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1. | सामरिया पर अफ़्सोस जो इस्राईली शराबियों का शानदार ताज है। उस शहर पर अफ़्सोस जो इस्राईल की शान-ओ-शौकत था लेकिन अब मुरझाने वाला फूल है। उस आबादी पर अफ़्सोस जो नशे में धुत लोगों की ज़रख़ेज़ वादी के ऊपर तख़्तनशीन है। |
2. | देखो, रब्ब एक ज़बरदस्त सूर्मा भेजेगा जो ओलों के तूफ़ान, तबाहकुन आँधी और सैलाब पैदा करने वाली मूसलाधार बारिश की तरह सामरिया पर टूट पड़ेगा और ज़ोर से उसे ज़मीन पर पटख़ देगा। |
3. | तब इस्राईली शराबियों का शानदार ताज सामरिया पाँओ तले रौंदा जाएगा। |
4. | तब यह मुरझाने वाला फूल जो ज़रख़ेज़ वादी के ऊपर तख़्तनशीन है और उस की शान-ओ-शौकत ख़त्म हो जाएगी। उस का हाल फ़सल से पहले पकने वाले अन्जीर जैसा होगा। क्यूँकि जूँ ही कोई उसे देखे वह उसे तोड़ कर हड़प कर लेगा। |
5. | उस दिन रब्ब-उल-अफ़्वाज ख़ुद इस्राईल का शानदार ताज होगा, वह अपनी क़ौम के बचे हुओं का जलाली सिहरा होगा। |
6. | वह अदालत करने वाले को इन्साफ़ की रूह दिलाएगा और शहर के दरवाज़े पर दुश्मन को पीछे धकेलने वालों के लिए ताक़त का बाइस होगा। |
7. | लेकिन यह लोग भी मै के असर से डगमगा रहे और शराब पी पी कर लड़खड़ा रहे हैं। इमाम और नबी नशे में झूम रहे हैं। मै पीने से उन के दिमाग़ों में ख़लल आ गया है, शराब पी पी कर वह चक्कर खा रहे हैं। रोया देखते वक़्त वह झूमते, फ़ैसले करते वक़्त झूलते हैं। |
8. | तमाम मेज़ें उन की क़ै से गन्दी हैं, उन की ग़िलाज़त हर तरफ़ नज़र आती है। |
9. | वह आपस में कहते हैं, “यह शख़्स हमारे साथ इस क़िस्म की बातें क्यूँ करता है? हमें तालीम देते और इलाही पैग़ाम का मतलब सुनाते वक़्त वह हमें यूँ समझाता है गोया हम छोटे बच्चे हों जिन का दूध अभी अभी छुड़ाया गया हो। |
10. | क्यूँकि यह कहता है, ‘सव लासव सव लासव, क़व लाक़व क़व लाक़व, थोड़ा सा इस तरफ़ थोड़ा सा उस तरफ़’।” |
11. | चुनाँचे अब अल्लाह हकलाते हुए होंटों और ग़ैरज़बानों की मारिफ़त इस क़ौम से बात करेगा। |
12. | गो उस ने उन से फ़रमाया था, “यह आराम की जगह है। थकेमान्दों को आराम दो, क्यूँकि यहीं वह सुकून पाएँगे।” लेकिन वह सुनने के लिए तय्यार नहीं थे। |
13. | इस लिए आइन्दा रब्ब उन से इन ही अल्फ़ाज़ से हमकलाम होगा, “सव लासव सव लासव, क़व लाक़व कव लाक़व, थोड़ा सा इस तरफ़, थोड़ा सा उस तरफ़।” क्यूँकि लाज़िम है कि वह चल कर ठोकर खाएँ, और धड़ाम से अपनी पुश्त पर गिर जाएँ, कि वह ज़ख़्मी हो जाएँ और फंदे में फंस कर गिरिफ़्तार हो जाएँ। |
14. | चुनाँचे अब रब्ब का कलाम सुन लो, ऐ मज़ाक़ उड़ाने वालो, जो यरूशलम में बसने वाली इस क़ौम पर हुकूमत करते हो। |
15. | तुम शेख़ी मार कर कहते हो, “हम ने मौत से अह्द बाँधा और पाताल से मुआहदा किया है। इस लिए जब सज़ा का सैलाब हम पर से गुज़रे तो हमें नुक़्सान नहीं पहुँचाएगा। क्यूँकि हम ने झूट में पनाह ली और धोके में छुप गए हैं।” |
