Jeremiah (26/52)  

1. जब यहूयक़ीम बिन यूसियाह यहूदाह के तख़्त पर बैठ गया तो थोड़ी देर के बाद रब्ब का कलाम यरमियाह पर नाज़िल हुआ।
2. रब्ब ने फ़रमाया, “ऐ यरमियाह, रब्ब के घर के सहन में खड़ा हो कर उन तमाम लोगों से मुख़ातिब हो जो रब्ब के घर में सिज्दा करने के लिए यहूदाह के दीगर शहरों से आए हैं। उन्हें मेरा पूरा पैग़ाम सुना दे, एक बात भी न छोड़!
3. शायद वह सुनें और हर एक अपनी बुरी राह से बाज़ आ जाए। इस सूरत में मैं पछता कर उन पर वह सज़ा नाज़िल नहीं करूँगा जिस का मन्सूबा मैं ने उन के बुरे आमाल देख कर बाँध लिया है।
4. उन्हें बता, ‘रब्ब फ़रमाता है कि मेरी सुनो और मेरी उस शरीअत पर अमल करो जो मैं ने तुम्हें दी है।
5. नीज़, नबियों के पैग़ामात पर ध्यान दो। अफ़्सोस, गो मैं अपने ख़ादिमों को बार बार तुम्हारे पास भेजता रहा तो भी तुम ने उन की न सुनी।
6. अगर तुम आइन्दा भी न सुनो तो मैं इस घर को यूँ तबाह करूँगा जिस तरह मैं ने सैला का मक़्दिस तबाह किया था। मैं इस शहर को भी यूँ ख़ाक में मिला दूँगा कि इब्रतअंगेज़ मिसाल बन जाएगा। दुनिया की तमाम क़ौमों में जब कोई अपने दुश्मन पर लानत भेजना चाहे तो वह कहेगा कि उस का यरूशलम का सा अन्जाम हो’।”
7. जब यरमियाह ने रब्ब के घर में रब्ब के यह अल्फ़ाज़ सुनाए तो इमामों, नबियों और तमाम बाक़ी लोगों ने ग़ौर से सुना।
8. यरमियाह ने उन्हें सब कुछ पेश किया जो रब्ब ने उसे सुनाने को कहा था। लेकिन जूँ ही वह इख़तिताम पर पहुँच गया तो इमाम, नबी और बाक़ी तमाम लोग उसे पकड़ कर चीख़ने लगे, “तुझे मरना ही है!
9. तू रब्ब का नाम ले कर क्यूँ कह रहा है कि रब्ब का घर सैला की तरह तबाह हो जाएगा, और यरूशलम मल्बे का ढेर बन कर ग़ैरआबाद हो जाएगा?” ऐसी बातें कह कर तमाम लोगों ने रब्ब के घर में यरमियाह को घेरे रखा।
10. जब यहूदाह के बुज़ुर्गों को इस की ख़बर मिली तो वह शाही महल से निकल कर रब्ब के घर के पास पहुँचे। वहाँ वह रब्ब के घर के सहन के नए दरवाज़े में बैठ गए ताकि यरमियाह की अदालत करें।
11. तब इमामों और नबियों ने बुज़ुर्गों और तमाम लोगों के सामने यरमियाह पर इल्ज़ाम लगाया, “लाज़िम है कि इस आदमी को सज़ा-ए-मौत दी जाए! क्यूँकि इस ने इस शहर यरूशलम के ख़िलाफ़ नुबुव्वत की है। आप ने अपने कानों से यह बात सुनी है।”
12. तब यरमियाह ने बुज़ुर्गों और बाक़ी तमाम लोगों से कहा, “रब्ब ने ख़ुद मुझे यहाँ भेजा ताकि मैं रब्ब के घर और यरूशलम के ख़िलाफ़ उन तमाम बातों की पेशगोई करूँ जो आप ने सुनी हैं।
