Job (27/42)  

1. फिर अय्यूब ने अपनी बात जारी रखी,
2. “अल्लाह की हयात की क़सम जिस ने मेरा इन्साफ़ करने से इन्कार किया, क़ादिर-ए-मुतलक़ की क़सम जिस ने मेरी ज़िन्दगी तल्ख़ कर दी है,
3. मेरे जीते जी, हाँ जब तक अल्लाह का दम मेरी नाक में है
4. मेरे होंट झूट नहीं बोलेंगे, मेरी ज़बान धोका बयान नहीं करेगी।
5. मैं कभी तस्लीम नहीं करूँगा कि तुम्हारी बात दुरुस्त है। मैं बेइल्ज़ाम हूँ और मरते दम तक इस के उलट नहीं कहूँगा।
6. मैं इस्रार करता हूँ कि रास्तबाज़ हूँ और इस से कभी बाज़ नहीं आऊँगा। मेरा दिल मेरे किसी भी दिन के बारे में मुझे मलामत नहीं करता।
7. अल्लाह करे कि मेरे दुश्मन के साथ वही सुलूक किया जाए जो बेदीनों के साथ किया जाएगा, कि मेरे मुख़ालिफ़ का वह अन्जाम हो जो बदकारों को पेश आएगा।
8. क्यूँकि उस वक़्त शरीर की क्या उम्मीद रहेगी जब उसे इस ज़िन्दगी से मुन्क़ते किया जाएगा, जब अल्लाह उस की जान उस से तलब करेगा?
9. क्या अल्लाह उस की चीख़ें सुनेगा जब वह मुसीबत में फंस कर मदद के लिए पुकारेगा?
10. या क्या वह क़ादिर-ए-मुतलक़ से लुत्फ़अन्दोज़ होगा और हर वक़्त अल्लाह को पुकारेगा?
11. अब मैं तुम्हें अल्लाह की क़ुद्रत के बारे में तालीम दूँगा, क़ादिर-ए-मुतलक़ का इरादा तुम से नहीं छुपाऊँगा।
12. देखो, तुम सब ने इस का मुशाहदा किया है। तो फिर इस क़िस्म की बातिल बातें क्यूँ करते हो?
13. बेदीन अल्लाह से क्या अज्र पाएगा, ज़ालिम को क़ादिर-ए-मुतलक़ से मीरास में क्या मिलेगा?
14. गो उस के बच्चे मुतअद्दिद हों, लेकिन आख़िरकार वह तल्वार की ज़द में आएँगे। उस की औलाद भूकी रहेगी।
15. जो बच जाएँ उन्हें मुहलक बीमारी से क़ब्र में पहुँचाया जाएगा, और उन की बेवाएँ मातम नहीं कर पाएँगी।
16. बेशक वह ख़ाक की तरह चाँदी का ढेर लगाए और मिट्टी की तरह नफ़ीस कपड़ों का तोदा इकट्ठा करे,
17. लेकिन जो कपड़े वह जमा करे उन्हें रास्तबाज़ पहन लेगा, और जो चाँदी वह इकट्ठी करे उसे बेक़ुसूर तक़्सीम करेगा।
18. जो घर बेदीन बना ले वह घोंसले की मानिन्द है, उस आरिज़ी झोंपड़ी की मानिन्द जो चौकीदार अपने लिए बना लेता है।
19. वह अमीर हालत में सो जाता है, लेकिन आख़िरी दफ़ा। जब अपनी आँखें खोल लेता तो तमाम दौलत जाती रही है।
20. उस पर हौलनाक वाक़िआत का सैलाब टूट पड़ता, उसे रात के वक़्त आँधी छीन लेती है।
21. मशरिक़ी लू उसे उड़ा ले जाती, उसे उठा कर उस के मक़ाम से दूर फैंक देती है।
22. बेरहमी से वह उस पर यूँ झपट्टा मारती रहती है कि उसे बार बार भागना पड़ता है।
23. वह तालियाँ बजा कर अपनी हिक़ारत का इज़्हार करती, अपनी जगह से आवाज़े कसती है।

  Job (27/42)