← Isaiah (41/66) → |
1. | “ऐ जज़ीरो, ख़ामोश रह कर मेरी बात सुनो! अक़्वाम अज़ सर-ए-नौ तक़वियत पाएँ और मेरे हुज़ूर आएँ, फिर बात करें। आओ, हम एक दूसरे से मिल कर अदालत में हाज़िर हो जाएँ! |
2. | कौन उस आदमी को जगा कर मशरिक़ से लाया है जिस के दामन में इन्साफ़ है? कौन दीगर क़ौमों को इस शख़्स के हवाले करके बादशाहों को ख़ाक में मिलाता है? उस की तल्वार से वह गर्द हो जाते हैं, उस की कमान से लोग हवा में भूसे की तरह उड़ कर बिखर जाते हैं। |
3. | वह उन का ताक़्क़ुब करके सहीह-सलामत आगे निकलता है, भागते हुए उस के पाँओ रास्ते को नहीं छूते। |
4. | किस ने यह सब कुछ किया, किस ने यह अन्जाम दिया? उसी ने जो इबतिदा ही से नसलों को बुलाता आया है। मैं, रब्ब अव्वल हूँ, और आख़िर में आने वालों के साथ भी मैं वही हूँ।” |
5. | जज़ीरे यह देख कर डर गए, दुनिया के दूरदराज़ इलाक़े काँप उठे हैं। वह क़रीब आते हुए |
6. | एक दूसरे को सहारा दे कर कहते हैं, “हौसला रख!” |
7. | दस्तकार सुनार की हौसलाअफ़्ज़ाई करता है, और जो बुत की नाहमवारियों को हथौड़े से ठीक करता है वह अहरन पर काम करने वाले की हिम्मत बढ़ाता और टाँके का मुआइना करके कहता है, “अब ठीक है!” फिर मिल कर बुत को कीलों से मज़्बूत करते हैं ताकि हिले न। |
8. | “लेकिन तू मेरे ख़ादिम इस्राईल, तू फ़र्क़ है। ऐ याक़ूब की क़ौम, मैं ने तुझे चुन लिया, और तू मेरे दोस्त इब्राहीम की औलाद है। |
9. | मैं तुझे पकड़ कर दुनिया की इन्तिहा से लाया, उस के दूरदराज़ कोनों से बुलाया। मैं ने फ़रमाया, ‘तू मेरा ख़ादिम है।’ मैं ने तुझे रद्द नहीं किया बल्कि तुझे चुन लिया है। |
10. | चुनाँचे मत डर, क्यूँकि मैं तेरे साथ हूँ। दह्शत मत खा, क्यूँकि मैं तेरा ख़ुदा हूँ। मैं तुझे मज़्बूत करता, तेरी मदद करता, तुझे अपने दहने हाथ के इन्साफ़ से क़ाइम रखता हूँ। |
11. | देख, जितने भी तेरे ख़िलाफ़ तैश में आ गए हैं वह सब शर्मिन्दा हो जाएँगे, उन का मुँह काला हो जाएगा। तुझ से झगड़ने वाले हेच ही साबित हो कर हलाक हो जाएँगे। |
12. | तब तू अपने मुख़ालिफ़ों का पता करेगा लेकिन उन का नाम-ओ-निशान तक नहीं मिलेगा। तुझ से लड़ने वाले ख़त्म ही होंगे, ऐसा ही लगेगा कि वह कभी थे नहीं। |
13. | क्यूँकि मैं रब्ब तेरा ख़ुदा हूँ। मैं तेरे दहने हाथ को पकड़ कर तुझे बताता हूँ, ‘मत डरना, मैं ही तेरी मदद करता हूँ।’ |
14. | ऐ कीड़े याक़ूब मत डर, ऐ छोटी क़ौम इस्राईल ख़ौफ़ मत खा। क्यूँकि मैं ही तेरी मदद करूँगा, और जो इवज़ाना दे कर तुझे छुड़ा रहा है वह इस्राईल का क़ुद्दूस है।” यह है रब्ब का फ़रमान। |
