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1. | यक़ीनन रब्ब का बाज़ू छोटा नहीं कि वह बचा न सके, उस का कान बहरा नहीं कि सुन न सके। |
2. | हक़ीक़त में तुम्हारे बुरे कामों ने तुम्हें उस से अलग कर दिया, तुम्हारे गुनाहों ने उस का चिहरा तुम से छुपाए रखा, इस लिए वह तुम्हारी नहीं सुनता। |
3. | क्यूँकि तुम्हारे हाथ ख़ूनआलूदा, तुम्हारी उंगलियाँ गुनाह से नापाक हैं। तुम्हारे होंट झूट बोलते और तुम्हारी ज़बान शरीर बातें फुसफुसाती है। |
4. | अदालत में कोई मुन्सिफ़ाना मुक़द्दमा नहीं चलाता, कोई सच्चे दलाइल पेश नहीं करता। लोग सच्चाई से ख़ाली बातों पर एतिबार करके झूट बोलते हैं, वह बदकारी से हामिला हो कर बेदीनी को जन्म देते हैं। |
5. | वह ज़हरीले साँपों के अंडों पर बैठ जाते हैं ताकि बच्चे निकलें। जो उन के अंडे खाए वह मर जाता है, और अगर उन के अंडे दबाए तो ज़हरीला साँप निकल आता है। यह लोग मकड़ी के जाले तान लेते हैं, ऐसा कपड़ा जो पहनने के लिए बेकार है। अपने हाथों के बनाए हुए इस कपड़े से वह अपने आप को ढाँप नहीं सकते। उन के आमाल बुरे ही हैं, उन के हाथ तशद्दुद ही करते हैं। |
6. | वह ज़हरीले साँपों के अंडों पर बैठ जाते हैं ताकि बच्चे निकलें। जो उन के अंडे खाए वह मर जाता है, और अगर उन के अंडे दबाए तो ज़हरीला साँप निकल आता है। यह लोग मकड़ी के जाले तान लेते हैं, ऐसा कपड़ा जो पहनने के लिए बेकार है। अपने हाथों के बनाए हुए इस कपड़े से वह अपने आप को ढाँप नहीं सकते। उन के आमाल बुरे ही हैं, उन के हाथ तशद्दुद ही करते हैं। |
7. | जहाँ भी ग़लत काम करने का मौक़ा मिले वहाँ उन के पाँओ भाग कर पहुँच जाते हैं। वह बेक़ुसूर को क़त्ल करने के लिए तय्यार रहते हैं। उन के ख़यालात शरीर ही हैं, अपने पीछे वह तबाही-ओ-बर्बादी छोड़ जाते हैं। |
8. | न वह सलामती की राह जानते हैं, न उन के रास्तों में इन्साफ़ पाया जाता है। क्यूँकि उन्हों ने उन्हें टेढ़ा-मेढ़ा बना रखा है, और जो भी उन पर चले वह सलामती को नहीं जानता। |
9. | इसी लिए इन्साफ़ हम से दूर है, रास्ती हम तक पहुँचती नहीं। हम रौशनी के इन्तिज़ार में रहते हैं, लेकिन अफ़्सोस, अंधेरा ही अंधेरा नज़र आता है। हम आब-ओ-ताब की उम्मीद रखते हैं, लेकिन अफ़्सोस, जहाँ भी चलते हैं वहाँ घनी तारीकी छाई रहती है। |
10. | हम अंधों की तरह दीवार को हाथ से छू छू कर रास्ता मालूम करते हैं, आँखों से महरूम लोगों की तरह टटोल टटोल कर आगे बढ़ते हैं। दोपहर के वक़्त भी हम ठोकर खा खा कर यूँ फिरते हैं जैसे धुन्दल्का हो। गो हम तनआवर लोगों के दर्मियान रहते हैं, लेकिन ख़ुद मुर्दों की मानिन्द हैं। |
11. | हम सब निढाल हालत में रीछों की तरह ग़ुर्राते, कबूतरों की मानिन्द ग़ूँ ग़ूँ करते हैं। हम इन्साफ़ के इन्तिज़ार में रहते हैं, लेकिन बेसूद। हम नजात की उम्मीद रखते हैं, लेकिन वह हम से दूर ही रहती है। |
12. | क्यूँकि हमारे मुतअद्दिद जराइम तेरे सामने हैं, और हमारे गुनाह हमारे ख़िलाफ़ गवाही देते हैं। हमें मुतवातिर अपने जराइम का इह्सास है, हम अपने गुनाहों से ख़ूब वाक़िफ़ हैं। |
13. | हम मानते हैं कि रब्ब से बेवफ़ा रहे बल्कि उस का इन्कार भी किया है। हम ने अपना मुँह अपने ख़ुदा से फेर कर ज़ुल्म और धोके की बातें फैलाई हैं। हमारे दिलों में झूट का बीज बढ़ते बढ़ते मुँह में से निकला। |
14. | नतीजे में इन्साफ़ पीछे हट गया, और रास्ती दूर खड़ी रहती है। सच्चाई चौक में ठोकर खा कर गिर गई है, और दियानतदारी दाख़िल ही नहीं हो सकती। |
15. | चुनाँचे सच्चाई कहीं भी पाई नहीं जाती, और ग़लत काम से गुरेज़ करने वाले को लूटा जाता है। यह सब कुछ रब्ब को नज़र आया, और वह नाख़ुश था कि इन्साफ़ नहीं है। |
16. | उस ने देखा कि कोई नहीं है, वह हैरान हुआ कि मुदाख़लत करने वाला कोई नहीं है। तब उस के ज़ोरावर बाज़ू ने उस की मदद की, और उस की रास्ती ने उस को सहारा दिया। |
17. | रास्ती के ज़िराबक्तर से मुलब्बस हो कर उस ने सर पर नजात का ख़ोद रखा, इन्तिक़ाम का लिबास पहन कर उस ने ग़ैरत की चादर ओढ़ ली। |
18. | हर एक को वह उस का मुनासिब मुआवज़ा देगा। वह मुख़ालिफ़ों पर अपना ग़ज़ब नाज़िल करेगा और दुश्मनों से बदला लेगा बल्कि जज़ीरों को भी उन की हर्कतों का अज्र देगा। |
19. | तब इन्सान मग़रिब में रब्ब के नाम का ख़ौफ़ मानेंगे और मशरिक़ में उसे जलाल देंगे। क्यूँकि वह रब्ब की फूँक से चलाए हुए ज़ोरदार सैलाब की तरह उन पर टूट पड़ेगा। |
20. | रब्ब फ़रमाता है, “छुड़ाने वाला कोह-ए-सिय्यून पर आएगा। वह याक़ूब के उन फ़र्ज़न्दों के पास आएगा जो अपने गुनाहों को छोड़ कर वापस आएँगे।” |
21. | रब्ब फ़रमाता है, “जहाँ तक मेरा ताल्लुक़ है, उन के साथ मेरा यह अह्द है : मेरा रूह जो तुझ पर ठहरा हुआ है और मेरे अल्फ़ाज़ जो मैं ने तेरे मुँह में डाले हैं वह अब से अबद तक न तेरे मुँह से, न तेरी औलाद के मुँह से और न तेरी औलाद की औलाद से हटेंगे।” यह रब्ब का फ़रमान है। |
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