← Jeremiah (37/52) → |
1. | यहूदाह के बादशाह यहूयाकीन बिन यहूयक़ीम को तख़्त से उतारने के बाद शाह-ए-बाबल नबूकद्नज़्ज़र ने सिदक़ियाह बिन यूसियाह को तख़्त पर बिठा दिया। |
2. | लेकिन न सिदक़ियाह, न उस के अफ़्सरों या अवाम ने उन पैग़ामात पर ध्यान दिया जो रब्ब ने यरमियाह नबी की मारिफ़त फ़रमाए थे। |
3. | एक दिन सिदक़ियाह बादशाह ने यहूकल बिन सलमियाह और इमाम सफ़नियाह बिन मासियाह को यरमियाह के पास भेजा ताकि वह गुज़ारिश करें, “मेहरबानी करके रब्ब हमारे ख़ुदा से हमारी शफ़ाअत करें।” |
4. | यरमियाह को अब तक क़ैद में डाला नहीं गया था, इस लिए वह आज़ादी से लोगों में चल फिर सकता था। |
5. | उस वक़्त फ़िरऔन की फ़ौज मिस्र से निकल कर इस्राईल की तरफ़ बढ़ रही थी। जब यरूशलम का मुहासरा करने वाली बाबल की फ़ौज को यह ख़बर मिली तो वह वहाँ से पीछे हट गई। |
6. | तब रब्ब यरमियाह नबी से हमकलाम हुआ, |
7. | “रब्ब इस्राईल का ख़ुदा फ़रमाता है कि शाह-ए-यहूदाह ने तुम्हें मेरी मर्ज़ी दरयाफ़्त करने भेजा है। उसे जवाब दो कि फ़िरऔन की जो फ़ौज तुम्हारी मदद करने के लिए निकल आई है वह अपने मुल्क वापस लौटने को है। |
8. | फिर बाबल के फ़ौजी वापस आ कर यरूशलम पर हम्ला करेंगे। वह इसे अपने क़ब्ज़े में ले कर नज़र-ए-आतिश कर देंगे। |
9. | क्यूँकि रब्ब फ़रमाता है कि यह सोच कर धोका मत खाओ कि बाबल की फ़ौज ज़रूर हमें छोड़ कर चली जाएगी। ऐसा कभी नहीं होगा! |
10. | ख़्वाह तुम हम्लाआवर पूरी बाबली फ़ौज को शिकस्त क्यूँ न देते और सिर्फ़ ज़ख़्मी आदमी बचे रहते तो भी तुम नाकाम रहते, तो भी यह बाज़ एक आदमी अपने ख़ैमों में से निकल कर यरूशलम को नज़र-ए-आतिश करते।” |
11. | जब फ़िरऔन की फ़ौज इस्राईल की तरफ़ बढ़ने लगी तो बाबल के फ़ौजी यरूशलम को छोड़ कर पीछे हट गए। |
12. | उन दिनों में यरमियाह बिन्यमीन के क़बाइली इलाक़े के लिए रवाना हुआ, क्यूँकि वह अपने रिश्तेदारों के साथ कोई मौरूसी मिल्कियत तक़्सीम करना चाहता था। लेकिन जब वह शहर से निकलते हुए |
13. | बिन्यमीन के दरवाज़े तक पहुँच गया तो पहरेदारों का एक अफ़्सर उसे पकड़ कर कहने लगा, “तुम भगोड़े हो! तुम बाबल की फ़ौज के पास जाना चाहते हो!” अफ़्सर का नाम इरियाह बिन सलमियाह बिन हननियाह था। |
14. | यरमियाह ने एतिराज़ किया, “यह झूट है, मैं भगोड़ा नहीं हूँ! मैं बाबल की फ़ौज के पास नहीं जा रहा।” लेकिन इरियाह न माना बल्कि उसे गिरिफ़्तार करके सरकारी अफ़्सरों के पास ले गया। |
15. | उसे देख कर उन्हें यरमियाह पर ग़ुस्सा आया, और वह उस की पिटाई करा कर उसे शाही मुहर्रिर यूनतन के घर में लाए जिसे उन्हों ने क़ैदख़ाना बनाया था। |
16. | वहाँ उसे एक ज़मीनदोज़ कमरे में डाल दिया गया जो पहले हौज़ था और जिस की छत मेहराबदार थी। वह मुतअद्दिद दिन उस में बन्द रहा। |
17. | एक दिन सिदक़ियाह ने उसे महल में बुलाया। वहाँ अलाहिदगी में उस से पूछा, “क्या रब्ब की तरफ़ से मेरे लिए कोई पैग़ाम है?” यरमियाह ने जवाब दिया, “जी हाँ। आप को शाह-ए-बाबल के हवाले किया जाएगा।” |
18. | तब यरमियाह ने सिदक़ियाह बादशाह से अपनी बात जारी रख कर कहा, “मुझ से क्या जुर्म हुआ है? मैं ने आप के अफ़्सरों और अवाम के ख़िलाफ़ क्या क़ुसूर किया है कि मुझे जेल में डलवा दिया? |
19. | आप के वह नबी कहाँ हैं जिन्हों ने आप को पेशगोई सुनाई कि शाह-ए-बाबल न आप पर, न इस मुल्क पर हम्ला करेगा? |
20. | ऐ मेरे मालिक और बादशाह, मेहरबानी करके मेरी बात सुनें, मेरी गुज़ारिश पूरी करें! मुझे यूनतन मुहर्रिर के घर में वापस न भेजें, वर्ना मैं मर जाऊँगा।” |
21. | तब सिदक़ियाह बादशाह ने हुक्म दिया कि यरमियाह को शाही मुहाफ़िज़ों के सहन में रखा जाए। उस ने यह हिदायत भी दी कि जब तक शहर में रोटी दस्तयाब हो यरमियाह को नानबाई-गली से हर रोज़ एक रोटी मिलती रहे। चुनाँचे यरमियाह मुहाफ़िज़ों के सहन में रहने लगा। |
← Jeremiah (37/52) → |