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1. | फिर बिल्दद सूख़ी ने जवाब दे कर कहा, |
2. | “अल्लाह की हुकूमत दह्शतनाक है। वही अपनी बुलन्दियों पर सलामती क़ाइम रखता है। |
3. | क्या कोई उस के दस्तों की तादाद गिन सकता है? उस का नूर किस पर नहीं चमकता? |
4. | तो फिर इन्सान अल्लाह के सामने किस तरह रास्तबाज़ ठहर सकता है? जो औरत से पैदा हुआ वह किस तरह पाक-साफ़ साबित हो सकता है? |
5. | उस की नज़र में न चाँद पुरनूर है, न सितारे पाक हैं। |
6. | तो फिर इन्सान किस तरह पाक ठहर सकता है जो कीड़ा ही है? आदमज़ाद तो मकोड़ा ही है।” |
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