Jeremiah (2/52)  

1. रब्ब का कलाम मुझ पर नाज़िल हुआ,
2. “जा, ज़ोर से यरूशलम के कान में पुकार कि रब्ब फ़रमाता है, ‘मुझे तेरी जवानी की वफ़ादारी ख़ूब याद है। जब तेरी शादी क़रीब आई तो तू मुझे कितना पियार करती थी, यहाँ तक कि तू रेगिस्तान में भी जहाँ खेतीबाड़ी नामुम्किन थी मेरे पीछे पीछे चलती रही।
3. उस वक़्त इस्राईल रब्ब के लिए मख़्सूस-ओ-मुक़द्दस था, वह उस की फ़सल का पहला फल था। जिस ने भी उस में से कुछ खाया वह मुज्रिम ठहरा, और उस पर आफ़त नाज़िल हुई। यह रब्ब का फ़रमान है’।”
4. ऐ याक़ूब की औलाद, रब्ब का कलाम सुनो! ऐ इस्राईल के तमाम घरानो, ध्यान दो!
5. रब्ब फ़रमाता है, “तुम्हारे बापदादा ने मुझ में कौन सी नाइन्साफ़ी पाई कि मुझ से इतने दूर हो गए? हेच बुतों के पीछे हो कर वह ख़ुद हेच हो गए।
6. उन्हों ने पूछा तक नहीं कि रब्ब कहाँ है जो हमें मिस्र से निकाल लाया और रेगिस्तान में सहीह राह दिखाई, गो वह इलाक़ा वीरान-ओ-सुन्सान था। हर तरफ़ घाटियों, पानी की सख़्त कमी और तारीकी का सामना करना पड़ा। न कोई उस में से गुज़रता, न कोई वहाँ रहता है।
7. मैं तो तुम्हें बाग़ों से भरे मुल्क में लाया ताकि तुम उस के फल और अच्छी पैदावार से लुत्फ़अन्दोज़ हो सको। लेकिन तुम ने क्या किया? मेरे मुल्क में दाख़िल होते ही तुम ने उसे नापाक कर दिया, और मैं अपनी मौरूसी मिल्कियत से घिन खाने लगा।
8. न इमामों ने पूछा कि रब्ब कहाँ है, न शरीअत को अमल में लाने वाले मुझे जानते थे। क़ौम के गल्लाबान मुझ से बेवफ़ा हुए, और नबी बेफ़ाइदा बुतों के पीछे लग कर बाल देवता के पैग़ामात सुनाने लगे।”
9. रब्ब फ़रमाता है, “इसी वजह से मैं आइन्दा भी अदालत में तुम्हारे साथ लड़ूँगा। हाँ, न सिर्फ़ तुम्हारे साथ बल्कि तुम्हारी आने वाली नसलों के साथ भी।
10. जाओ, समुन्दर को पार करके जज़ीरा-ए-क़ुब्रुस की तफ़्तीश करो! अपने क़ासिदों को मुल्क-ए-क़ीदार में भेज कर ग़ौर से दरयाफ़्त करो कि क्या वहाँ कभी यहाँ का सा काम हुआ है?
11. क्या किसी क़ौम ने कभी अपने देवताओं को तब्दील किया, गो वह हक़ीक़त में ख़ुदा नहीं हैं? हरगिज़ नहीं! लेकिन मेरी क़ौम अपनी शान-ओ-शौकत के ख़ुदा को छोड़ कर बेफ़ाइदा बुतों की पूजा करने लगी है।”
12. रब्ब फ़रमाता है, “ऐ आस्मान, यह देख कर हैबतज़दा हो जा, तेरे रोंगटे खड़े हो जाएँ, हक्का-बक्का रह जा!
