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1. | रब्ब फ़रमाता है, “इन्साफ़ को क़ाइम रखो और वह कुछ किया करो जो रास्त है, क्यूँकि मेरी नजात क़रीब ही है, और मेरी रास्ती ज़ाहिर होने को है। |
2. | मुबारक है वह जो यूँ रास्ती से लिपटा रहे। मुबारक है वह जो सबत के दिन की बेहुरमती न करे बल्कि उसे मनाए, जो हर बुरे काम से गुरेज़ करे।” |
3. | जो परदेसी रब्ब का पैरोकार हो गया है वह न कहे कि बेशक रब्ब मुझे अपनी क़ौम से अलग कर रखेगा। ख़्वाजासरा भी न सोचे कि हाय, मैं सूखा हुआ दरख़्त ही हूँ! |
4. | क्यूँकि रब्ब फ़रमाता है, “जो ख़्वाजासरा मेरे सबत के दिन मनाएँ, ऐसे क़दम उठाएँ जो मुझे पसन्द हों और मेरे अह्द के साथ लिपटे रहें वह बेफ़िक्र रहें। |
5. | क्यूँकि मैं उन्हें अपने घर और उस की चारदीवारी में ऐसी यादगार और ऐसा नाम अता करूँगा जो बेटे-बेटियाँ मिलने से कहीं बेहतर होगा। और जो नाम मैं उन्हें दूँगा वह अबदी होगा, वह कभी नहीं मिटने का। |
6. | वह परदेसी भी बेफ़िक्र रहें जो रब्ब के पैरोकार बन कर उस की ख़िदमत करना चाहते, जो रब्ब का नाम अज़ीज़ रख कर उस की इबादत करते, जो सबत के दिन की बेहुरमती नहीं करते बल्कि उसे मनाते और जो मेरे अह्द के साथ लिपटे रहते हैं। |
7. | क्यूँकि मैं उन्हें अपने मुक़द्दस पहाड़ के पास ला कर अपने दुआ के घर में ख़ुशी दिलाऊँगा। जब वह मेरी क़ुर्बानगाह पर अपनी भस्म होने वाली और ज़बह की क़ुर्बानियाँ चढ़ाएँगे तो वह मुझे पसन्द आएँगी । क्यूँकि मेरा घर तमाम क़ौमों के लिए दुआ का घर कहलाएगा।” |
8. | रब्ब क़ादिर-ए-मुतलक़ जो इस्राईल की बिखरी हुई क़ौम जमा कर रहा है फ़रमाता है, “उन में जो इकट्ठे हो चुके हैं मैं और भी जमा कर दूँगा।” |
9. | ऐ मैदान के तमाम हैवानो, आओ! ऐ जंगल के तमाम जानवरो, आ कर खाओ! |
10. | इस्राईल के पहरेदार अंधे हैं, सब के सब कुछ भी नहीं जानते। सब के सब बहरे कुत्ते हैं जो भौंक ही नहीं सकते। फ़र्श पर लेटे हुए वह अच्छे अच्छे ख़्वाब देखते रहते हैं। ऊँघना उन्हें कितना पसन्द है! |
11. | लेकिन यह कुत्ते लालची भी हैं और कभी सेर नहीं होते, हालाँकि गल्लाबान कहलाते हैं। वह समझ से ख़ाली हैं, और हर एक अपनी अपनी राह पर ध्यान दे कर अपने ही नफ़ा की तलाश में रहता है। |
12. | हर एक आवाज़ देता है, “आओ, मैं मै ले आता हूँ! आओ, हम जी भर कर शराब पी लें। और कल भी आज की तरह हो बल्कि इस से भी ज़ियादा रौनक़ हो!” |
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