← Jeremiah (23/52) → |
1. | रब्ब फ़रमाता है, “उन गल्लाबानों पर अफ़्सोस जो मेरी चरागाह की भेड़ों को तबाह करके मुन्तशिर कर रहे हैं।” |
2. | इस लिए रब्ब जो इस्राईल का ख़ुदा है फ़रमाता है, “ऐ मेरी क़ौम को चराने वाले गल्लाबानो, मैं तुम्हारी शरीर हर्कतों की मुनासिब सज़ा दूँगा, क्यूँकि तुम ने मेरी भेड़ों की फ़िक्र नहीं की बल्कि उन्हें मुन्तशिर करके तित्तर-बित्तर कर दिया है।” रब्ब फ़रमाता है, “सुनो, मैं तुम्हारी शरीर हर्कतों से निपट लूँगा। |
3. | मैं ख़ुद अपने रेवड़ की बची हुई भेड़ों को जमा करूँगा। जहाँ भी मैं ने उन्हें मुन्तशिर कर दिया था, उन तमाम ममालिक से मैं उन्हें उन की अपनी चरागाह में वापस लाऊँगा। वहाँ वह फलें फूलेंगे, और उन की तादाद बढ़ती जाएगी। |
4. | मैं ऐसे गल्लाबानों को उन पर मुक़र्रर करूँगा जो उन की सहीह गल्लाबानी करेंगे। आइन्दा न वह ख़ौफ़ खाएँगे, न घबरा जाएँगे। एक भी गुम नहीं हो जाएगा।” यह रब्ब का फ़रमान है। |
5. | रब्ब फ़रमाता है, “वह वक़्त आने वाला है कि मैं दाऊद के लिए एक रास्तबाज़ कोंपल फूटने दूँगा, एक ऐसा बादशाह जो हिक्मत से हुकूमत करेगा, जो मुल्क में इन्साफ़ और रास्ती क़ाइम रखेगा। |
6. | उस के दौर-ए-हुकूमत में यहूदाह को छुटकारा मिलेगा और इस्राईल मह्फ़ूज़ ज़िन्दगी गुज़ारेगा। वह ‘रब्ब हमारी रास्तबाज़ी’ कहलाएगा। |
7. | चुनाँचे वह वक़्त आने वाला है जब लोग क़सम खाते वक़्त नहीं कहेंगे, ‘रब्ब की हयात की क़सम जो इस्राईलियों को मिस्र से निकाल लाया।’ |
8. | इस के बजाय वह कहेंगे, ‘रब्ब की हयात की क़सम जो इस्राईलियों को शिमाली मुल्क और दीगर उन तमाम ममालिक से निकाल लाया जिन में उस ने उन्हें मुन्तशिर कर दिया था।’ उस वक़्त वह दुबारा अपने ही मुल्क में बसेंगे।” यह रब्ब का फ़रमान है। |
9. | झूटे नबियों को देख कर मेरा दिल टूट गया है, मेरी तमाम हड्डियाँ लरज़ रही हैं। मैं नशे में धुत आदमी की मानिन्द हूँ। मै से मग़लूब शख़्स की तरह मैं रब्ब और उस के मुक़द्दस अल्फ़ाज़ के सबब से डगमगा रहा हूँ। |
10. | यह मुल्क ज़िनाकारों से भरा हुआ है, इस लिए उस पर अल्लाह की लानत है। ज़मीन झुलस गई है, बियाबान की चरागाहों की हरियाली मुरझा गई है। नबी ग़लत राह पर दौड़ रहे हैं, और जिस में वह ताक़तवर हैं वह ठीक नहीं। |
11. | रब्ब फ़रमाता है, “नबी और इमाम दोनों ही बेदीन हैं। मैं ने अपने घर में भी उन का बुरा काम पाया है। |
12. | इस लिए जहाँ भी चलें वह फिसल जाएँगे, वह अंधेरे में ठोकर खा कर गिर जाएँगे। क्यूँकि मैं मुक़र्ररा वक़्त पर उन पर आफ़त लाऊँगा।” यह रब्ब का फ़रमान है। |
