| ← Job (32/42) → |
| 1. | तब मज़्कूरा तीनों आदमी अय्यूब को जवाब देने से बाज़ आए, क्यूँकि वह अब तक समझता था कि मैं रास्तबाज़ हूँ। |
| 2. | यह देख कर इलीहू बिन बरकेल ग़ुस्से हो गया। बूज़ शहर के रहने वाले इस आदमी का ख़ान्दान राम था। एक तरफ़ तो वह अय्यूब से ख़फ़ा था, क्यूँकि यह अपने आप को अल्लाह के सामने रास्तबाज़ ठहराता था। |
| 3. | दूसरी तरफ़ वह तीनों दोस्तों से भी नाराज़ था, क्यूँकि न वह अय्यूब को सहीह जवाब दे सके, न साबित कर सके कि मुज्रिम है। |
| 4. | इलीहू ने अब तक अय्यूब से बात नहीं की थी। जब तक दूसरों ने बात पूरी नहीं की थी वह ख़ामोश रहा, क्यूँकि वह बुज़ुर्ग थे। |
| 5. | लेकिन अब जब उस ने देखा कि तीनों आदमी मज़ीद कोई जवाब नहीं दे सकते तो वह भड़क उठा |
| 6. | और जवाब में कहा, “मैं कमउम्र हूँ जबकि आप सब उम्ररसीदा हैं, इस लिए मैं कुछ शर्मीला था, मैं आप को अपनी राय बताने से डरता था। |
| 7. | मैं ने सोचा, चलो वह बोलें जिन के ज़ियादा दिन गुज़रे हैं, वह तालीम दें जिन्हें मुतअद्दिद सालों का तजरिबा हासिल है। |
| 8. | लेकिन जो रूह इन्सान में है यानी जो दम क़ादिर-ए-मुतलक़ ने उस में फूँक दिया वही इन्सान को समझ अता करता है। |
| 9. | न सिर्फ़ बूढ़े लोग दानिशमन्द हैं, न सिर्फ़ वह इन्साफ़ समझते हैं जिन के बाल सफ़ेद हैं। |
| 10. | चुनाँचे मैं गुज़ारिश करता हूँ कि ज़रा मेरी बात सुनें, मुझे भी अपनी राय पेश करने दीजिए। |
| 11. | मैं आप के अल्फ़ाज़ के इन्तिज़ार में रहा। जब आप मौज़ूँ जवाब तलाश कर रहे थे तो मैं आप की दानिशमन्द बातों पर ग़ौर करता रहा। |
| 12. | मैं ने आप पर पूरी तवज्जुह दी, लेकिन आप में से कोई अय्यूब को ग़लत साबित न कर सका, कोई उस के दलाइल का मुनासिब जवाब न दे पाया। |
| 13. | अब ऐसा न हो कि आप कहें, ‘हम ने अय्यूब में हिक्मत पाई है, इन्सान उसे शिकस्त दे कर भगा नहीं सकता बल्कि सिर्फ़ अल्लाह ही।’ |
| 14. | क्यूँकि अय्यूब ने अपने दलाइल की तर्तीब से मेरा मुक़ाबला नहीं किया, और जब मैं जवाब दूँगा तो आप की बातें नहीं दुहराऊँगा। |
| 15. | आप घबरा कर जवाब देने से बाज़ आए हैं, अब आप कुछ नहीं कह सकते। |
| 16. | क्या मैं मज़ीद इन्तिज़ार करूँ, गो आप ख़ामोश हो गए हैं, आप रुक कर मज़ीद जवाब नहीं दे सकते? |
| 17. | मैं भी जवाब देने में हिस्सा लेना चाहता हूँ, मैं भी अपनी राय पेश करूँगा। |
| 18. | क्यूँकि मेरे अन्दर से अल्फ़ाज़ छलक रहे हैं, मेरी रूह मेरे अन्दर मुझे मज्बूर कर रही है। |
| 19. | हक़ीक़त में मैं अन्दर से उस नई मै की मानिन्द हूँ जो बन्द रखी गई हो, मैं नई मै से भरी हुई नई मश्कों की तरह फटने को हूँ। |
| 20. | मुझे बोलना है ताकि आराम पाऊँ, लाज़िम ही है कि मैं अपने होंटों को खोल कर जवाब दूँ। |
| 21. | यक़ीनन न मैं किसी की जानिबदारी, न किसी की चापलूसी करूँगा। |
| 22. | क्यूँकि मैं ख़ुशामद कर ही नहीं सकता, वर्ना मेरा ख़ालिक़ मुझे जल्द ही उड़ा ले जाएगा। |
| ← Job (32/42) → |