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1. | तुम्हारा रब्ब फ़रमाता है, “तसल्ली दो, मेरी क़ौम को तसल्ली दो! |
2. | नर्मी से यरूशलम से बात करो, बुलन्द आवाज़ से उसे बताओ कि तेरी ग़ुलामी के दिन पूरे हो गए हैं, तेरा क़ुसूर मुआफ़ हो गया है। क्यूँकि तुझे रब्ब के हाथ से तमाम गुनाहों की दुगनी सज़ा मिल गई है।” |
3. | एक आवाज़ पुकार रही है, “रेगिस्तान में रब्ब की राह तय्यार करो! बियाबान में हमारे ख़ुदा का रास्ता सीधा बनाओ। |
4. | लाज़िम है कि हर वादी भर दी जाए, ज़रूरी है कि हर पहाड़ और बुलन्द जगह मैदान बन जाए। जो टेढ़ा है उसे सीधा किया जाए, जो नाहमवार है उसे हमवार किया जाए। |
5. | तब अल्लाह का जलाल ज़ाहिर हो जाएगा, और तमाम इन्सान मिल कर उसे देखेंगे। यह रब्ब के अपने मुँह का फ़रमान है।” |
6. | एक आवाज़ ने कहा, “ज़ोर से आवाज़ दे!” मैं ने पूछा, “मैं क्या कहूँ?” “यह कि तमाम इन्सान घास ही हैं, उन की तमाम शान-ओ-शौकत जंगली फूल की मानिन्द है। |
7. | जब रब्ब का साँस उन पर से गुज़रे तो घास मुरझा जाती और फूल गिर जाता है, क्यूँकि इन्सान घास ही है। |
8. | घास तो मुरझा जाती और फूल गिर जाता है, लेकिन हमारे ख़ुदा का कलाम अबद तक क़ाइम रहता है।” |
9. | ऐ सिय्यून, ऐ ख़ुशख़बरी के पैग़म्बर, बुलन्दियों पर चढ़ जा! ऐ यरूशलम, ऐ ख़ुशख़बरी के पैग़म्बर, ज़ोर से आवाज़ दे! पुकार कर कह और ख़ौफ़ मत खा। यहूदाह के शहरों को बता, “वह देखो, तुम्हारा ख़ुदा!” |
10. | देखो, रब्ब क़ादिर-ए-मुतलक़ बड़ी क़ुद्रत के साथ आ रहा है, वह बड़ी ताक़त के साथ हुकूमत करेगा। देखो, उस का अज्र उस के पास है, और उस का इनआम उस के आगे आगे चलता है। |
11. | वह चरवाहे की तरह अपने गल्ले की गल्लाबानी करेगा। वह भेड़ के बच्चों को अपने बाज़ूओं में मह्फ़ूज़ रख कर सीने के साथ लगाए फिरेगा और उन की माओं को बड़े ध्यान से अपने साथ ले चलेगा। |
12. | किस ने अपने हाथ से दुनिया का पानी नाप लिया है? किस ने अपने हाथ से आस्मान की पैमाइश की है? किस ने ज़मीन की मिट्टी की मिक़्दार मालूम की या तराज़ू से पहाड़ों का कुल वज़न मुतअय्यिन किया है? |
13. | किस ने रब्ब के रूह की तह्क़ीक़ कर पाई? क्या उस का कोई मुशीर है जो उसे तालीम दे? |
14. | क्या उसे किसी से मश्वरा लेने की ज़रूरत है ताकि उसे समझ आ कर रास्त राह की तालीम मिल जाए? हरगिज़ नहीं! क्या किसी ने कभी उसे इल्म-ओ-इर्फ़ान या समझदार ज़िन्दगी गुज़ारने का फ़न सिखाया है? हरगिज़ नहीं! |
15. | यक़ीनन तमाम अक़्वाम रब्ब के नज़्दीक बाल्टी के एक क़तरे या तराज़ू में गर्द की मानिन्द हैं। जज़ीरों को वह रेत के ज़र्रों की तरह उठा लेता है। |
