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1. | अय्यूब ने जवाब में कहा, |
2. | “बेशक आज मेरी शिकायत सरकशी का इज़्हार है, हालाँकि मैं अपनी आहों पर क़ाबू पाने की कोशिश कर रहा हूँ। |
3. | काश मैं उसे पाने का इल्म रखूँ ताकि उस की सुकूनतगाह तक पहुँच सकूँ। |
4. | फिर मैं अपना मुआमला तर्तीबवार उस के सामने पेश करता, मैं अपना मुँह दलाइल से भर लेता। |
5. | तब मुझे उस के जवाबों का पता चलता, मैं उस के बयानात पर ग़ौर कर सकता। |
6. | क्या वह अपनी अज़ीम क़ुव्वत मुझ से लड़ने पर सर्फ़ करता? हरगिज़ नहीं! वह यक़ीनन मुझ पर तवज्जुह देता। |
7. | अगर मैं वहाँ उस के हुज़ूर आ सकता तो दियानतदार आदमी की तरह उस के साथ मुक़द्दमा लड़ता। तब मैं हमेशा के लिए अपने मुन्सिफ़ से बच निकलता! |
8. | लेकिन अफ़्सोस, अगर मैं मशरिक़ की तरफ़ जाऊँ तो वह वहाँ नहीं होता, मग़रिब की जानिब बढ़ूँ तो वहाँ भी नहीं मिलता। |
9. | शिमाल मैं उसे ढूँडूँ तो वह दिखाई नहीं देता, जुनूब की तरफ़ रुख़ करूँ तो वहाँ भी पोशीदा रहता है। |
10. | क्यूँकि वह मेरी राह को जानता है। अगर वह मेरी जाँच-पड़ताल करता तो मैं ख़ालिस सोना साबित होता। |
11. | मेरे क़दम उस की राह में रहे हैं, मैं राह से न बाईं, न दाईं तरफ़ हटा बल्कि सीधा उस पर चलता रहा। |
12. | मैं उस के होंटों के फ़रमान से बाज़ नहीं आया बल्कि अपने दिल में ही उस के मुँह की बातें मह्फ़ूज़ रखी हैं। |
13. | अगर वह फ़ैसला करे तो कौन उसे रोक सकता है? जो कुछ भी वह करना चाहे उसे अमल में लाता है। |
14. | जो भी मन्सूबा उस ने मेरे लिए बाँधा उसे वह ज़रूर पूरा करेगा। और उस के ज़हन में मज़ीद बहुत से ऐसे मन्सूबे हैं। |
15. | इसी लिए मैं उस के हुज़ूर दह्शतज़दा हूँ। जब भी मैं इन बातों पर ध्यान दूँ तो उस से डरता हूँ। |
16. | अल्लाह ने ख़ुद मुझे शिकस्तादिल किया, क़ादिर-ए-मुतलक़ ही ने मुझे दह्शत खिलाई है। |
17. | क्यूँकि न मैं तारीकी से तबाह हो रहा हूँ, न इस लिए कि घने अंधेरे ने मेरे चिहरे को ढाँप दिया है। |
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