← Jeremiah (45/52) → |
1. | यहूदाह के बादशाह यहूयक़ीम बिन यूसियाह की हुकूमत के चौथे साल में यरमियाह नबी को बारूक बिन नैरियाह के लिए रब्ब का पैग़ाम मिला। उस वक़्त यरमियाह बारूक से वह तमाम बातें लिखवा रहा था जो उस पर नाज़िल हुई थीं। यरमियाह ने कहा, |
2. | “ऐ बारूक, रब्ब इस्राईल का ख़ुदा तेरे बारे में फ़रमाता है |
3. | कि तू कहता है, ‘हाय, मुझ पर अफ़्सोस! रब्ब ने मेरे दर्द में इज़ाफ़ा कर दिया है, अब मुझे रंज-ओ-अलम भी सहना पड़ता है। मैं कराहते कराहते थक गया हूँ। कहीं भी आराम-ओ-सुकून नहीं मिलता।’ |
4. | ऐ बारूक, रब्ब जवाब में फ़रमाता है कि जो कुछ मैं ने ख़ुद तामीर किया उसे मैं गिरा दूँगा, जो पौदा मैं ने ख़ुद लगाया उसे जड़ से उखाड़ दूँगा। पूरे मुल्क के साथ ऐसा ही सुलूक करूँगा। |
5. | तो फिर तू अपने लिए क्यूँ बड़ी काम्याबी हासिल करने का आर्ज़ूमन्द है? ऐसा ख़याल छोड़ दे, क्यूँकि मैं तमाम इन्सानों पर आफ़त ला रहा हूँ। यह रब्ब का फ़रमान है। लेकिन जहाँ भी तू जाए वहाँ मैं होने दूँगा कि तेरी जान छूट जाए ।” |
← Jeremiah (45/52) → |