Job (17/42)  

1. मेरी रूह शिकस्ता हो गई, मेरे दिन बुझ गए हैं। क़ब्रिस्तान ही मेरे इन्तिज़ार में है।
2. मेरे चारों तरफ़ मज़ाक़ ही मज़ाक़ सुनाई देता, मेरी आँखें लोगों का हटधर्म रवय्या देखते देखते थक गई हैं।
3. ऐ अल्लाह, मेरी ज़मानत मेरे अपने हाथों से क़बूल फ़रमा, क्यूँकि और कोई नहीं जो उसे दे।
4. उन के ज़हनों को तू ने बन्द कर दिया, इस लिए तो उन से इज़्ज़त नहीं पाएगा।
5. वह उस आदमी की मानिन्द हैं जो अपने दोस्तों को ज़ियाफ़त की दावत दे, हालाँकि उस के अपने बच्चे भूकों मर रहे हों।
6. अल्लाह ने मुझे मज़ाक़ का यूँ निशाना बनाया है कि मैं क़ौमों में इब्रतअंगेज़ मिसाल बन गया हूँ। मुझे देखते ही लोग मेरे मुँह पर थूकते हैं।
7. मेरी आँखें ग़म खा खा कर धुन्दला गई हैं, मेरे आज़ा यहाँ तक सूख गए कि साया ही रह गया है।
8. यह देख कर सीधी राह पर चलने वालों के रोंगटे खड़े हो जाते और बेगुनाह बेदीनों के ख़िलाफ़ मुश्तइल हो जाते हैं।
9. रास्तबाज़ अपनी राह पर क़ाइम रहते, और जिन के हाथ पाक हैं वह तक़वियत पाते हैं।
10. लेकिन जहाँ तक तुम सब का ताल्लुक़ है, आओ दुबारा मुझ पर हम्ला करो! मुझे तुम में एक भी दाना आदमी नहीं मिलेगा।
11. मेरे दिन गुज़र गए हैं। मेरे वह मन्सूबे और दिल की आर्ज़ूएँ ख़ाक में मिल गई हैं
12. जिन से रात दिन में बदल गई और रौशनी अंधेरे को दूर करके क़रीब आई थी।
13. अगर मैं सिर्फ़ इतनी ही उम्मीद रखूँ कि पाताल मेरा घर होगा तो यह कैसी उम्मीद होगी? अगर मैं अपना बिस्तर तारीकी में बिछा कर
14. क़ब्र से कहूँ, ‘तू मेरा बाप है’ और कीड़े से, ‘ऐ मेरी अम्मी, ऐ मेरी बहन’
15. तो फिर यह कैसी उम्मीद होगी? कौन कहेगा, ‘मुझे तेरे लिए उम्मीद नज़र आती है’?
16. तब मेरी उम्मीद मेरे साथ पाताल में उतरेगी, और हम मिल कर ख़ाक में धँस जाएँगे।”

  Job (17/42)