16. | इस के जवाब में रब्ब क़ादिर-ए-मुतलक़ फ़रमाता है, “देखो, मैं सिय्यून में एक पत्थर रख देता हूँ, कोने का एक आज़्मूदा और क़ीमती पत्थर जो मज़्बूत बुन्याद पर लगा है। जो ईमान लाएगा वह कभी नहीं हिलेगा। |
17. | इन्साफ़ मेरा फ़ीता और रास्ती मेरी साहूल की डोरी होगी। इन से मैं सब कुछ परखूँगा। ओले उस झूट का सफ़ाया करेंगे जिस में तुम ने पनाह ली है, और सैलाब तेरी छुपने की जगह उड़ा कर अपने साथ बहा ले जाएगा। |
18. | तब तेरा मौत के साथ अह्द मन्सूख़ हो जाएगा, और तेरा पाताल के साथ मुआहदा क़ाइम नहीं रहेगा। सज़ा का सैलाब तुम पर से गुज़र कर तुम्हें पामाल करेगा। |
19. | वह सुब्ह-ब-सुब्ह और दिन रात गुज़रेगा, और जब भी गुज़रेगा तो तुम्हें अपने साथ बहा ले जाएगा। उस वक़्त लोग दह्शतज़दा हो कर कलाम का मतलब समझेंगे।” |
20. | चारपाई इतनी छोटी होगी कि तुम पाँओ फैला कर सो नहीं सकोगे। बिस्तर की चौड़ाई इतनी कम होगी कि तुम उसे लपेट कर आराम नहीं कर सकोगे। |
21. | क्यूँकि रब्ब उठ कर यूँ तुम पर झपट पड़ेगा जिस तरह पराज़ीम पहाड़ के पास फ़िलिस्तियों पर झपट पड़ा। जिस तरह वादी-ए-जिबऊन में अमोरियों पर टूट पड़ा उसी तरह वह तुम पर टूट पड़ेगा। और जो काम वह करेगा वह अजीब होगा, जो क़दम वह उठाएगा वह मामूल से हट कर होगा। |
22. | चुनाँचे अपनी तानाज़नी से बाज़ आओ, वर्ना तुम्हारी ज़न्जीरें मज़ीद ज़ोर से कस दी जाएँगी। क्यूँकि मुझे क़ादिर-ए-मुतलक़ रब्ब-उल-अफ़्वाज से पैग़ाम मिला है कि तमाम दुनिया की तबाही मुतअय्यिन है। |
23. | ग़ौर से मेरी बात सुनो! ध्यान से उस पर कान धरो जो मैं कह रहा हूँ! |
24. | जब किसान खेत को बीज बोने के लिए तय्यार करता है तो क्या वह पूरा दिन हल चलाता रहता है? क्या वह अपना पूरा वक़्त ज़मीन खोदने और ढेले तोड़ने में सर्फ़ करता है? |
25. | हरगिज़ नहीं! जब पूरे खेत की सतह हमवार और तय्यार है तो वह अपनी अपनी जगह पर सियाह ज़ीरा और सफ़ेद ज़ीरा, गन्दुम, बाजरा और जो का बीज बोता है। आख़िर में वह किनारे पर चारे का बीज बोता है। |
26. | किसान को ख़ूब मालूम है कि क्या क्या करना होता है, क्यूँकि उस के ख़ुदा ने उसे तालीम दे कर सहीह तरीक़ा सिखाया। |
27. | चुनाँचे सियाह ज़ीरा और सफ़ेद ज़ीरा को अनाज की तरह गाहा नहीं जाता। दाने निकालने के लिए उन पर वज़नी चीज़ नहीं चलाई जाती बल्कि उन्हें डंडे से मारा जाता है। |
28. | और क्या अनाज को गाह गाह कर पीसा जाता है? हरगिज़ नहीं! किसान उसे हद्द से ज़ियादा नहीं गाहता। गो उस के घोड़े कोई वज़नी चीज़ खैंचते हुए बालियों पर से गुज़रते हैं ताकि दाने निकलें ताहम किसान ध्यान देता है कि दाने पिस न जाएँ। |
29. | उसे यह इल्म भी रब्ब-उल-अफ़्वाज से मिला है जो ज़बरदस्त मश्वरों और कामिल हिक्मत का मम्बा है। |
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