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1. | फिर इलीफ़ज़ तेमानी ने जवाब दे कर कहा, |
2. | “क्या अल्लाह इन्सान से फ़ाइदा उठा सकता है? हरगिज़ नहीं! उस के लिए दानिशमन्द भी फ़ाइदे का बाइस नहीं। |
3. | अगर तू रास्तबाज़ हो भी तो क्या वह इस से अपने लिए नफ़ा उठा सकता है? हरगिज़ नहीं! अगर तू बेइल्ज़ाम ज़िन्दगी गुज़ारे तो क्या उसे कुछ हासिल होता है? |
4. | अल्लाह तुझे तेरी ख़ुदातरस ज़िन्दगी के सबब से मलामत नहीं कर रहा। यह न सोच कि वह इसी लिए अदालत में तुझ से जवाब तलब कर रहा है। |
5. | नहीं, वजह तेरी बड़ी बदकारी, तेरे ला-मह्दूद गुनाह हैं। |
6. | जब तेरे भाइयों ने तुझ से क़र्ज़ लिया तो तू ने बिलावजह वह चीज़ें अपना ली होंगी जो उन्हों ने तुझे ज़मानत के तौर पर दी थीं, तू ने उन्हें उन के कपड़ों से महरूम कर दिया होगा। |
7. | तू ने थकेमान्दों को पानी पिलाने से और भूके मरने वालों को खाना खिलाने से इन्कार किया होगा। |
8. | बेशक तेरा रवय्या इस ख़याल पर मब्नी था कि पूरा मुल्क ताक़तवरों की मिल्कियत है, कि सिर्फ़ बड़े लोग उस में रह सकते हैं। |
9. | तू ने बेवाओं को ख़ाली हाथ मोड़ दिया होगा, यतीमों की ताक़त पाश पाश की होगी। |
10. | इसी लिए तू फंदों से घिरा रहता है, अचानक ही तुझे दह्शतनाक वाक़िआत डराते हैं। |
11. | यही वजह है कि तुझ पर ऐसा अंधेरा छा गया है कि तू देख नहीं सकता, कि सैलाब ने तुझे डुबो दिया है। |
12. | क्या अल्लाह आस्मान की बुलन्दियों पर नहीं होता? वह तो सितारों पर नज़र डालता है, ख़्वाह वह कितने ही ऊँचे क्यूँ न हों। |
13. | तो भी तू कहता है, ‘अल्लाह क्या जानता है? क्या वह काले बादलों में से देख कर अदालत कर सकता है? |
14. | वह घने बादलों में छुपा रहता है, इस लिए जब वह आस्मान के गुम्बद पर चलता है तो उसे कुछ नज़र नहीं आता।’ |
15. | क्या तू उस क़दीम राह से बाज़ नहीं आएगा जिस पर बदकार चलते रहे हैं? |
16. | वह तो अपने मुक़र्ररा वक़्त से पहले ही सुकड़ गए, उन की बुन्यादें सैलाब से ही उड़ा ली गईं। |
17. | उन्हों ने अल्लाह से कहा, ‘हम से दूर हो जा,’ और ‘क़ादिर-ए-मुतलक़ हमारे लिए क्या कुछ कर सकता है?’ |
18. | लेकिन अल्लाह ही ने उन के घरों को भरपूर ख़ुशहाली से नवाज़ा, गो बेदीनों के बुरे मन्सूबे उस से दूर ही दूर रहते हैं। |
19. | रास्तबाज़ उन की तबाही देख कर ख़ुश हुए, बेक़ुसूरों ने उन की हंसी उड़ा कर कहा, |
20. | ‘लो, यह देखो, उन की जायदाद किस तरह मिट गई, उन की दौलत किस तरह भस्म हो गई है!’ |
21. | ऐ अय्यूब, अल्लाह से सुलह करके सलामती हासिल कर, तब ही तू ख़ुशहाली पाएगा। |
22. | अल्लाह के मुँह की हिदायत अपना ले, उस के फ़रमान अपने दिल में मह्फ़ूज़ रख। |
23. | अगर तू क़ादिर-ए-मुतलक़ के पास वापस आए तो बहाल हो जाएगा, और तेरे ख़ैमे से बदी दूर ही रहेगी। |
24. | सोने को ख़ाक के बराबर, ओफ़ीर का ख़ालिस सोना वादी के पत्थर के बराबर समझ ले |
25. | तो क़ादिर-ए-मुतलक़ ख़ुद तेरा सोना होगा, वही तेरे लिए चाँदी का ढेर होगा। |
26. | तब तू क़ादिर-ए-मुतलक़ से लुत्फ़अन्दोज़ होगा और अल्लाह के हुज़ूर अपना सर उठा सकेगा। |
27. | तू उस से इल्तिजा करेगा तो वह तेरी सुनेगा और तू अपनी मन्नतें बढ़ा सकेगा। |
28. | जो कुछ भी तू करने का इरादा रखे उस में तुझे काम्याबी होगी, तेरी राहों पर रौशनी चमकेगी। |
29. | क्यूँकि जो शेख़ी भगारता है उसे अल्लाह पस्त करता जबकि जो पस्तहाल है उसे वह नजात देता है। |
30. | वह बेक़ुसूर को छुड़ाता है, चुनाँचे अगर तेरे हाथ पाक हों तो वह तुझे छुड़ाएगा।” |
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