Jeremiah (38/52)  

1. सफ़तियाह बिन मत्तान, जिदलियाह बिन फ़श्हूर, यूकल बिन सलमियाह और फ़श्हूर बिन मल्कियाह को मालूम हुआ कि यरमियाह तमाम लोगों को बता रहा है
2. कि रब्ब फ़रमाता है, “अगर तुम तल्वार, काल या वबा से मरना चाहो तो इस शहर में रहो। लेकिन अगर तुम अपनी जान को बचाना चाहो तो शहर से निकल कर अपने आप को बाबल की फ़ौज के हवाले करो। जो कोई यह करे उस की जान छूट जाएगी ।
3. क्यूँकि रब्ब फ़रमाता है कि यरूशलम को ज़रूर शाह-ए-बाबल की फ़ौज के हवाले किया जाएगा। वह यक़ीनन उस पर क़ब्ज़ा करेगा।”
4. तब मज़्कूरा अफ़्सरों ने बादशाह से कहा, “इस आदमी को सज़ा-ए-मौत दीनी चाहिए, क्यूँकि यह शहर में बचे हुए फ़ौजियों और बाक़ी तमाम लोगों को ऐसी बातें बता रहा है जिन से वह हिम्मत हार गए हैं। यह आदमी क़ौम की बहबूदी नहीं चाहता बल्कि उसे मुसीबत में डालने पर तुला रहता है।”
5. सिदक़ियाह बादशाह ने जवाब दिया, “ठीक है, वह आप के हाथ में है। मैं आप को रोक नहीं सकता।”
6. तब उन्हों ने यरमियाह को पकड़ कर मल्कियाह शाहज़ादा के हौज़ में डाल दिया। यह हौज़ शाही मुहाफ़िज़ों के सहन में था। रस्सों के ज़रीए उन्हों ने यरमियाह को उतार दिया। हौज़ में पानी नहीं था बल्कि सिर्फ़ कीचड़, और यरमियाह कीचड़ में धँस गया।
7. लेकिन एथोपिया के एक दरबारी बनाम अबद-मलिक को पता चला कि यरमियाह के साथ क्या कुछ किया जा रहा है। जब बादशाह शहर के दरवाज़े बनाम बिन्यमीन में कचहरी लगाए बैठा था
8. तो अबद-मलिक शाही महल से निकल कर उस के पास गया और कहा,
9. “मेरे आक़ा और बादशाह, जो सुलूक इन आदमियों ने यरमियाह के साथ किया है वह निहायत बुरा है। उन्हों ने उसे एक हौज़ में फैंक दिया है जहाँ वह भूका मरेगा। क्यूँकि शहर में रोटी ख़त्म हो गई है।”
10. यह सुन कर बादशाह ने अबद-मलिक को हुक्म दिया, “इस से पहले कि यरमियाह मर जाए यहाँ से 30 आदमियों को ले कर नबी को हौज़ से निकाल दें।”
11. अबद-मलिक आदमियों को अपने साथ ले कर शाही महल के गोदाम के नीचे के एक कमरे में गया। वहाँ से उस ने कुछ पुराने चीथड़े और घिसे फटे कपड़े चुन कर उन्हें रस्सों के ज़रीए हौज़ में यरमियाह तक उतार दिया।
12. अबद-मलिक बोला, “रस्से बाँधने से पहले यह पुराने चीथड़े और घिसे फटे कपड़े बग़ल में रखें।” यरमियाह ने ऐसा ही किया,
13. तो वह उसे रस्सों से खैंच कर हौज़ से निकाल लाए। इस के बाद यरमियाह शाही मुहाफ़िज़ों के सहन में रहा।
14. एक दिन सिदक़ियाह बादशाह ने यरमियाह को रब्ब के घर के तीसरे दरवाज़े के पास बुला कर उस से कहा, “मैं आप से एक बात दरयाफ़्त करना चाहता हूँ। मुझे इस का साफ़ जवाब दें, कोई भी बात मुझ से मत छुपाएँ।”
15. यरमियाह ने एतिराज़ किया, “अगर मैं आप को साफ़ जवाब दूँ तो आप मुझे मार डालेंगे। और अगर मैं आप को मश्वरा दूँ भी तो आप उसे क़बूल नहीं करेंगे।”