13. | “मैं ने देखा कि सामरिया के नबी बाल के नाम में नुबुव्वत करके मेरी क़ौम इस्राईल को ग़लत राह पर लाए। यह क़ाबिल-ए-घिन है, |
14. | लेकिन जो कुछ मुझे यरूशलम के नबियों में नज़र आता है वह उतना ही घिनौना है। वह ज़िना करते और झूट के पैरोकार हैं। साथ साथ वह बदकारों की हौसलाअफ़्ज़ाई भी करते हैं, और नतीजे में कोई भी अपनी बदी से बाज़ नहीं आता। मेरी नज़र में वह सब सदूम की मानिन्द हैं। हाँ, यरूशलम के बाशिन्दे अमूरा के बराबर हैं।” |
15. | इस लिए रब्ब इन नबियों के बारे में फ़रमाता है, “मैं उन्हें कड़वा खाना खिलाऊँगा और ज़हरीला पानी पिलाऊँगा, क्यूँकि यरूशलम के नबियों ने पूरे मुल्क में बेदीनी फैलाई है।” |
16. | रब्ब-उल-अफ़्वाज फ़रमाता है, “नबियों की पेशगोइयों पर ध्यान मत देना। वह तुम्हें फ़रेब दे रहे हैं। क्यूँकि वह रब्ब का कलाम नहीं सुनाते बल्कि महज़ अपने दिल में से उभरने वाली रोया पेश करते हैं। |
17. | जो मुझे हक़ीर जानते हैं उन्हें वह बताते रहते हैं, ‘रब्ब फ़रमाता है कि हालात सहीह-सलामत रहेंगे।’ जो अपने दिलों की ज़िद के मुताबिक़ ज़िन्दगी गुज़ारते हैं, उन सब को वह तसल्ली दे कर कहते हैं, ‘तुम पर आफ़त नहीं आएगी।’ |
18. | लेकिन उन में से किस ने रब्ब की मजलिस में शरीक हो कर वह कुछ देखा और सुना है जो रब्ब बयान कर रहा है? किसी ने नहीं! किस ने तवज्जुह दे कर उस का कलाम सुना है? किसी ने नहीं! |
19. | देखो, रब्ब की ग़ज़बनाक आँधी चलने लगी है, उस का तेज़ी से घूमता हुआ बगूला बेदीनों के सरों पर मंडला रहा है। |
20. | और रब्ब का यह ग़ज़ब उस वक़्त तक ठंडा नहीं होगा जब तक उस के दिल का इरादा तक्मील तक न पहुँच जाए। आने वाले दिनों में तुम्हें इस की पूरी समझ आएगी। |
21. | यह नबी दौड़ कर अपनी बातें सुनाते रहते हैं अगरचि मैं ने उन्हें नहीं भेजा। गो मैं उन से हमकलाम नहीं हुआ तो भी यह पेशगोइयाँ करते हैं। |
22. | अगर यह मेरी मजलिस में शरीक होते तो मेरी क़ौम को मेरे अल्फ़ाज़ सुना कर उसे उस के बुरे चाल-चलन और ग़लत हर्कतों से हटाने की कोशिश करते।” |
23. | रब्ब फ़रमाता है, “क्या मैं सिर्फ़ क़रीब का ख़ुदा हूँ? हरगिज़ नहीं! मैं दूर का ख़ुदा भी हूँ। |
24. | क्या कोई मेरी नज़र से ग़ाइब हो सकता है? नहीं, ऐसी जगह है नहीं जहाँ वह मुझ से छुप सके। आस्मान-ओ-ज़मीन मुझ से मामूर रहते हैं।” यह रब्ब का फ़रमान है। |
25. | “इन नबियों की बातें मुझ तक पहुँच गई हैं। यह मेरा नाम ले कर झूट बोलते हैं कि मैं ने ख़्वाब देखा है, ख़्वाब देखा है! |
26. | यह नबी झूटी पेशगोइयाँ और अपने दिलों के वस्वसे सुनाने से कब बाज़ आएँगे? |