16. | ख़्वाह लुब्नान के तमाम दरख़्त और जानवर रब्ब के लिए क़ुर्बान क्यूँ न होते तो भी मुनासिब क़ुर्बानी के लिए काफ़ी न होते। |
17. | उस के सामने तमाम अक़्वाम कुछ भी नहीं हैं। उस की नज़र में वह हेच और नाचीज़ हैं। |
18. | अल्लाह का मुवाज़ना किस से हो सकता है? उस का मुक़ाबला किस तस्वीर या मुजस्समे से हो सकता है? |
19. | बुत तो यूँ बनता है कि पहले दस्तकार उसे ढाल देता है, फिर सुनार उस पर सोना चढ़ा कर उसे चाँदी की ज़न्जीरों से सजा देता है। |
20. | जो ग़ुर्बत के बाइस यह नहीं करवा सकता वह कम अज़ कम कोई ऐसी लकड़ी चुन लेता है जो गल सड़ नहीं जाती। फिर वह किसी माहिर दस्तकार से बुत को यूँ बनवाता है कि वह अपनी जगह से न हिले। |
21. | क्या तुम को मालूम नहीं? क्या तुम ने बात नहीं सुनी? क्या तुम्हें इबतिदा से सुनाया नहीं गया? क्या तुम्हें दुनिया के क़ियाम से ले कर आज तक समझ नहीं आई? |
22. | रब्ब रू-ए-ज़मीन के ऊपर बुलन्दियों पर तख़्तनशीन है जहाँ से इन्सान टिड्डियों जैसे लगते हैं। वह आस्मान को पर्दे की तरह तान कर और हर तरफ़ खैंच कर रहने के क़ाबिल ख़ैमा बना देता है। |
23. | वह सरदारों को नाचीज़ और दुनिया के क़ाज़ियों को हेच बना देता है। |
24. | वह नए पौदों की मानिन्द हैं जिन की पनीरी अभी अभी लगी है, बीज अभी अभी बोए गए हैं, पौदों ने अभी अभी जड़ पकड़ी है कि रब्ब उन पर फूँक मारता है और वह मुरझा जाते हैं। तब आँधी उन्हें भूसे की तरह उड़ा ले जाती है। |
25. | क़ुद्दूस ख़ुदा फ़रमाता है, “तुम मेरा मुवाज़ना किस से करना चाहते हो? कौन मेरे बराबर है?” |
26. | अपनी नज़र उठा कर आस्मान की तरफ़ देखो। किस ने यह सब कुछ ख़लक़ किया? वह जो आस्मानी लश्कर की पूरी तादाद बाहर ला कर हर एक को नाम ले कर बुलाता है। उस की क़ुद्रत और ज़बरदस्त ताक़त इतनी अज़ीम है कि एक भी दूर नहीं रहता। |
27. | ऐ याक़ूब की क़ौम, तू क्यूँ कहती है कि मेरी राह रब्ब की नज़र से छुपी रहती है? ऐ इस्राईल, तू क्यूँ शिकायत करता है कि मेरा मुआमला मेरे ख़ुदा के इल्म में नहीं आता? |
28. | क्या तुझे मालूम नहीं, क्या तू ने नहीं सुना कि रब्ब लाज़वाल ख़ुदा और दुनिया की इन्तिहा तक का ख़ालिक़ है? वह कभी नहीं थकता, कभी निढाल नहीं होता। कोई भी उस की समझ की गहराइयों तक नहीं पहुँच सकता। |
29. | वह थकेमान्दों को ताज़गी और बेबसों को तक़वियत देता है। |
30. | गो नौजवान थक कर निढाल हो जाएँ और जवान आदमी ठोकर खा कर गिर जाएँ, |
31. | लेकिन रब्ब से उम्मीद रखने वाले नई ताक़त पाएँगे और उक़ाब के से पर फैला कर बुलन्दियों तक उड़ेंगे। न वह दौड़ते हुए थकेंगे, न चलते हुए निढाल हो जाएँगे। |
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