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1. | रब्ब यरमियाह से हमकलाम हुआ, |
2. | “उठ और कुम्हार के घर में जा! वहाँ मैं तुझ से हमकलाम हूँगा।” |
3. | चुनाँचे मैं कुम्हार के घर में पहुँच गया। उस वक़्त वह चाक पर काम कर रहा था। |
4. | लेकिन मिट्टी का जो बर्तन वह अपने हाथों से तश्कील दे रहा था वह ख़राब हो गया। यह देख कर कुम्हार ने उसी मिट्टी से नया बर्तन बना दिया जो उसे ज़ियादा पसन्द था। |
5. | तब रब्ब मुझ से हमकलाम हुआ, |
6. | “ऐ इस्राईल, क्या मैं तुम्हारे साथ वैसा सुलूक नहीं कर सकता जैसा कुम्हार अपने बर्तन से करता है? जिस तरह मिट्टी कुम्हार के हाथ में तश्कील पाती है उसी तरह तुम मेरे हाथ में तश्कील पाते हो।” यह रब्ब का फ़रमान है। |
7. | “कभी मैं एलान करता हूँ कि किसी क़ौम या सल्तनत को जड़ से उखाड़ दूँगा, उसे गिरा कर तबाह कर दूँगा। |
8. | लेकिन कई बार यह क़ौम अपनी ग़लत राह को तर्क कर देती है। इस सूरत में मैं पछता कर उस पर वह आफ़त नहीं लाता जो मैं ने लाने को कहा था। |
9. | कभी मैं किसी क़ौम या सल्तनत को पनीरी की तरह लगाने और तामीर करने का एलान भी करता हूँ। |
10. | लेकिन अफ़्सोस, कई दफ़ा यह क़ौम मेरी नहीं सुनती बल्कि ऐसा काम करने लगती है जो मुझे नापसन्द है। इस सूरत में मैं पछता कर उस पर वह मेहरबानी नहीं करता जिस का एलान मैं ने किया था। |
11. | अब यहूदाह और यरूशलम के बाशिन्दों से मुख़ातिब हो कर कह, ‘रब्ब फ़रमाता है कि मैं तुम पर आफ़त लाने की तय्यारियाँ कर रहा हूँ, मैं ने तुम्हारे ख़िलाफ़ मन्सूबा बाँध लिया है। चुनाँचे हर एक अपनी ग़लत राह से हट कर वापस आए, हर एक अपना चाल-चलन और अपना रवय्या दुरुस्त करे।’ |
12. | लेकिन अफ़्सोस, यह एतिराज़ करेंगे, ‘दफ़ा करो! हम अपने ही मन्सूबे जारी रखेंगे। हर एक अपने शरीर दिल की ज़िद के मुताबिक़ ही ज़िन्दगी गुज़ारेगा’।” |
13. | इस लिए रब्ब फ़रमाता है, “दीगर अक़्वाम से दरयाफ़्त करो कि उन में कभी ऐसी बात सुनने में आई है। कुंवारी इस्राईल से निहायत घिनौना जुर्म हुआ है! |
14. | क्या लुब्नान की पथरीली चोटियों की बर्फ़ कभी पिघल कर ख़त्म हो जाती है? क्या दूरदराज़ चश्मों से बहने वाला बर्फ़ीला पानी कभी थम जाता है? |
15. | लेकिन मेरी क़ौम मुझे भूल गई है। यह लोग बातिल बुतों के सामने बख़ूर जलाते हैं, उन चीज़ों के सामने जिन के बाइस वह ठोकर खा कर क़दीम राहों से हट गए हैं और अब कच्चे रास्तों पर चल रहे हैं। |
16. | इस लिए उन का मुल्क वीरान हो जाएगा, एक ऐसी जगह जिसे दूसरे अपने मज़ाक़ का निशाना बनाएँगे। जो भी गुज़रे उस के रोंगटे खड़े हो जाएँगे, वह अफ़्सोस से अपना सर हिलाएगा। |
17. | दुश्मन आएगा तो मैं अपनी क़ौम को उस के आगे आगे मुन्तशिर करूँगा। जिस तरह गर्द मशरिक़ी हवा के तेज़ झोंकों से उड़ कर बिखर जाती है उसी तरह वह तित्तर-बित्तर हो जाएँगे। जब आफ़त उन पर नाज़िल होगी तो मैं उन की तरफ़ रुजू नहीं करूँगा बल्कि अपना मुँह उन से फेर लूँगा।” यरमियाह के ख़िलाफ़ साज़िश |
18. | यह सुन कर लोग आपस में कहने लगे, “आओ, हम यरमियाह के ख़िलाफ़ मन्सूबे बाँधें, क्यूँकि उस की बातें सहीह नहीं हैं। न इमाम शरीअत की हिदायत से, न दानिशमन्द अच्छे मश्वरों से, और न नबी अल्लाह के कलाम से महरूम हो जाएगा। आओ, हम ज़बानी उस पर हम्ला करें और उस की बातों पर ध्यान न दें, ख़्वाह वह कुछ भी क्यूँ न कहे।” |
19. | ऐ रब्ब, मुझ पर तवज्जुह दे और उस पर ग़ौर कर जो मेरे मुख़ालिफ़ कह रहे हैं। |
20. | क्या इन्सान को नेक काम के बदले में बुरा काम करना चाहिए? क्यूँकि उन्हों ने मुझे फंसाने के लिए गढ़ा खोद कर तय्यार कर रखा है। याद कर कि मैं ने तेरे हुज़ूर खड़े हो कर उन के लिए शफ़ाअत की ताकि तेरा ग़ज़ब उन पर नाज़िल न हो। |
21. | अब होने दे कि उन के बच्चे भूके मर जाएँ और वह ख़ुद तल्वार की ज़द में आएँ। उन की बीवियाँ बेऔलाद और शौहरों से महरूम हो जाएँ। उन के आदमियों को मौत के घाट उतारा जाए, उन के नौजवान जंग में लड़ते लड़ते हलाक हो जाएँ। |
22. | अचानक उन पर जंगी दस्ते ला ताकि उन के घरों से चीख़ों की आवाज़ें बुलन्द हों। क्यूँकि उन्हों ने मुझे पकड़ने के लिए गढ़ा तय्यार कर रखा है, उन्हों ने मेरे पाँओ को फंसाने के लिए मेरे रास्ते में फंदे छुपा रखे हैं। |
23. | ऐ रब्ब, तू उन की मुझे क़त्ल करने की तमाम साज़िशें जानता है। उन का क़ुसूर मुआफ़ न कर, और उन के गुनाहों को न मिटा बल्कि उन्हें हमेशा याद कर। होने दे कि वह ठोकर खा कर तेरे सामने गिर जाएँ। जब तेरा ग़ज़ब नाज़िल होगा तो उन से भी निपट ले। |
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