13. चुनाँचे अपनी राहों और आमाल को दुरुस्त करें! रब्ब अपने ख़ुदा की सुनें ताकि वह पछता कर आप पर वह सज़ा नाज़िल न करे जिस का एलान उस ने किया है।
14. जहाँ तक मेरा ताल्लुक़ है, मैं तो आप के हाथ में हूँ। मेरे साथ वह सुलूक करें जो आप को अच्छा और मुनासिब लगे।
15. लेकिन एक बात जान लें। अगर आप मुझे सज़ा-ए-मौत दें तो आप बेक़ुसूर के क़ातिल ठहरेंगे। आप और यह शहर उस के तमाम बाशिन्दों समेत क़ुसूरवार ठहरेंगे। क्यूँकि रब्ब ही ने मुझे आप के पास भेजा ताकि आप के सामने ही यह बातें करूँ।”
16. यह सुन कर बुज़ुर्गों और अवाम के तमाम लोगों ने इमामों और नबियों से कहा, “यह आदमी सज़ा-ए-मौत के लाइक़ नहीं है! क्यूँकि उस ने रब्ब हमारे ख़ुदा का नाम ले कर हम से बात की है।”
17. फिर मुल्क के कुछ बुज़ुर्ग खड़े हो कर पूरी जमाअत से मुख़ातिब हुए,
18. “जब हिज़क़ियाह यहूदाह का बादशाह था तो मोरशत के रहने वाले नबी मीकाह ने नुबुव्वत करके यहूदाह के तमाम बाशिन्दों से कहा, ‘रब-उल-अफ़्वाज फ़रमाता है कि सिय्यून पर खेत की तरह हल चलाया जाएगा, और यरूशलम मल्बे का ढेर बन जाएगा। रब्ब के घर की पहाड़ी पर गुंजान जंगल उगेगा।’
19. क्या यहूदाह के बादशाह हिज़क़ियाह या यहूदाह के किसी और शख़्स ने मीकाह को सज़ा-ए-मौत दी? हरगिज़ नहीं, बल्कि हिज़क़ियाह ने रब्ब का ख़ौफ़ मान कर उस का ग़ुस्सा ठंडा करने की कोशिश की। नतीजे में रब्ब ने पछता कर वह सज़ा उन पर नाज़िल न की जिस का एलान वह कर चुका था। सुनें, अगर हम यरमियाह को सज़ा-ए-मौत दें तो अपने आप पर सख़्त सज़ा लाएँगे।”
20. उन दिनों में एक और नबी भी यरमियाह की तरह रब्ब का नाम ले कर नुबुव्वत करता था। उस का नाम ऊरियाह बिन समायाह था, और वह क़िर्यत-यारीम का रहने वाला था। उस ने भी यरूशलम और यहूदाह के ख़िलाफ़ वही पेशगोइयाँ सुनाईं जो यरमियाह सुनाता था।
21. जब यहूयक़ीम बादशाह और उस के तमाम फ़ौजी और सरकारी अफ़्सरों ने उस की बातें सुनीं तो बादशाह ने उसे मार डालने की कोशिश की। लेकिन ऊरियाह को इस की ख़बर मिली, और वह डर कर भाग गया। चलते चलते वह मिस्र पहुँच गया।
22. तब यहूयक़ीम ने इल्नातन बिन अक्बोर और चन्द एक आदमियों को वहाँ भेज दिया।
23. वहाँ पहुँच कर वह ऊरियाह को पकड़ कर यहूयक़ीम के पास वापस लाए। बादशाह के हुक्म पर उस का सर क़लम कर दिया गया और उस की नाश को निचले तब्क़े के लोगों के क़ब्रिस्तान में दफ़नाया गया।
24. लेकिन यरमियाह की जान छूट गई। उसे अवाम के हवाले न किया गया, गो वह उसे मार डालना चाहते थे, क्यूँकि अख़ीक़ाम बिन साफ़न उस के हक़ में था।

  Jeremiah (26/52)