16. तब सिदक़ियाह बादशाह ने अलाहिदगी में क़सम खा कर यरमियाह से वादा किया, “रब्ब की हयात की क़सम जिस ने हमें जान दी है, न मैं आप को मार डालूँगा, न आप के जानी दुश्मनों के हवाले करूँगा।”
17. तब यरमियाह बोला, “रब्ब जो लश्करों का और इस्राईल का ख़ुदा है फ़रमाता है, ‘अपने आप को शाह-ए-बाबल के अफ़्सरान के हवाले कर। फिर तेरी जान छूट जाएगी और यह शहर नज़र-ए-आतिश नहीं हो जाएगा। तू और तेरा ख़ान्दान जीता रहेगा।
18. दूसरी सूरत में इस शहर को बाबल के हवाले किया जाएगा और फ़ौजी इसे नज़र-ए-आतिश करेंगे। तू भी उन के हाथ से नहीं बचेगा’।”
19. लेकिन सिदक़ियाह बादशाह ने एतिराज़ किया, “मुझे उन हमवतनों से डर लगता है जो ग़द्दारी करके बाबल की फ़ौज के पास भाग गए हैं। हो सकता है कि बाबल के फ़ौजी मुझे उन के हवाले करें और वह मेरे साथ बदसुलूकी करें।”
20. यरमियाह ने जवाब दिया, “वह आप को उन के हवाले नहीं करेंगे। रब्ब की सुन कर वह कुछ करें जो मैं ने आप को बताया है। फिर आप की सलामती होगी और आप की जान छूट जाएगी।
21. लेकिन अगर आप शहर से निकल कर हथियार डालने के लिए तय्यार नहीं हैं तो फिर यह पैग़ाम सुनें जो रब्ब ने मुझ पर ज़ाहिर किया है!
22. शाही महल में जितनी ख़वातीन बच गई हैं उन सब को शाह-ए-बाबल के अफ़्सरों के पास पहुँचाया जाएगा। तब यह ख़वातीन आप के बारे में कहेंगी, ‘हाय, जिन आदमियों पर तू पूरा एतिमाद रखता था वह फ़रेब दे कर तुझ पर ग़ालिब आ गए हैं। तेरे पाँओ दल्दल में धँस गए हैं, लेकिन यह लोग ग़ाइब हो गए हैं।’
23. हाँ, तेरे तमाम बाल-बच्चों को बाहर बाबल की फ़ौज के पास लाया जाएगा। तू ख़ुद भी उन के हाथ से नहीं बचेगा बल्कि शाह-ए-बाबल तुझे पकड़ लेगा। यह शहर नज़र-ए-आतिश हो जाएगा।”
24. फिर सिदक़ियाह ने यरमियाह से कहा, “ख़बरदार! किसी को भी यह मालूम न हो कि हम ने क्या क्या बातें की हैं, वर्ना आप मर जाएँगे।
25. जब मेरे अफ़्सरों को पता चले कि मेरी आप से गुफ़्तगु हुई है तो वह आप के पास आ कर पूछेंगे, ‘तुम ने बादशाह से क्या बात की, और बादशाह ने तुम से क्या कहा? हमें साफ़ जवाब दो और झूट न बोलो, वर्ना हम तुम्हें मार डालेंगे।’
26. जब वह इस तरह की बातें करेंगे तो उन्हें सिर्फ़ इतना सा बताएँ, ‘मैं बादशाह से मिन्नत कर रहा था कि वह मुझे यूनतन के घर में वापस न भेजें, वर्ना मैं मर जाऊँगा’।”
27. ऐसा ही हुआ। तमाम सरकारी अफ़्सर यरमियाह के पास आए और उस से सवाल करने लगे। लेकिन उस ने उन्हें सिर्फ़ वह कुछ बताया जो बादशाह ने उसे कहने को कहा था। तब वह ख़ामोश हो गए, क्यूँकि किसी ने भी उस की बादशाह से गुफ़्तगु नहीं सुनी थी।
28. इस के बाद यरमियाह यरूशलम की शिकस्त तक शाही मुहाफ़िज़ों के सहन में क़ैदी रहा।

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