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1. | रब्ब मुझ से हमकलाम हुआ, |
2. | “इस मक़ाम में न तेरी शादी हो, न तेरे बेटे-बेटियाँ पैदा हो जाएँ।” |
3. | क्यूँकि रब्ब यहाँ पैदा होने वाले बेटे-बेटियों और उन के माँ-बाप के बारे में फ़रमाता है, |
4. | “वह मुहलक बीमारियों से मर कर खेतों में गोबर की तरह पड़े रहेंगे। न कोई उन पर मातम करेगा, न उन्हें दफ़नाएगा, क्यूँकि वह तल्वार और काल से हलाक हो जाएँगे, और उन की लाशें परिन्दों और दरिन्दों की ख़ुराक बन जाएँगी।” |
5. | रब्ब फ़रमाता है, “ऐसे घर में मत जाना जिस में कोई फ़ौत हो गया है । उस में न मातम करने के लिए, न अफ़्सोस करने के लिए दाख़िल होना। क्यूँकि अब से मैं इस क़ौम पर अपनी सलामती, मेहरबानी और रहम का इज़्हार नहीं करूँगा।” यह रब्ब का फ़रमान है। |
6. | “इस मुल्क के बाशिन्दे मर जाएँगे, ख़्वाह बड़े हों या छोटे। और न कोई उन्हें दफ़नाएगा, न मातम करेगा। कोई नहीं होगा जो ग़म के मारे अपनी जिल्द को काटे या अपने सर को मुंडवाए। |
7. | किसी का बाप या माँ भी इन्तिक़ाल कर जाए तो भी लोग मातम करने वाले घर में नहीं जाएँगे, न तसल्ली देने के लिए जनाज़े के खाने-पीने में शरीक होंगे। |
8. | ऐसे घर में भी दाख़िल न होना जहाँ लोग ज़ियाफ़त कर रहे हैं। उन के साथ खाने-पीने के लिए मत बैठना।” |
9. | क्यूँकि रब्ब-उल-अफ़्वाज जो इस्राईल का ख़ुदा है फ़रमाता है, “तुम्हारे जीते जी, हाँ तुम्हारे देखते देखते मैं यहाँ ख़ुशी-ओ-शादमानी की आवाज़ें बन्द कर दूँगा। अब से दूल्हा दुल्हन की आवाज़ें ख़ामोश हो जाएँगी। |
10. | जब तू इस क़ौम को यह सब कुछ बताएगा तो लोग पूछेंगे, ‘रब्ब इतनी बड़ी आफ़त हम पर लाने पर क्यूँ तुला हुआ है? हम से क्या जुर्म हुआ है? हम ने रब्ब अपने ख़ुदा का क्या गुनाह किया है?’ |
11. | उन्हें जवाब दे, ‘वजह यह है कि तुम्हारे बापदादा ने मुझे तर्क कर दिया। वह मेरी शरीअत के ताबे न रहे बल्कि मुझे छोड़ कर अजनबी माबूदों के पीछे लग गए और उन ही की ख़िदमत और पूजा करने लगे। |
12. | लेकिन तुम अपने बापदादा की निस्बत कहीं ज़ियादा ग़लत काम करते हो। देखो, मेरी कोई नहीं सुनता बल्कि हर एक अपने शरीर दिल की ज़िद के मुताबिक़ ज़िन्दगी गुज़ारता है। |
13. | इस लिए मैं तुमहें इस मुल्क से निकाल कर एक ऐसे मुल्क में फैंक दूँगा जिस से न तुम और न तुम्हारे बापदादा वाक़िफ़ थे। वहाँ तुम दिन रात अजनबी माबूदों की ख़िदमत करोगे, क्यूँकि उस वक़्त मैं तुम पर रहम नहीं करूँगा’।” |
14. | लेकिन रब्ब यह भी फ़रमाता है, “ऐसा वक़्त आने वाला है कि लोग क़सम खाते वक़्त नहीं कहेंगे, ‘रब्ब की हयात की क़सम जो इस्राईलियों को मिस्र से निकाल लाया।’ |
15. | इस के बजाय वह कहेंगे, ‘रब्ब की हयात की क़सम जो इस्राईलियों को शिमाली मुल्क और उन दीगर ममालिक से निकाल लाया जिन में उस ने उन्हें मुन्तशिर कर दिया था।’ क्यूँकि मैं उन्हें उस मुल्क में वापस लाऊँगा जो मैं ने उन के बापदादा को दिया था।” |
16. | लेकिन मौजूदा हाल के बारे में रब्ब फ़रमाता है, “मैं बहुत से माहीगीर भेज दूँगा जो जाल डाल कर उन्हें पकड़ेंगे। इस के बाद मैं मुतअद्दिद शिकारी भेज दूँगा जो उन का ताक़्क़ुब करके उन्हें हर जगह पकड़ेंगे, ख़्वाह वह किसी पहाड़ या टीले पर छुप गए हों, ख़्वाह चटानों की किसी दराड़ में। |
17. | क्यूँकि उन की तमाम हर्कतें मुझे नज़र आती हैं। मेरे सामने वह छुप नहीं सकते, और उन का क़ुसूर मेरे सामने पोशीदा नहीं है। |
18. | अब मैं उन्हें उन के गुनाहों की दुगनी सज़ा दूँगा, क्यूँकि उन्हों ने अपने बेजान बुतों और घिनौनी चीज़ों से मेरी मौरूसी ज़मीन को भर कर मेरे मुल्क की बेहुरमती की है।” |
19. | ऐ रब्ब, तू मेरी क़ुव्वत और मेरा क़िलआ है, मुसीबत के दिन मैं तुझ में पनाह लेता हूँ। दुनिया की इन्तिहा से अक़्वाम तेरे पास आ कर कहेंगी, “हमारे बापदादा को मीरास में झूट ही मिला, ऐसे बेकार बुत जो उन की मदद न कर सके। |
20. | इन्सान किस तरह अपने लिए ख़ुदा बना सकता है? उस के बुत तो ख़ुदा नहीं हैं।” |
21. | रब्ब फ़रमाता है, “चुनाँचे इस बार मैं उन्हें सहीह पहचान अता करूँगा। वह मेरी क़ुव्वत और ताक़त को पहचान लेंगे, और वह जान लेंगे कि मेरा नाम रब्ब है। |
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