।”
13. उन का ख़याल था कि ईसा लाज़र की फ़ित्री नींद का ज़िक्र कर रहा है जबकि हक़ीक़त में वह उस की मौत की तरफ़ इशारा कर रहा था।
14. इस लिए उस ने उन्हें साफ़ बता दिया, “लाज़र वफ़ात पा गया है।
15. और तुम्हारी ख़ातिर मैं ख़ुश हूँ कि मैं उस के मरते वक़्त वहाँ नहीं था, क्यूँकि अब तुम ईमान लाओगे। आओ, हम उस के पास जाएँ।”
16. तोमा ने जिस का लक़ब जुड़वाँ था अपने साथी शागिर्दों से कहा, “चलो, हम भी वहाँ जा कर उस के साथ मर जाएँ।”
17. वहाँ पहुँच कर ईसा को मालूम हुआ कि लाज़र को क़ब्र में रखे चार दिन हो गए हैं।
18. बैत-अनियाह का यरूशलम से फ़ासिला तीन किलोमीटर से कम था,
19. और बहुत से यहूदी मर्था और मरियम को उन के भाई के बारे में तसल्ली देने के लिए आए हुए थे।
20. यह सुन कर कि ईसा आ रहा है मर्था उसे मिलने गई। लेकिन मरियम घर में बैठी रही।
21. मर्था ने कहा, “ख़ुदावन्द, अगर आप यहाँ होते तो मेरा भाई न मरता।
22. लेकिन मैं जानती हूँ कि अब भी अल्लाह आप को जो भी माँगेंगे देगा।”
23. ईसा ने उसे बताया, “तेरा भाई जी उठेगा।”
24. मर्था ने जवाब दिया, “जी, मुझे मालूम है कि वह क़ियामत के दिन जी उठेगा, जब सब जी उठेंगे।”
25. ईसा ने उसे बताया, “क़ियामत और ज़िन्दगी तो मैं हूँ। जो मुझ पर ईमान रखे वह ज़िन्दा रहेगा, चाहे वह मर भी जाए।
26. और जो ज़िन्दा है और मुझ पर ईमान रखता है वह कभी नहीं मरेगा। मर्था, क्या तुझे इस बात का यक़ीन है?”
27. मर्था ने जवाब दिया, “जी ख़ुदावन्द, मैं ईमान रखती हूँ कि आप ख़ुदा के फ़र्ज़न्द मसीह हैं, जिसे दुनिया में आना था।”
28. यह कह कर मर्था वापस चली गई और चुपके से मरियम को बुलाया, “उस्ताद आ गए हैं, वह तुझे बुला रहे हैं।”
29. यह सुनते ही मरियम उठ कर ईसा के पास गई।
30. वह अभी गाँओ के बाहर उसी जगह ठहरा था जहाँ उस की मुलाक़ात मर्था से हुई थी।
31. जो यहूदी घर में मरियम के साथ बैठे उसे तसल्ली दे रहे थे, जब उन्हों ने देखा कि वह जल्दी से उठ कर निकल गई है तो वह उस के पीछे हो लिए। क्यूँकि वह समझ रहे थे कि वह मातम करने के लिए अपने भाई की क़ब्र पर जा रही है।
32. मरियम ईसा के पास पहुँच गई। उसे देखते ही वह उस के पाँओ में गिर गई और कहने लगी, “ख़ुदावन्द, अगर आप यहाँ होते तो मेरा भाई न मरता।”
33. जब ईसा ने मरियम और उस के साथियों को रोते देखा तो उसे बड़ी रंजिश हुई। मुज़्तरिब हालत में
34. उस ने पूछा, “तुम ने उसे कहाँ रखा है?” उन्हों ने जवाब दिया, “आएँ ख़ुदावन्द, और देख लें।”
35. ईसा रो पड़ा।
36. यहूदियों ने कहा, “देखो, वह उसे कितना अज़ीज़ था।”
37. लेकिन उन में से बाज़ ने कहा, “इस आदमी ने अंधे को शिफ़ा दी। क्या यह लाज़र को मरने से नहीं बचा सकता था?”