13. क्यूँकि मेरी क़ौम से दो संगीन जुर्म सरज़द हुए हैं। एक, उन्हों ने मुझे तर्क किया, गो मैं ज़िन्दगी के पानी का सरचश्मा हूँ। दूसरे, उन्हों ने अपने ज़ाती हौज़ बनाए हैं जो दराड़ों की वजह से भर ही नहीं सकते।
14. क्या इस्राईल इबतिदा से ही ग़ुलाम है? क्या उस के वालिदैन ग़ुलाम थे कि वह अब तक ग़ुलाम है? हरगिज़ नहीं! तो फिर वह क्यूँ दूसरों का लूटा हुआ माल बन गया है?
15. जवान शेरबबर दहाड़ते हुए उस पर टूट पड़े हैं, गरजते गरजते उन्हों ने मुल्क-ए-इस्राईल को बर्बाद कर दिया है। उस के शहर नज़र-ए-आतिश हो कर वीरान-ओ-सुन्सान हो गए हैं।
16. साथ साथ मेम्फ़िस और तह्फ़न्हीस के लोग भी तेरे सर को मुंडवा रहे हैं।
17. ऐ इस्राईली क़ौम, क्या यह तेरे ग़लत काम का नतीजा नहीं? क्यूँकि तू ने रब्ब अपने ख़ुदा को उस वक़्त तर्क किया जब वह तेरी राहनुमाई कर रहा था।
18. अब मुझे बता कि मिस्र को जा कर दरया-ए-नील का पानी पीने का क्या फ़ाइदा? मुल्क-ए-असूर में जा कर दरया-ए-फ़ुरात का पानी पीने से क्या हासिल?
19. तेरा ग़लत काम तुझे सज़ा दे रहा है, तेरी बेवफ़ा हर्कतें ही तेरी सरज़निश कर रही हैं। चुनाँचे जान ले और ध्यान दे कि रब्ब अपने ख़ुदा को छोड़ कर उस का ख़ौफ़ न मानने का फल कितना बुरा और कड़वा है।” यह क़ादिर-ए-मुतलक़ रब्ब-उल-अफ़्वाज का फ़रमान है।
20. “क्यूँकि शुरू से ही तू अपने जूए और रस्सों को तोड़ कर कहती रही, ‘मैं तेरी ख़िदमत नहीं करूँगी!’ तू हर बुलन्दी पर और हर घने दरख़्त के साय में लेट कर इस्मतफ़रोशी करती रही।
21. पहले तू अंगूर की मख़्सूस और क़ाबिल-ए-एतिमाद नसल की पनीरी थी जिसे मैं ने ख़ुद ज़मीन में लगाया। तो यह क्या हुआ कि तू बिगड़ कर जंगली बेल बन गई?
22. अब तेरे क़ुसूर का दाग़ उतर नहीं सकता, ख़्वाह तू कितना खारी सोडा और साबुन क्यूँ न इस्तेमाल करे।” यह रब्ब क़ादिर-ए-मुतलक़ का फ़रमान है।
23. “तू किस तरह यह कहने की जुरअत कर सकती है कि मैं ने अपने आप को आलूदा नहीं किया, मैं बाल देवताओं के पीछे नहीं गई। वादी में अपनी हर्कतों पर तो ग़ौर कर! जान ले कि तुझ से क्या कुछ सरज़द हुआ है। तू बेमक़्सद इधर उधर भागने वाली ऊँटनी है।
24. बल्कि तू रेगिस्तान में रहने की आदी गधी ही है जो शहवत के मारे हाँपती है। मस्ती के इस आलम में कौन उस पर क़ाबू पा सकता है? जो भी उस से मिलना चाहे उसे ज़ियादा जिद्द-ओ-जह्द की ज़रूरत नहीं, क्यूँकि मस्ती के मौसम में वह हर एक के लिए हाज़िर है।
25. ऐ इस्राईल, इतना न दौड़ कि तेरे जूते घिस कर फट जाएँ और तेरा गला ख़ुश्क हो जाए। लेकिन अफ़्सोस, तू बज़िद है, ‘नहीं, मुझे छोड़ दे! मैं अजनबी माबूदों को पियार करती हूँ, और लाज़िम है कि मैं उन के पीछे भागती जाऊँ।’
26. सुनो! इस्राईली क़ौम के तमाम अफ़राद उन के बादशाहों, अफ़्सरों, इमामों और नबियों समेत शर्मिन्दा हो जाएँगे। वह पकड़े हुए चोर की सी शर्म मह्सूस करेंगे।
27. यह लोग लकड़ी के बुत से कहते हैं, ‘तू मेरा बाप है’ और पत्थर के देवता से, ‘तू ने मुझे जन्म दिया।’ लेकिन गो यह मेरी तरफ़ रुजू नहीं करते बल्कि अपना मुँह मुझ से फेर कर चलते हैं तो भी जूँ ही कोई आफ़त उन पर आ जाए तो यह मुझ से इल्तिजा करने लगते हैं कि आ कर हमें बचा!
