Job (8/42)  

1. तब बिल्दद सूख़ी ने जवाब दे कर कहा,
2. “तू कब तक इस क़िस्म की बातें करेगा? कब तक तेरे मुँह से आँधी के झोंके निकलेंगे?
3. क्या अल्लाह इन्साफ़ का ख़ून कर सकता, क्या क़ादिर-ए-मुतलक़ रास्ती को आगे पीछे कर सकता है?
4. तेरे बेटों ने उस का गुनाह किया है, इस लिए उस ने उन्हें उन के जुर्म के क़ब्ज़े में छोड़ दिया।
5. अब तेरे लिए लाज़िम है कि तू अल्लाह का तालिब हो और क़ादिर-ए-मुतलक़ से इल्तिजा करे,
6. कि तू पाक हो और सीधी राह पर चले। फिर वह अब भी तेरी ख़ातिर जोश में आ कर तेरी रास्तबाज़ी की सुकूनतगाह को बहाल करेगा।
7. तब तेरा मुस्तक़बिल निहायत अज़ीम होगा, ख़्वाह तेरी इबतिदाई हालत कितनी पस्त क्यूँ न हो।
8. गुज़श्ता नसल से ज़रा पूछ ले, उस पर ध्यान दे जो उन के बापदादा ने तह्क़ीक़ात के बाद मालूम किया।
9. क्यूँकि हम ख़ुद कल ही पैदा हुए और कुछ नहीं जानते, ज़मीन पर हमारे दिन साय जैसे आरिज़ी हैं।
10. लेकिन यह तुझे तालीम दे कर बात बता सकते हैं, यह तुझे अपने दिल में जमाशुदा इल्म पेश कर सकते हैं।
11. क्या आबी नर्सल वहाँ उगता है जहाँ दल्दल नहीं? क्या सरकंडा वहाँ फलता फूलता है जहाँ पानी नहीं?
12. उस की कोंपलें अभी निकल रही हैं और उसे तोड़ा नहीं गया कि अगर पानी न मिले तो बाक़ी हरियाली से पहले ही सूख जाता है।
13. यह है उन का अन्जाम जो अल्लाह को भूल जाते हैं, इसी तरह बेदीन की उम्मीद जाती रहती है।
14. जिस पर वह एतिमाद करता है वह निहायत ही नाज़ुक है, जिस पर उस का भरोसा है वह मकड़ी के जाले जैसा कमज़ोर है।
15. जब वह जाले पर टेक लगाए तो खड़ा नहीं रहता, जब उसे पकड़ ले तो क़ाइम नहीं रहता।
16. बेदीन धूप में शादाब बेल की मानिन्द है। उस की कोंपलें चारों तरफ़ फैल जाती,
17. उस की जड़ें पत्थर के ढेर पर छा कर उन में टिक जाती हैं।
18. लेकिन अगर उसे उखाड़ा जाए तो जिस जगह पहले उग रही थी वह उस का इन्कार करके कहेगी, ‘मैं ने तुझे कभी देखा भी नहीं।’
19. यह है उस की राह की नाम-निहाद ख़ुशी! जहाँ पहले था वहाँ दीगर पौदे ज़मीन से फूट निकलेंगे।
20. यक़ीनन अल्लाह बेइल्ज़ाम आदमी को मुस्तरद नहीं करता, यक़ीनन वह शरीर आदमी के हाथ मज़्बूत नहीं करता।
21. वह एक बार फिर तुझे ऐसी ख़ुशी बख़्शेगा कि तू हंस उठेगा और शादमानी के नारे लगाएगा।
22. जो तुझ से नफ़रत करते हैं वह शर्म से मुलब्बस हो जाएँगे, और बेदीनों के ख़ैमे नेस्त-ओ-नाबूद होंगे।”

  Job (8/42)