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1. | ऐ याक़ूब के घराने, सुनो! तुम जो इस्राईल कहलाते और यहूदाह के क़बीले के हो, ध्यान दो! तुम जो रब्ब के नाम की क़सम खा कर इस्राईल के ख़ुदा को याद करते हो, अगरचि तुम्हारी बात न सच्चाई, न इन्साफ़ पर मब्नी है, ग़ौर करो! |
2. | हाँ तवज्जुह दो, तुम जो मुक़द्दस शहर के लोग कहलाते और इस्राईल के ख़ुदा पर एतिमाद करते हो, सुनो कि अल्लाह जिस का नाम रब्ब-उल-अफ़्वाज है क्या फ़रमाता है। |
3. | जो कुछ पेश आया है उस का एलान मैं ने बड़ी देर पहले किया। मेरे ही मुँह से उस की पेशगोई सादिर हुई, मैं ही ने उस की इत्तिला दी। फिर अचानक ही मैं उसे अमल में लाया और वह वुक़ूपज़ीर हुआ। |
4. | मैं जानता था कि तू कितना ज़िद्दी है। तेरे गले की नसें लोहे जैसी बेलचक और तेरी पेशानी पीतल जैसी सख़्त है। |
5. | यह जान कर मैं ने बड़ी देर पहले इन बातों की पेशगोई की। उन के पेश आने से पहले मैं ने तुझे उन की ख़बर दी ताकि तू दावा न कर सके, ‘मेरे बुत ने यह कुछ किया, मेरे तराशे और ढाले गए देवता ने इस का हुक्म दिया।’ |
6. | अब जब तू ने यह सुन लिया है तो सब कुछ पर ग़ौर कर। तू क्यूँ इन बातों को मानने के लिए तय्यार नहीं? अब से मैं तुझे नई नई बातें बताऊँगा, ऐसी पोशीदा बातें जो तुझे अब तक मालूम न थीं। |
7. | यह किसी क़दीम ज़माने में वुजूद में नहीं आईं बल्कि अभी अभी आज ही तेरे इल्म में आई हैं। क्यूँकि मैं नहीं चाहता था कि तू कहे, ‘मुझे पहले से इस का इल्म था।’ |
8. | चुनाँचे न यह बातें तेरे कान तक पहुँची हैं, न तू इन का इल्म रखता है, बल्कि क़दीम ज़माने से ही तेरा कान यह सुन नहीं सकता था। क्यूँकि मैं जानता था कि तू सरासर बेवफ़ा है, कि पैदाइश से ही नमकहराम कहलाता है। |
9. | तो भी मैं अपने नाम की ख़ातिर अपना ग़ज़ब नाज़िल करने से बाज़ रहता, अपनी तम्जीद की ख़ातिर अपने आप को तुझे नेस्त-ओ-नाबूद करने से रोके रखता हूँ। |
10. | देख, मैं ने तुझे पाक-साफ़ कर दिया है, लेकिन चाँदी को साफ़ करने की कुठाली में नहीं बल्कि मुसीबत की भट्टी में। उसी में मैं ने तुझे आज़्माया है। |
11. | अपनी ख़ातिर, हाँ अपनी ही ख़ातिर मैं यह सब कुछ करता हूँ, ऐसा न हो कि मेरे नाम की बेहुरमती हो जाए। क्यूँकि मैं इजाज़त नहीं दूँगा कि किसी और को वह जलाल दिया जाए जिस का सिर्फ़ मैं हक़दार हूँ। |
12. | ऐ याक़ूब की औलाद, मेरी सुन! ऐ मेरे बर्गुज़ीदा इस्राईल, ध्यान दे! मैं ही वही हूँ। मैं ही अव्वल-ओ-आख़िर हूँ। |
13. | मेरे ही हाथ ने ज़मीन की बुन्याद रखी, मेरे ही दहने हाथ ने आस्मान को ख़ैमे की तरह तान लिया। जब मैं आवाज़ देता हूँ तो सब मिल कर खड़े हो जाते हैं। |
14. | आओ, सब जमा हो कर सुनो! बुतों में से किस ने इस की पेशगोई की? किसी ने नहीं! जिस आदमी को रब्ब पियार करता है वह बाबल के ख़िलाफ़ उस की मर्ज़ी पूरी करेगा, बाबलियों पर उस की क़ुव्वत का इज़्हार करेगा। |
15. | मैं, हाँ मैं ही ने यह फ़रमाया। मैं ही उसे बुला कर यहाँ लाया हूँ, इस लिए वह ज़रूर काम्याब होगा। |
16. | मेरे क़रीब आ कर सुनो! शुरू से मैं ने अलानिया बात की, जब से यह पेश आया मैं हाज़िर हूँ।” और अब रब्ब क़ादिर-ए-मुतलक़ और उस के रूह ने मुझे भेजा है। |
17. | रब्ब जो तेरा छुड़ाने वाला और इस्राईल का क़ुद्दूस है फ़रमाता है, “मैं रब्ब तेरा ख़ुदा हूँ। मैं तुझे वह कुछ सिखाता हूँ जो मुफ़ीद है और तुझे उन राहों पर चलने देता हूँ जिन पर तुझे चलना है। |
18. | काश तू मेरे अह्काम पर ध्यान देता! तब तेरी सलामती बहते दरया जैसी और तेरी रास्तबाज़ी समुन्दर की मौजों जैसी होती। |
19. | तेरी औलाद रेत की मानिन्द होती, तेरे पेट का फल रेत के ज़र्रों जैसा अनगिनत होता। इस का इम्कान ही न होता कि तेरा नाम-ओ-निशान मेरे सामने से मिट जाए।” |
20. | बाबल से निकल जाओ! बाबलियों के बीच में से हिज्रत करो! ख़ुशी के नारे लगा लगा कर एलान करो, दुनिया की इन्तिहा तक ख़ुशख़बरी फैलाते जाओ कि रब्ब ने इवज़ाना दे कर अपने ख़ादिम याक़ूब को छुड़ाया है। |
21. | उन्हें पियास न लगी जब उस ने उन्हें रेगिस्तान में से गुज़रने दिया। उस के हुक्म पर पत्थर में से पानी बह निकला। जब उस ने चटान को चीर डाला तो पानी फूट निकला। |
22. | लेकिन रब्ब फ़रमाता है कि बेदीन सलामती नहीं पाएँगे। |
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