28. अब यह बुत कहाँ हैं जो तू ने अपने लिए बनाए? वही खड़े हो कर दिखाएँ कि तुझे मुसीबत से बचा सकते हैं। ऐ यहूदाह, आख़िर जितने तेरे शहर हैं उतने तेरे देवता भी हैं।”
29. रब्ब फ़रमाता है, “तुम मुझ पर क्यूँ इल्ज़ाम लगाते हो? तुम तो सब मुझ से बेवफ़ा हो गए हो।
30. मैं ने तुम्हारे बच्चों को सज़ा दी, लेकिन बेफ़ाइदा। वह मेरी तर्बियत क़बूल नहीं करते। बल्कि तुम ने फाड़ने वाले शेरबबर की तरह अपने नबियों पर टूट कर उन्हें तल्वार से क़त्ल किया।
31. ऐ मौजूदा नसल, रब्ब के कलाम पर ध्यान दो! क्या मैं इस्राईल के लिए रेगिस्तान या तारीकतरीन इलाक़े की मानिन्द था? मेरी क़ौम क्यूँ कहती है, ‘अब हम आज़ादी से इधर उधर फिर सकते हैं, आइन्दा हम तेरे हुज़ूर नहीं आएँगे?’
32. क्या कुंवारी कभी अपने ज़ेवरात को भूल सकती है, या दुल्हन अपना उरूसी लिबास? हरगिज़ नहीं! लेकिन मेरी क़ौम बेशुमार दिनों से मुझे भूल गई है।
33. तू इश्क़ ढूँडने में कितनी माहिर है! बदकार औरतें भी तुझ से बहुत कुछ सीख लेती हैं।
34. तेरे लिबास का दामन बेगुनाह ग़रीबों के ख़ून से आलूदा है, गो तू ने उन्हें नक़बज़नी जैसा ग़लत काम करते वक़्त न पकड़ा। इस सब कुछ के बावुजूद भी
35. तू बज़िद है कि मैं बेक़ुसूर हूँ, अल्लाह का मुझ पर ग़ुस्सा ठंडा हो गया है। लेकिन मैं तेरी अदालत करूँगा, इस लिए कि तू कहती है, ‘मुझ से गुनाह सरज़द नहीं हुआ।’
36. तू कभी इधर, कभी इधर जा कर इतनी आसानी से अपना रुख़ क्यूँ बदलती है? यक़ीन कर कि जिस तरह तू अपने इत्तिहादी असूर से मायूस हो कर शर्मिन्दा हुई है उसी तरह तू नए इत्तिहादी मिस्र से भी नादिम हो जाएगी।
37. तू उस जगह से भी अपने हाथों को सर पर रख कर निकलेगी। क्यूँकि रब्ब ने उन्हें रद्द किया है जिन पर तू भरोसा रखती है। उन से तुझे मदद हासिल नहीं होगी।”

  Jeremiah (2/52)