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1. | आओ, मैं अपने मह्बूब के लिए गीत गाऊँ, एक गीत जो उस के अंगूर के बाग़ के बारे में है। मेरे पियारे का बाग़ था। अंगूर का यह बाग़ ज़रख़ेज़ पहाड़ी पर था। |
2. | उस ने गोडी करते करते उस में से तमाम पत्थर निकाल दिए, फिर बेहतरीन अंगूर की क़लमें लगाईं। बीच में उस ने मीनार खड़ा किया ताकि उस की सहीह चौकीदारी कर सके। साथ साथ उस ने अंगूर का रस निकालने के लिए पत्थर में हौज़ तराश लिया। फिर वह पहली फ़सल का इन्तिज़ार करने लगा। बड़ी उम्मीद थी कि अच्छे मीठे अंगूर मिलेंगे। लेकिन अफ़्सोस! जब फ़सल पक गई तो छोटे और खट्टे अंगूर ही निकले थे। |
3. | “ऐ यरूशलम और यहूदाह के बाशिन्दो, अब ख़ुद फ़ैसला करो कि मैं उस बाग़ के साथ क्या करूँ। |
4. | क्या मैं ने बाग़ के लिए हर मुम्किन कोशिश नहीं की थी? क्या मुनासिब नहीं था कि मैं अच्छी फ़सल की उम्मीद रखूँ? क्या वजह है कि सिर्फ़ छोटे और खट्टे अंगूर निकले? |
5. | पता है कि मैं अपने बाग़ के साथ क्या करूँगा? मैं उस की काँटेदार बाड़ को ख़त्म करूँगा और उस की चारदीवारी गिरा दूँगा। उस में जानवर घुस आएँगे और चर कर सब कुछ तबाह करेंगे, सब कुछ पाँओ तले रौंद डालेंगे! |
6. | मैं उस की ज़मीन बंजर बना दूँगा। न उस की बेलों की काँट-छाँट होगी, न गोडी की जाएगी। वहाँ काँटेदार और ख़ुदरौ पौदे उगेंगे। न सिर्फ़ यह बल्कि मैं बादलों को भी उस पर बरसने से रोक दूँगा।” |
7. | सुनो, इस्राईली क़ौम अंगूर का बाग़ है जिस का मालिक रब्ब-उल-अफ़्वाज है। यहूदाह के लोग उस के लगाए हुए पौदे हैं जिन से वह लुत्फ़अन्दोज़ होना चाहता है। वह उम्मीद रखता था कि इन्साफ़ की फ़सल पैदा होगी, लेकिन अफ़्सोस! उन्हों ने ग़ैरक़ानूनी हर्कतें कीं। रास्ती की तवक़्क़ो थी, लेकिन मज़्लूमों की चीख़ें ही सुनाई दीं। |
8. | तुम पर अफ़्सोस जो यके बाद दीगरे घरों और खेतों को अपनाते जा रहे हो। आख़िरकार दीगर तमाम लोगों को निकलना पड़ेगा और तुम मुल्क में अकेले ही रहोगे। |
9. | रब्ब-उल-अफ़्वाज ने मेरी मौजूदगी में ही क़सम खाई है, “यक़ीनन यह मुतअद्दिद मकान वीरान-ओ-सुन्सान हो जाएँगे, इन बड़े और आलीशान घरों में कोई नहीं बसेगा। |
10. | दस एकड़ ज़मीन के अंगूरों से मै के सिर्फ़ 22 लिटर बनेंगे, और बीज के 160 किलोग्राम से ग़ल्ला के सिर्फ़ 16 किलोग्राम पैदा होंगे।” |
11. | तुम पर अफ़्सोस जो सुब्ह-सवेरे उठ कर शराब के पीछे पड़ जाते और रात भर मै पी पी कर मस्त हो जाते हो। |
12. | तुम्हारी ज़ियाफ़तों में कितनी रौनक़ होती है! तुम्हारे मेहमान मै पी पी कर सरोद, सितार, दफ़ और बाँसरी की सुरीली आवाज़ों से अपना दिल बहलाते हैं। लेकिन अफ़्सोस, तुम्हें ख़याल तक नहीं आता कि रब्ब क्या कर रहा है। जो कुछ रब्ब के हाथों हो रहा है उस का तुम लिहाज़ ही नहीं करते। |
13. | इसी लिए मेरी क़ौम जिलावतन हो जाएगी, क्यूँकि वह समझ से ख़ाली है। उस के बड़े अफ़्सर भूकों मरेंगे, और अवाम पियास के मारे सूख जाएँगे। |
