Isaiah (55/66)  

1. “क्या तुम पियासे हो? आओ, सब पानी के पास आओ! क्या तुम्हारे पास पैसे नहीं? उधर आओ, सौदा ख़रीद कर खाना खाओ। यहाँ की मै और दूध मुफ़्त है। आओ, उसे पैसे दिए बग़ैर खरीदो।
2. उस पर पैसे क्यूँ ख़र्च करते हो जो रोटी नहीं है? जो सेर नहीं करता उस के लिए मेहनत-मशक़्क़त क्यूँ करते हो? सुनो, सुनो मेरी बात! फिर तुम अच्छी ख़ुराक खाओगे, बेहतरीन खाने से लुत्फ़अन्दोज़ होगे।
3. कान लगा कर मेरे पास आओ! सुनो तो जीते रहोगे। मैं तुम्हारे साथ अबदी अह्द बाँधूँगा, तुम्हें उन अनमिट मेहरबानियों से नवाज़ूँगा जिन का वादा दाऊद से किया था।
4. देख, मैं ने मुक़र्रर किया कि वह अक़्वाम के सामने मेरा गवाह हो, कि अक़्वाम का रईस और हुक्मरान हो।
5. देख, तू ऐसी क़ौम को बुलाएगा जिसे तू नहीं जानता, और तुझ से नावाक़िफ़ क़ौम रब्ब तेरे ख़ुदा की ख़ातिर तेरे पास दौड़ी चली आएगी। क्यूँकि जो इस्राईल का क़ुद्दूस है उस ने तुझे शान-ओ-शौकत अता की है।”
6. अभी रब्ब को तलाश करो जबकि उसे पाया जा सकता है। अभी उसे पुकारो जबकि वह क़रीब ही है।
7. बेदीन अपनी बुरी राह और शरीर अपने बुरे ख़यालात छोड़े। वह रब्ब के पास वापस आए तो वह उस पर रहम करेगा। वह हमारे ख़ुदा के पास वापस आए, क्यूँकि वह फ़राख़दिली से मुआफ़ कर देता है।
8. क्यूँकि रब्ब फ़रमाता है, “मेरे ख़यालात और तुम्हारे ख़यालात में और मेरी राहों और तुम्हारी राहों में बड़ा फ़र्क़ है।
9. जितना आस्मान ज़मीन से ऊँचा है उतनी ही मेरी राहें तुम्हारी राहों और मेरे ख़यालात तुम्हारे ख़यालात से बुलन्द हैं।
10. बारिश और बर्फ़ पर ग़ौर करो! ज़मीन पर पड़ने के बाद यह ख़ाली हाथ वापस नहीं आती बल्कि ज़मीन को यूँ सेराब करती है कि पौदे फूटने और फलने फूलने लगते हैं बल्कि पकते पकते बीज बोने वाले को बीज और भूके को रोटी मुहय्या करते हैं।
11. मेरे मुँह से निकला हुआ कलाम भी ऐसा ही है। वह ख़ाली हाथ वापस नहीं आएगा बल्कि मेरी मर्ज़ी पूरी करेगा और उस में काम्याब होगा जिस के लिए मैं ने उसे भेजा था।
12. क्यूँकि तुम ख़ुशी से निकलोगे, तुम्हें सलामती से लाया जाएगा। पहाड़ और पहाड़ियाँ तुम्हारे आने पर बाग़ बाग़ हो कर शादियाना बजाएँगी, और मैदान के तमाम दरख़्त तालियाँ बजाएँगे।
13. काँटेदार झाड़ी की बजाय जूनीपर का दरख़्त उगेगा, और बिच्छूबूटी की बजाय मेहंदी फले फूलेगी। यूँ रब्ब के नाम को जलाल मिलेगा, और उस की क़ुद्रत का अबदी और अनमिट निशान क़ाइम होगा।”

  Isaiah (55/66)