Jeremiah (41/52)  

1. इस्माईल बिन नतनियाह बिन इलीसमा शाही नसल का था और पहले शाह-ए-यहूदाह का आला अफ़्सर था। सातवें महीने में वह दस आदमियों को अपने साथ ले कर मिस्फ़ाह में जिदलियाह से मिलने आया। जब वह मिल कर खाना खा रहे थे
2. तो इस्माईल और उस के दस आदमी अचानक उठे और अपनी तल्वारों को खैंच कर जिदलियाह को मार डाला। यूँ इस्माईल ने उस आदमी को क़त्ल किया जिसे बाबल के बादशाह ने सूबा यहूदाह पर मुक़र्रर किया था।
3. उस ने मिस्फ़ाह में जिदलियाह के साथ रहने वाले तमाम हमवतनों को भी क़त्ल किया और वहाँ ठहरने वाले बाबल के फ़ौजियों को भी।
4. अगले दिन जब किसी को मालूम नहीं था कि जिदलियाह को क़त्ल किया गया है
5. तो 80 आदमी वहाँ पहुँचे जो सिकम, सैला और सामरिया से आ कर रब्ब के तबाहशुदा घर में उस की परस्तिश करने जा रहे थे। उन के पास ग़ल्ला और बख़ूर की क़ुर्बानियाँ थीं, और उन्हों ने ग़म के मारे अपनी दाढ़ियाँ मुंडवा कर अपने कपड़े फाड़ लिए और अपनी जिल्द को ज़ख़्मी कर दिया था।
6. इस्माईल रोते रोते मिस्फ़ाह से निकल कर उन से मिलने आया। जब वह उन के पास पहुँचा तो कहने लगा, “जिदलियाह बिन अख़ीक़ाम के पास आओ और देखो कि क्या हुआ है!”
7. जूँ ही वह शहर में दाख़िल हुए तो इस्माईल और उस के साथियों ने उन्हें क़त्ल करके एक हौज़ में फैंक दिया।
8. सिर्फ़ दस आदमी बच गए जब उन्हों ने इस्माईल से कहा, “हमें मत क़त्ल करना, क्यूँकि हमारे पास गन्दुम, जौ और शहद के ज़ख़ीरे हैं जो हम ने खुले मैदान में कहीं छुपा रखे हैं।” यह सुन कर उस ने उन्हें दूसरों की तरह न मारा बल्कि ज़िन्दा छोड़ा।
9. जिस हौज़ में इस्माईल ने मज़्कूरा आदमियों की लाशें फैंक दीं वह बहुत बड़ा था। यहूदाह के बादशाह आसा ने उसे उस वक़्त बनवाया था जब इस्राईली बादशाह बाशा से जंग थी और वह मिस्फ़ाह को मज़्बूत बना रहा था। इस्माईल ने इसी हौज़ को मक़्तूलों से भर दिया था।
10. मिस्फ़ाह के बाक़ी लोगों को उस ने क़ैदी बना लिया। उन में यहूदाह के बादशाह की बेटियाँ और बाक़ी वह तमाम लोग शामिल थे जिन पर शाही मुहाफ़िज़ों के सरदार नबूज़रादान ने जिदलियाह बिन अख़ीक़ाम को मुक़र्रर किया था। फिर इस्माईल उन सब को अपने साथ ले कर मुल्क-ए-अम्मोन के लिए रवाना हुआ।
11. लेकिन यूहनान बिन क़रीह और उस के साथी अफ़्सरों को इत्तिला दी गई कि इस्माईल से क्या जुर्म हुआ है।
12. तब वह अपने तमाम फ़ौजियों को जमा करके इस्माईल से लड़ने के लिए निकले और उस का ताक़्क़ुब करते करते उसे जिबऊन के जोहड़ के पास जा लिया।
13. जूँ ही इस्माईल के क़ैदियों ने यूहनान और उस के अफ़्सरों को देखा तो वह ख़ुश हुए।
14. सब ने इस्माईल को छोड़ दिया और मुड़ कर यूहनान के पास भाग आए।
15. इस्माईल आठ साथियों समेत फ़रार हुआ और यूहनान के हाथ से बच कर मुल्क-ए-अम्मोन में चला गया।
16. यूँ मिस्फ़ाह के बचे हुए तमाम लोग जिबऊन में यूहनान और उस के साथी अफ़्सरों के ज़ेर-ए-निगरानी आए। उन में वह तमाम फ़ौजी, ख़वातीन, बच्चे और दरबारी शामिल थे जिन्हें इस्माईल ने जिदलियाह को क़त्ल करने के बाद क़ैदी बनाया था।
17. लेकिन वह मिस्फ़ाह वापस न गए बल्कि आगे चलते चलते बैत-लहम के क़रीब के गाँओ बनाम सराय-किम्हाम में रुक गए। वहाँ वह मिस्र के लिए रवाना होने की तय्यारियाँ करने लगे,
18. क्यूँकि वह बाबल के इन्तिक़ाम से डरते थे, इस लिए कि जिदलियाह बिन अख़ीक़ाम को क़त्ल करने से इस्माईल बिन नतनियाह ने उस आदमी को मौत के घाट उतारा था जिसे शाह-ए-बाबल ने यहूदाह का गवर्नर मुक़र्रर किया था।

  Jeremiah (41/52)