Job (30/42)  

1. लेकिन अब वह मेरा मज़ाक़ उड़ाते हैं, हालाँकि उन की उम्र मुझ से कम है और मैं उन के बापों को अपनी भेड़-बक्रियों की देख-भाल करने वाले कुत्तों के साथ काम पर लगाने के भी लाइक़ नहीं समझता था।
2. मेरे लिए उन के हाथों की मदद का क्या फ़ाइदा था? उन की पूरी ताक़त तो जाती रही थी।
3. ख़ुराक की कमी और शदीद भूक के मारे वह ख़ुश्क ज़मीन की थोड़ी बहुत पैदावार कतर कतर कर खाते हैं। हर वक़्त वह तबाही और वीरानी के दामन में रहते हैं।
4. वह झाड़ियों से ख़त्मी का फल तोड़ कर खाते, झाड़ियों की जड़ें आग तापने के लिए इकट्ठी करते हैं।
5. उन्हें आबादियों से ख़ारिज किया गया है, और लोग ‘चोर चोर’ चिल्ला कर उन्हें भगा देते हैं।
6. उन्हें घाटियों की ढलानों पर बसना पड़ता, वह ज़मीन के ग़ारों में और पत्थरों के दर्मियान ही रहते हैं।
7. झाड़ियों के दर्मियान वह आवाज़ें देते और मिल कर ऊँटकटारों तले दबक जाते हैं।
8. इन कमीने और बेनाम लोगों को मार मार कर मुल्क से भगा दिया गया है।
9. और अब मैं इन ही का निशाना बन गया हूँ। अपने गीतों में वह मेरा मज़ाक़ उड़ाते हैं, मेरी बुरी हालत उन के लिए मज़्हकाख़ेज़ मिसाल बन गई है।
10. वह घिन खा कर मुझ से दूर रहते और मेरे मुँह पर थूकने से नहीं रुकते।
11. चूँकि अल्लाह ने मेरी कमान की ताँत खोल कर मेरी रुस्वाई की है, इस लिए वह मेरी मौजूदगी में बेलगाम हो गए हैं।
12. मेरे दहने हाथ हुजूम खड़े हो कर मुझे ठोकर खिलाते और मेरी फ़सील के साथ मिट्टी के ढेर लगाते हैं ताकि उस में रख़ना डाल कर मुझे तबाह करें।
13. वह मेरी क़िलआबन्दियाँ ढा कर मुझे ख़ाक में मिलाने में काम्याब हो जाते हैं। किसी और की मदद दरकार ही नहीं।
14. वह रख़ने में दाख़िल होते और जौक़-दर-जौक़ तबाहशुदा फ़सील में से गुज़र कर आगे बढ़ते हैं।
15. हौलनाक वाक़िआत मेरे ख़िलाफ़ खड़े हो गए हैं, और वह तेज़ हवा की तरह मेरे वक़ार को उड़ा ले जा रहे हैं। मेरी सलामती बादल की तरह ओझल हो गई है।
16. और अब मेरी जान निकल रही है, मैं मुसीबत के दिनों के क़ाबू में आ गया हूँ।
17. रात को मेरी हड्डियों को छेदा जाता है, कतरने वाला दर्द मुझे कभी नहीं छोड़ता।
18. अल्लाह बड़े ज़ोर से मेरा कपड़ा पकड़ कर गिरीबान की तरह मुझे अपनी सख़्त गिरिफ़्त में रखता है।
19. उस ने मुझे कीचड़ में फैंक दिया है, और देखने में मैं ख़ाक और मिट्टी ही बन गया हूँ।
20. मैं तुझे पुकारता, लेकिन तू जवाब नहीं देता। मैं खड़ा हो जाता, लेकिन तू मुझे घूरता ही रहता है।
21. तू मेरे साथ अपना सुलूक बदल कर मुझ पर ज़ुल्म करने लगा, अपने हाथ के पूरे ज़ोर से मुझे सताने लगा है।
22. तू मुझे उड़ा कर हवा पर सवार होने देता, गरजते तूफ़ान में घुलने देता है।
23. हाँ, अब मैं जानता हूँ कि तू मुझे मौत के हवाले करेगा, उस घर में पहुँचाएगा जहाँ एक दिन तमाम जानदार जमा हो जाते हैं।
24. यक़ीनन मैं ने कभी भी अपना हाथ किसी ज़रूरतमन्द के ख़िलाफ़ नहीं उठाया जब उस ने अपनी मुसीबत में आवाज़ दी।
25. बल्कि जब किसी का बुरा हाल था तो मैं हमदर्दी से रोने लगा, ग़रीबों की हालत देख कर मेरा दिल ग़म खाने लगा।
26. ताहम मुझ पर मुसीबत आई, अगरचि मैं भलाई की उम्मीद रख सकता था। मुझ पर घना अंधेरा छा गया, हालाँकि मैं रौशनी की तवक़्क़ो कर सकता था।
27. मेरे अन्दर सब कुछ मुज़्तरिब है और कभी आराम नहीं कर सकता, मेरा वास्ता तक्लीफ़दिह दिनों से पड़ता है।
28. मैं मातमी लिबास में फिरता हूँ और कोई मुझे तसल्ली नहीं देता, हालाँकि मैं जमाअत में खड़े हो कर मदद के लिए आवाज़ देता हूँ।
29. मैं गीदड़ों का भाई और उक़ाबी उल्लूओं का साथी बन गया हूँ।
30. मेरी जिल्द काली हो गई, मेरी हड्डियाँ तपती गर्मी के सबब से झुलस गई हैं।
31. अब मेरा सरोद सिर्फ़ मातम करने और मेरी बाँसरी सिर्फ़ रोने वालों के लिए इस्तेमाल होती है।

  Job (30/42)