14. | पाताल ने अपना मुँह फाड़ कर खोला है ताकि क़ौम की तमाम शान-ओ-शौकत, शोर-शराबा, हंगामा और शादमान अफ़राद उस के गले में उतर जाएँ। |
15. | इन्सान को ज़ेर करके ख़ाक में मिलाया जाएगा, और मग़रूर की आँखें नीची हो जाएँगी। |
16. | लेकिन रब्ब-उल-अफ़्वाज की अदालत उस की अज़्मत दिखाएगी, और क़ुद्दूस ख़ुदा की रास्ती ज़ाहिर करेगी कि वह क़ुद्दूस है। |
17. | उन दिनों में लेले और मोटी-ताज़ी भेड़ें जिलावतनों के खंडरात में यूँ चरेंगी जिस तरह अपनी चरागाहों में। |
18. | तुम पर अफ़्सोस जो अपने क़ुसूर को धोकेबाज़ रस्सों के साथ अपने पीछे खैंचते और अपने गुनाह को बैलगाड़ी की तरह अपने पीछे घसीटते हो। |
19. | तुम कहते हो, “अल्लाह जल्दी जल्दी अपना काम निपटाए ताकि हम इस का मुआइना करें। जो मन्सूबा इस्राईल का क़ुद्दूस रखता है वह जल्दी सामने आए ताकि हम उसे जान लें।” |
20. | तुम पर अफ़्सोस जो बुराई को भुला और भलाई को बुरा क़रार देते हो, जो कहते हो कि तारीकी रौशनी और रौशनी तारीकी है, कि कड़वाहट मीठी और मिठास कड़वी है। |
21. | तुम पर अफ़्सोस जो अपनी नज़र में दानिशमन्द हो और अपने आप को होश्यार समझते हो। |
22. | तुम पर अफ़्सोस जो मै पीने में पहलवान हो और शराब मिलाने में अपनी बहादुरी दिखाते हो। |
23. | तुम रिश्वत खा कर मुज्रिमों को बरी करते और बेक़ुसूरों के हुक़ूक़ मारते हो। |
24. | अब तुम्हें इस की सज़ा भुगतनी पड़ेगी। जिस तरह भूसा आग की लपेट में आ कर राख हो जाता और सूखी घास आग के शोले में चुरमुर हो जाती है उसी तरह तुम ख़त्म हो जाओगे। तुम्हारी जड़ें सड़ जाएँगी और तुम्हारे फूल गर्द की तरह उड़ जाएँगे, क्यूँकि तुम ने रब्ब-उल-अफ़्वाज की शरीअत को रद्द किया है, तुम ने इस्राईल के क़ुद्दूस का फ़रमान हक़ीर जाना है। |
25. | यही वजह है कि रब्ब का ग़ज़ब उस की क़ौम पर नाज़िल हुआ है, कि उस ने अपना हाथ बढ़ा कर उन पर हम्ला किया है। पहाड़ लरज़ रहे और गलियों में लाशें कचरे की तरह बिखरी हुई हैं। ताहम उस का ग़ुस्सा ठंडा नहीं होगा बल्कि उस का हाथ मारने के लिए उठा ही रहेगा। |
26. | वह एक दूरदराज़ क़ौम के लिए फ़ौजी झंडा गाड़ कर उसे अपनी क़ौम के ख़िलाफ़ खड़ा करेगा, वह सीटी बजा कर उसे दुनिया की इन्तिहा से बुलाएगा। वह देखो, दुश्मन भागते हुए आ रहे हैं! |
27. | उन में से कोई नहीं जो थकामाँदा हो या लड़खड़ा कर चले। कोई नहीं ऊँघता या सोया हुआ है। किसी का भी पटका ढीला नहीं, किसी का भी तस्मा टूटा नहीं। |
28. | उन के तीर तेज़ और कमान तने हुए हैं। उन के घोड़ों के खुर चक़्माक़ जैसे, उन के रथों के पहिए आँधी जैसे हैं। |
29. | वह शेरनी की तरह गरजते हैं बल्कि जवान शेरबबर की तरह दहाड़ते और ग़ुर्राते हुए अपना शिकार छीन कर वहाँ ले जाते हैं जहाँ उसे कोई नहीं बचा सकता। |
30. | उस दिन दुश्मन ग़ुर्राते और मुतलातिम समुन्दर का सा शोर मचाते हुए इस्राईल पर टूट पड़ेंगे। जहाँ भी देखो वहाँ अंधेरा ही अंधेरा और मुसीबत ही मुसीबत। बादल छा जाने के सबब से रौशनी तारीक हो जाएगी। |
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