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1. | ऐ अरीएल, अरीएल , तुझ पर अफ़्सोस! ऐ शहर जिस में दाऊद ख़ैमाज़न था, तुझ पर अफ़्सोस! चलो, साल-ब-साल अपने तहवार मनाते रहो। |
2. | लेकिन मैं अरीएल को यूँ घेर कर तंग करूँगा कि उस में आह-ओ-ज़ारी सुनाई देगी। तब यरूशलम मेरे नज़्दीक सहीह मानों में अरीएल साबित होगा। |
3. | क्यूँकि मैं तुझे हर तरफ़ से पुश्ताबन्दी से घेर कर बन्द रखूँगा, तेरे मुहासरे का पूरा बन्द-ओ-बस्त करूँगा। |
4. | तब तू इतना पस्त होगा कि ख़ाक में से बोलेगा, तेरी दबी दबी आवाज़ गर्द में से निकलेगी। जिस तरह मुर्दा रूह ज़मीन के अन्दर से सरगोशी करती है उसी तरह तेरी धीमी धीमी आवाज़ ज़मीन में से निकलेगी। |
5. | लेकिन अचानक तेरे मुतअद्दिद दुश्मन बारीक धूल की तरह उड़ जाएँगे, ज़ालिमों का ग़ोल हवा में भूसे की तरह तित्तर-बित्तर हो जाएगा। क्यूँकि अचानक, एक ही लम्हे में |
6. | रब्ब-उल-अफ़्वाज उन पर टूट पड़ेगा। वह बिजली की कड़कती आवाज़ें, ज़ल्ज़ला, बड़ा शोर, तेज़ आँधी, तूफ़ान और भस्म करने वाली आग के शोले अपने साथ ले कर शहर की मदद करने आएगा। |
7. | तब अरीएल से लड़ने वाली तमाम क़ौमों के ग़ोल ख़्वाब जैसे लगेंगे। जो यरूशलम पर हम्ला करके उस का मुहासरा कर रहे और उसे तंग कर रहे थे वह रात में रोया जैसे ग़ैरहक़ीक़ी लगेंगे। |
8. | तुम्हारे दुश्मन उस भूके आदमी की मानिन्द होंगे जो ख़्वाब में देखता है कि मैं खाना खा रहा हूँ, लेकिन फिर जाग कर जान लेता है कि मैं वैसे का वैसा भूका हूँ। तुम्हारे मुख़ालिफ़ उस पियासे आदमी की मानिन्द होंगे जो ख़्वाब में देखता है कि मैं पानी पी रहा हूँ, लेकिन फिर जाग कर जान लेता है कि मैं वैसे का वैसा निढाल और पियासा हूँ। यही उन तमाम बैन-उल-अक़्वामी ग़ोलों का हाल होगा जो कोह-ए-सिय्यून से जंग करेंगे। |
9. | हैरतज़दा हो कर हक्का-बक्का रह जाओ! अंधे हो कर नाबीना हो जाओ! मत्वाले हो जाओ, लेकिन मै से नहीं। लड़खड़ाते जाओ, लेकिन शराब से नहीं। |
10. | क्यूँकि रब्ब ने तुम्हें गहरी नींद सुला दिया है, उस ने तुम्हारी आँखों यानी नबियों को बन्द किया और तुम्हारे सरों यानी रोया देखने वालों पर पर्दा डाल दिया है। |
11. | इस लिए जो भी कलाम नाज़िल हुआ है वह तुम्हारे लिए सर-ब-मुहर किताब ही है। अगर उसे किसी पढ़े-लिखे आदमी को दिया जाए ताकि पढ़े तो वह जवाब देगा, “यह पढ़ा नहीं जा सकता, क्यूँकि इस पर मुहर है।” |
12. | और अगर उसे किसी अनपढ़ आदमी को दिया जाए तो वह कहेगा, “मैं अनपढ़ हूँ।” |
13. | रब्ब फ़रमाता है, “यह क़ौम मेरे हुज़ूर आ कर अपनी ज़बान और होंटों से तो मेरा एहतिराम करती है, लेकिन उस का दिल मुझ से दूर है। उन की ख़ुदातरसी सिर्फ़ इन्सान ही के रटे-रटाए अह्काम पर मब्नी है। |
14. | इस लिए आइन्दा भी मेरा इस क़ौम के साथ सुलूक हैरतअंगेज़ होगा। हाँ, मेरा सुलूक अजीब-ओ-ग़रीब होगा। तब उस के दानिशमन्दों की दानिश जाती रहेगी, और उस के समझदारों की समझ ग़ाइब हो जाएगी।” |
15. | उन पर अफ़्सोस जो अपना मन्सूबा ज़मीन की गहराइयों में दबा कर रब्ब से छुपाने की कोशिश करते हैं, जो तारीकी में अपने काम करके कहते हैं, “कौन हमें देख लेगा, कौन हमें पहचान लेगा?” |
16. | तुम्हारी कजरवी पर लानत! क्या कुम्हार को उस के गारे के बराबर समझा जाता है? क्या बनी हुई चीज़ बनाने वाले के बारे में कहती है, “उस ने मुझे नहीं बनाया”? या क्या जिस को तश्कील दिया गया है वह तश्कील देने वाले के बारे में कहता है, “वह कुछ नहीं समझता”? हरगिज़ नहीं! |
17. | थोड़ी ही देर के बाद लुब्नान का जंगल फलते फूलते बाग़ में तब्दील होगा जबकि फलता फूलता बाग़ जंगल सा लगेगा। |
18. | उस दिन बहरे किताब की तिलावत सुनेंगे, और अंधों की आँखें अंधेरे और तारीकी में से निकल कर देख सकेंगी। |
19. | एक बार फिर फ़रोतन रब्ब की ख़ुशी मनाएँगे, और मुह्ताज इस्राईल के क़ुद्दूस के बाइस शादियाना बजाएँगे। |
20. | ज़ालिम का नाम-ओ-निशान नहीं रहेगा, तानाज़न ख़त्म हो जाएँगे, और दूसरों की ताक में बैठने वाले सब के सब रू-ए-ज़मीन पर से मिट जाएँगे। |
21. | यही उन का अन्जाम होगा जो अदालत में दूसरों को क़ुसूरवार ठहराते, शहर के दरवाज़े में अदालत करने वाले क़ाज़ी को फंसाने की कोशिश करते और झूटी गवाहियों से बेक़ुसूर का हक़ मारते हैं। |
22. | चुनाँचे रब्ब जिस ने पहले इब्राहीम का भी फ़िद्या दे कर उसे छुड़ाया था याक़ूब के घराने से फ़रमाता है, “अब से याक़ूब शर्मिन्दा नहीं होगा, अब से इस्राईलियों का रंग फ़क़ नहीं पड़ जाएगा। |
23. | जब वह अपने दर्मियान अपने बच्चों को जो मेरे हाथों का काम हैं देखेंगे तो वह मेरे नाम को मुक़द्दस मानेंगे। वह याक़ूब के क़ुद्दूस को मुक़द्दस जानेंगे और इस्राईल के ख़ुदा का ख़ौफ़ मानेंगे। |
24. | उस वक़्त जिन की रूह आवारा है वह समझ हासिल करेंगे, और बुड़बुड़ाने वाले तालीम क़बूल करेंगे।” |
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