38. फिर ईसा दुबारा निहायत रंजीदा हो कर क़ब्र पर आया। क़ब्र एक ग़ार थी जिस के मुँह पर पत्थर रखा गया था।
39. ईसा ने कहा, “पत्थर को हटा दो।” लेकिन मर्हूम की बहन मर्था ने एतिराज़ किया, “ख़ुदावन्द, बदबू आएगी, क्यूँकि उसे यहाँ पड़े चार दिन हो गए हैं।”
40. ईसा ने उस से कहा, “क्या मैं ने तुझे नहीं बताया कि अगर तू ईमान रखे तो अल्लाह का जलाल देखेगी?”
41. चुनाँचे उन्हों ने पत्थर को हटा दिया। फिर ईसा ने अपनी नज़र उठा कर कहा, “ऐ बाप, मैं तेरा शुक्र करता हूँ कि तू ने मेरी सुन ली है।
42. मैं तो जानता हूँ कि तू हमेशा मेरी सुनता है। लेकिन मैं ने यह बात पास खड़े लोगों की ख़ातिर की, ताकि वह ईमान लाएँ कि तू ने मुझे भेजा है।”
43. फिर ईसा ज़ोर से पुकार उठा, “लाज़र, निकल आ!”
44. और मुर्दा निकल आया। अभी तक उस के हाथ और पाँओ पट्टियों से बंधे हुए थे जबकि उस का चिहरा कपड़े में लिपटा हुआ था। ईसा ने उन से कहा, “इस के कफ़न को खोल कर इसे जाने दो।”
45. उन यहूदियों में से जो मरियम के पास आए थे बहुत से ईसा पर ईमान लाए जब उन्हों ने वह देखा जो उस ने किया।
46. लेकिन बाज़ फ़रीसियों के पास गए और उन्हें बताया कि ईसा ने क्या किया है।
47. तब राहनुमा इमामों और फ़रीसियों ने यहूदी अदालत-ए-आलिया का इज्लास मुनअक़िद किया। उन्हों ने एक दूसरे से पूछा, “हम क्या कर रहे हैं? यह आदमी बहुत से इलाही निशान दिखा रहा है।
48. अगर हम उसे खुला छोड़ें तो आख़िरकार सब उस पर ईमान ले आएँगे। फिर रोमी आ कर हमारे बैत-उल-मुक़द्दस और हमारे मुल्क को तबाह कर देंगे।”
49. उन में से एक काइफ़ा था जो उस साल इमाम-ए-आज़म था। उस ने कहा, “आप कुछ नहीं समझते
50. और इस का ख़याल भी नहीं करते कि इस से पहले कि पूरी क़ौम हलाक हो जाए बेहतर यह है कि एक आदमी उम्मत के लिए मर जाए।”
51. उस ने यह बात अपनी तरफ़ से नहीं की थी। उस साल के इमाम-ए-आज़म की हैसियत से ही उस ने यह पेशगोई की कि ईसा यहूदी क़ौम के लिए मरेगा।
52. और न सिर्फ़ इस के लिए बल्कि अल्लाह के बिखरे हुए फ़र्ज़न्दों को जमा करके एक करने के लिए भी।
53. उस दिन से उन्हों ने ईसा को क़त्ल करने का इरादा कर लिया।
54. इस लिए उस ने अब से अलानिया यहूदियों के दर्मियान वक़्त न गुज़ारा, बल्कि उस जगह को छोड़ कर रेगिस्तान के क़रीब एक इलाक़े में गया। वहाँ वह अपने शागिर्दों समेत एक गाँओ बनाम इफ़्राईम में रहने लगा।
55. फिर यहूदियों की ईद-ए-फ़सह क़रीब आ गई। दीहात से बहुत से लोग अपने आप को पाक करवाने के लिए ईद से पहले पहले यरूशलम पहुँचे।
56. वहाँ वह ईसा का पता करते और बैत-उल-मुक़द्दस में खड़े आपस में बात करते रहे, “क्या ख़याल है? क्या वह तहवार पर नहीं आएगा?”
57. लेकिन राहनुमा इमामों और फ़रीसियों ने हुक्म दिया था, “अगर किसी को मालूम हो जाए कि ईसा कहाँ है तो वह इत्तिला दे ताकि हम उसे गिरिफ़्तार कर लें।”

  John (11/21)