15. | “मेरे हाथ से तू गाहने का नया और मुतअद्दिद तेज़ नोकें रखने वाला आला बनेगा। तब तू पहाड़ों को गाह कर रेज़ा रेज़ा कर देगा, और पहाड़ियाँ भूसे की मानिन्द हो जाएँगी। |
16. | तू उन्हें उछाल उछाल कर उड़ाएगा तो हवा उन्हें ले जाएगी, आँधी उन्हें दूर तक बिखेर देगी। लेकिन तू रब्ब की ख़ुशी मनाएगा और इस्राईल के क़ुद्दूस पर फ़ख़र करेगा। |
17. | ग़रीब और ज़रूरतमन्द पानी की तलाश में हैं, लेकिन बेफ़ाइदा, उन की ज़बानें पियास के मारे ख़ुश्क हो गई हैं। लेकिन मैं, रब्ब उन की सुनूँगा, मैं जो इस्राईल का ख़ुदा हूँ उन्हें तर्क नहीं करूँगा। |
18. | मैं बंजर बुलन्दियों पर नदियाँ जारी करूँगा और वादियों में चश्मे फूटने दूँगा। मैं रेगिस्तान को जोहड़ में और सूखी सूखी ज़मीन को पानी के सोतों में बदल दूँगा। |
19. | मेरे हाथ से रेगिस्तान में देओदार, कीकर, मेहंदी और ज़ैतून के दरख़्त लगेंगे, बियाबान में जूनीपर, सनोबर और सर्व के दरख़्त मिल कर उगेंगे। |
20. | मैं यह इस लिए करूँगा कि लोग ध्यान दे कर जान लें कि रब्ब के हाथ ने यह सब कुछ किया है, कि इस्राईल के क़ुद्दूस ने यह पैदा किया है।” |
21. | रब्ब जो याक़ूब का बादशाह है फ़रमाता है, “आओ, अदालत में अपना मुआमला पेश करो, अपने दलाइल बयान करो। |
22. | आओ, अपने बुतों को ले आओ ताकि वह हमें बताएँ कि क्या क्या पेश आना है। माज़ी में क्या क्या हुआ? बताओ, ताकि हम ध्यान दें। या हमें मुस्तक़बिल की बातें सुनाओ, |
23. | वह कुछ जो आने वाले दिनों में होगा, ताकि हमें मालूम हो जाए कि तुम देवता हो। कम अज़ कम कुछ न कुछ करो, ख़्वाह अच्छा हो या बुरा, ताकि हम घबरा कर डर जाएँ। |
24. | तुम तो कुछ भी नहीं हो, और तुम्हारा काम भी बेकार है। जो तुम्हें चुन लेता है वह क़ाबिल-ए-घिन है। |
25. | अब मैं ने शिमाल से एक आदमी को जगा दिया है, और वह मेरा नाम ले कर मशरिक़ से आ रहा है। यह शख़्स हुक्मरानों को मिट्टी की तरह कुचल देता है, उन्हें गारे को नर्म करने वाले कुम्हार की तरह रौंद देता है। |
26. | किस ने इबतिदा से इस का एलान किया ताकि हमें इल्म हो? किस ने पहले से इस की पेशगोई की ताकि हम कहें, ‘उस ने बिलकुल सहीह कहा है’? कोई नहीं था जिस ने पहले से इस का एलान करके इस की पेशगोई की। कोई नहीं था जिस ने तुम्हारे मुँह से इस के बारे में एक लफ़्ज़ भी सुना। |
27. | किस ने सिय्यून को पहले बता दिया, ‘वह देखो, तेरा सहारा आने को है!’ मैं ही ने यह फ़रमाया, मैं ही ने यरूशलम को ख़ुशख़बरी का पैग़म्बर अता किया। |
28. | लेकिन जब मैं अपने इर्दगिर्द देखता हूँ तो कोई नहीं है जो मुझे मश्वरा दे, कोई नहीं जो मेरे सवाल का जवाब दे। |
29. | देखो, यह सब धोका ही धोका हैं। उन के काम हेच और उन के ढाले हुए मुजस्समे ख़ाली हवा ही हैं। |
← Isaiah (41/66) → |