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1. | फिर अय्यूब ने अपनी बात जारी रखी, |
2. | “अल्लाह की हयात की क़सम जिस ने मेरा इन्साफ़ करने से इन्कार किया, क़ादिर-ए-मुतलक़ की क़सम जिस ने मेरी ज़िन्दगी तल्ख़ कर दी है, |
3. | मेरे जीते जी, हाँ जब तक अल्लाह का दम मेरी नाक में है |
4. | मेरे होंट झूट नहीं बोलेंगे, मेरी ज़बान धोका बयान नहीं करेगी। |
5. | मैं कभी तस्लीम नहीं करूँगा कि तुम्हारी बात दुरुस्त है। मैं बेइल्ज़ाम हूँ और मरते दम तक इस के उलट नहीं कहूँगा। |
6. | मैं इस्रार करता हूँ कि रास्तबाज़ हूँ और इस से कभी बाज़ नहीं आऊँगा। मेरा दिल मेरे किसी भी दिन के बारे में मुझे मलामत नहीं करता। |
7. | अल्लाह करे कि मेरे दुश्मन के साथ वही सुलूक किया जाए जो बेदीनों के साथ किया जाएगा, कि मेरे मुख़ालिफ़ का वह अन्जाम हो जो बदकारों को पेश आएगा। |
8. | क्यूँकि उस वक़्त शरीर की क्या उम्मीद रहेगी जब उसे इस ज़िन्दगी से मुन्क़ते किया जाएगा, जब अल्लाह उस की जान उस से तलब करेगा? |
9. | क्या अल्लाह उस की चीख़ें सुनेगा जब वह मुसीबत में फंस कर मदद के लिए पुकारेगा? |
10. | या क्या वह क़ादिर-ए-मुतलक़ से लुत्फ़अन्दोज़ होगा और हर वक़्त अल्लाह को पुकारेगा? |
11. | अब मैं तुम्हें अल्लाह की क़ुद्रत के बारे में तालीम दूँगा, क़ादिर-ए-मुतलक़ का इरादा तुम से नहीं छुपाऊँगा। |
12. | देखो, तुम सब ने इस का मुशाहदा किया है। तो फिर इस क़िस्म की बातिल बातें क्यूँ करते हो? |
13. | बेदीन अल्लाह से क्या अज्र पाएगा, ज़ालिम को क़ादिर-ए-मुतलक़ से मीरास में क्या मिलेगा? |
14. | गो उस के बच्चे मुतअद्दिद हों, लेकिन आख़िरकार वह तल्वार की ज़द में आएँगे। उस की औलाद भूकी रहेगी। |
15. | जो बच जाएँ उन्हें मुहलक बीमारी से क़ब्र में पहुँचाया जाएगा, और उन की बेवाएँ मातम नहीं कर पाएँगी। |
16. | बेशक वह ख़ाक की तरह चाँदी का ढेर लगाए और मिट्टी की तरह नफ़ीस कपड़ों का तोदा इकट्ठा करे, |
17. | लेकिन जो कपड़े वह जमा करे उन्हें रास्तबाज़ पहन लेगा, और जो चाँदी वह इकट्ठी करे उसे बेक़ुसूर तक़्सीम करेगा। |
18. | जो घर बेदीन बना ले वह घोंसले की मानिन्द है, उस आरिज़ी झोंपड़ी की मानिन्द जो चौकीदार अपने लिए बना लेता है। |
19. | वह अमीर हालत में सो जाता है, लेकिन आख़िरी दफ़ा। जब अपनी आँखें खोल लेता तो तमाम दौलत जाती रही है। |
20. | उस पर हौलनाक वाक़िआत का सैलाब टूट पड़ता, उसे रात के वक़्त आँधी छीन लेती है। |
21. | मशरिक़ी लू उसे उड़ा ले जाती, उसे उठा कर उस के मक़ाम से दूर फैंक देती है। |
22. | बेरहमी से वह उस पर यूँ झपट्टा मारती रहती है कि उसे बार बार भागना पड़ता है। |
23. | वह तालियाँ बजा कर अपनी हिक़ारत का इज़्हार करती, अपनी जगह से आवाज़े कसती है। |
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