27. | जो ख़्वाब वह एक दूसरे को बताते हैं उन से वह चाहते हैं कि मेरी क़ौम मेरा नाम यूँ भूल जाए जिस तरह उन के बापदादा बाल की पूजा करने से मेरा नाम भूल गए थे।” |
28. | रब्ब फ़रमाता है, “जिस नबी ने ख़्वाब देखा हो वह बेशक अपना ख़्वाब बयान करे, लेकिन जिस पर मेरा कलाम नाज़िल हुआ हो वह वफ़ादारी से मेरा कलाम सुनाए। भूसे का गन्दुम से क्या वास्ता है?” |
29. | रब्ब फ़रमाता है, “क्या मेरा कलाम आग की मानिन्द नहीं? क्या वह हथौड़े की तरह चटान को टुकड़े टुकड़े नहीं करता?” |
30. | चुनाँचे रब्ब फ़रमाता है, “अब मैं उन नबियों से निपट लूँगा जो एक दूसरे के पैग़ामात चुरा कर दावा करते हैं कि वह मेरी तरफ़ से हैं।” |
31. | रब्ब फ़रमाता है, “मैं उन से निपट लूँगा जो अपने शख़्सी ख़यालात सुना कर दावा करते हैं, ‘यह रब्ब का फ़रमान है’।” |
32. | रब्ब फ़रमाता है, “मैं उन से निपट लूँगा जो झूटे ख़्वाब सुना कर मेरी क़ौम को अपनी धोकेबाज़ी और शेख़ी की बातों से ग़लत राह पर लाते हैं, हालाँकि मैं ने उन्हें न भेजा, न कुछ कहने को कहा था। उन लोगों का इस क़ौम के लिए कोई भी फ़ाइदा नहीं।” यह रब्ब का फ़रमान है। |
33. | “ऐ यरमियाह, अगर इस क़ौम के आम लोग या इमाम या नबी तुझ से पूछें, ‘आज रब्ब ने तुझ पर कलाम का क्या बोझ नाज़िल किया है?’ तो जवाब दे, ‘रब्ब फ़रमाता है कि तुम ही मुझ पर बोझ हो! लेकिन मैं तुम्हें उतार फैंकूँगा।’ |
34. | और अगर कोई नबी, इमाम या आम शख़्स दावा करे, ‘रब्ब ने मुझ पर कलाम का बोझ नाज़िल किया है’ तो मैं उसे उस के घराने समेत सज़ा दूँगा। |
35. | इस के बजाय एक दूसरे से सवाल करो कि ‘रब्ब ने क्या जवाब दिया?’ या ‘रब्ब ने क्या फ़रमाया?’ |
36. | आइन्दा रब्ब के पैग़ाम के लिए लफ़्ज़ ‘बोझ’ इस्तेमाल न करो, क्यूँकि जो भी बात तुम करो वह तुम्हारा अपना बोझ होगी। क्यूँकि तुम ज़िन्दा ख़ुदा के अल्फ़ाज़ को तोड़-मरोड़ कर बयान करते हो, उस कलाम को जो रब्ब-उल-अफ़्वाज हमारे ख़ुदा ने नाज़िल किया है। |
37. | चुनाँचे आइन्दा नबी से सिर्फ़ इतना ही पूछो कि ‘रब्ब ने तुझे क्या जवाब दिया?’ या ‘रब्ब ने क्या फ़रमाया?’ |
38. | लेकिन अगर तुम ‘रब्ब का बोझ’ कहने पर इस्रार करो तो रब्ब का जवाब सुनो! चूँकि तुम कहते हो कि ‘मुझ पर रब्ब का बोझ नाज़िल हुआ है’ गो मैं ने यह मना किया था, |
39. | इस लिए मैं तुमहें अपनी याद से मिटा कर यरूशलम समेत अपने हुज़ूर से दूर फैंक दूँगा, गो मैं ने ख़ुद यह शहर तुम्हें और तुम्हारे बापदादा को फ़राहम किया था। |
40. | मैं तुम्हारी अबदी रुस्वाई कराऊँगा, और तुम्हारी शर्मिन्दगी हमेशा तक याद रहेगी।” |
← Jeremiah (23/52) → |