James (2/5)  

1. मेरे भाइयो, लाज़िम है कि आप जो हमारे जलाली ख़ुदावन्द ईसा मसीह पर ईमान रखते हैं जानिबदारी न दिखाएँ।
2. फ़र्ज़ करें कि एक आदमी सोने की अंगूठी और शानदार कपड़े पहने हुए आप की जमाअत में आ जाए और साथ साथ एक ग़रीब आदमी भी मैले-कुचैले कपड़े पहने हुए अन्दर आए।
3. और आप शानदार कपड़े पहने हुए आदमी पर ख़ास ध्यान दे कर उस से कहें, “यहाँ इस अच्छी कुर्सी पर तश्रीफ़ रखें,” लेकिन ग़रीब आदमी को कहें, “वहाँ खड़ा हो जा” या “आ, मेरे पाँओ के पास फ़र्श पर बैठ जा।”
4. क्या आप ऐसा करने से मुज्रिमाना ख़यालात वाले मुन्सिफ़ नहीं साबित हुए? क्यूँकि आप ने लोगों में नारवा फ़र्क़ किया है।
5. मेरे अज़ीज़ भाइयो, सुनें! क्या अल्लाह ने उन्हें नहीं चुना जो दुनिया की नज़र में ग़रीब हैं ताकि वह ईमान में दौलतमन्द हो जाएँ? यही लोग वह बादशाही मीरास में पाएँगे जिस का वादा अल्लाह ने उन से किया है जो उसे पियार करते हैं।
6. लेकिन आप ने ज़रूरतमन्दों की बेइज़्ज़ती की है। ज़रा सोच लें, वह कौन हैं जो आप को दबाते और अदालत में घसीट कर ले जाते हैं? क्या यह दौलतमन्द ही नहीं हैं?
7. वही तो ईसा पर कुफ़्र बकते हैं, उस अज़ीम नाम पर जिस के पैरोकार आप बन गए हैं।
8. अल्लाह चाहता है कि आप कलाम-ए-मुक़द्दस में मज़्कूर शाही शरीअत पूरी करें, “अपने पड़ोसी से वैसी मुहब्बत रखना जैसी तू अपने आप से रखता है।”
9. चुनाँचे जब आप जानिबदारी दिखाते हैं तो गुनाह करते हैं और शरीअत आप को मुज्रिम ठहराती है।
10. मत भूलना कि जिस ने शरीअत का सिर्फ़ एक हुक्म तोड़ा है वह पूरी शरीअत का क़ुसूरवार ठहरता है।
11. क्यूँकि जिस ने फ़रमाया, “ज़िना न करना” उस ने यह भी कहा, “क़त्ल न करना।” हो सकता है कि आप ने ज़िना तो न किया हो, लेकिन किसी को क़त्ल किया हो। तो भी आप उस एक जुर्म की वजह से पूरी शरीअत तोड़ने के मुज्रिम बन गए हैं।
12. चुनाँचे जो कुछ भी आप कहते और करते हैं याद रखें कि आज़ाद करने वाली शरीअत आप की अदालत करेगी।
13. क्यूँकि अल्लाह अदालत करते वक़्त उस पर रहम नहीं करेगा जिस ने ख़ुद रहम नहीं दिखाया। लेकिन रहम अदालत पर ग़ालिब आ जाता है। जब आप रहम करेंगे तो अल्लाह आप पर रहम करेगा।
14. मेरे भाइयो, अगर कोई ईमान रखने का दावा करे, लेकिन उस के मुताबिक़ ज़िन्दगी न गुज़ारे तो उस का क्या फ़ाइदा है? क्या ऐसा ईमान उसे नजात दिला सकता है?
15. फ़र्ज़ करें कि कोई भाई या बहन कपड़ों और रोज़मर्रा रोटी की ज़रूरतमन्द हो।
16. यह देख कर आप में से कोई उस से कहे, “अच्छा जी, ख़ुदा हाफ़िज़। गर्म कपड़े पहनो और जी भर कर खाना खाओ।” लेकिन वह ख़ुद यह ज़रूरियात पूरी करने में मदद न करे। क्या इस का कोई फ़ाइदा है?
17. ग़रज़, महज़ ईमान काफ़ी नहीं। अगर वह नेक कामों से अमल में न लाया जाए तो वह मुर्दा है।
18. हो सकता है कोई एतिराज़ करे, “एक शख़्स के पास तो ईमान होता है, दूसरे के पास नेक काम।” आएँ, मुझे दिखाएँ कि आप नेक कामों के बग़ैर किस तरह ईमान रख सकते हैं। यह तो नामुम्किन है। लेकिन मैं ज़रूर आप को अपने नेक कामों से दिखा सकता हूँ कि मैं ईमान रखता हूँ।
19. अच्छा, आप कहते हैं, “हम ईमान रखते हैं कि एक ही ख़ुदा है।” शाबाश, यह बिलकुल सहीह है। शयातीन भी यह ईमान रखते हैं, गो वह यह जान कर ख़ौफ़ के मारे थरथराते हैं।
20. होश में आएँ! क्या आप नहीं समझते कि नेक आमाल के बग़ैर ईमान बेकार है?
21. हमारे बाप इब्राहीम पर ग़ौर करें। वह तो इसी वजह से रास्तबाज़ ठहराया गया कि उस ने अपने बेटे इस्हाक़ को क़ुर्बानगाह पर पेश किया।
22. आप ख़ुद देख सकते हैं कि उस का ईमान और नेक काम मिल कर अमल कर रहे थे। उस का ईमान तो उस से मुकम्मल हुआ जो कुछ उस ने किया
23. और इस तरह ही कलाम-ए-मुक़द्दस की यह बात पूरी हुई, “इब्राहीम ने अल्लाह पर भरोसा रखा। इस बिना पर अल्लाह ने उसे रास्तबाज़ क़रार दिया।” इसी वजह से वह “अल्लाह का दोस्त” कहलाया।
24. यूँ आप ख़ुद देख सकते हैं कि इन्सान अपने नेक आमाल की बिना पर रास्तबाज़ क़रार दिया जाता है, न कि सिर्फ़ ईमान रखने की वजह से।
25. राहब फ़ाहिशा की मिसाल भी लें। उसे भी अपने कामों की बिना पर रास्तबाज़ क़रार दिया गया जब उस ने इस्राईली जासूसों की मेहमान-नवाज़ी की और उन्हें शहर से निकलने का दूसरा रास्ता दिखा कर बचाया।
26. ग़रज़, जिस तरह बदन रूह के बग़ैर मुर्दा है उसी तरह ईमान भी नेक आमाल के बग़ैर मुर्दा है।

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