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1. | उस दिन मुल्क-ए-यहूदाह में गीत गाया जाएगा, “हमारा शहर मज़्बूत है, क्यूँकि हम अल्लाह की नजात देने वाली चारदीवारी और पुश्तों से घिरे हुए हैं। |
2. | शहर के दरवाज़ों को खोलो ताकि रास्त क़ौम दाख़िल हो, वह क़ौम जो वफ़ादार रही है। |
3. | ऐ रब्ब, जिस का इरादा मज़्बूत है उसे तू मह्फ़ूज़ रखता है। उसे पूरी सलामती हासिल है, क्यूँकि वह तुझ पर भरोसा रखता है। |
4. | रब्ब पर अबद तक एतिमाद रखो! क्यूँकि रब्ब ख़ुदा अबदी चटान है। |
5. | वह बुलन्दियों पर रहने वालों को ज़ेर और ऊँचे शहर को नीचा करके ख़ाक में मिला देता है। |
6. | ज़रूरतमन्द और पस्तहाल उसे पाँओ तले कुचल देते हैं।” |
7. | ऐ अल्लाह, रास्तबाज़ की राह हमवार है, क्यूँकि तू उस का रास्ता चलने के क़ाबिल बना देता है। |
8. | ऐ रब्ब, हम तेरे इन्तिज़ार में रहते हैं, उस वक़्त भी जब तू हमारी अदालत करता है। हम तेरे नाम और तेरी तम्जीद के आर्ज़ूमन्द रहते हैं। |
9. | रात के वक़्त मेरी रूह तेरे लिए तड़पती, मेरा दिल तेरा तालिब रहता है। क्यूँकि दुनिया के बाशिन्दे उस वक़्त इन्साफ़ का मतलब सीखते हैं जब तू दुनिया की अदालत करता है। |
10. | अफ़्सोस, जब बेदीन पर रहम किया जाता है तो वह इन्साफ़ का मतलब नहीं सीखता बल्कि इन्साफ़ के मुल्क में भी ग़लत काम करने से बाज़ नहीं रहता, वहाँ भी रब्ब की अज़्मत का लिहाज़ नहीं करता। |
11. | ऐ रब्ब, गो तेरा हाथ उन्हें मारने के लिए उठा हुआ है तो भी वह ध्यान नहीं देते। लेकिन एक दिन उन की आँखें खुल जाएँगी, और वह तेरी अपनी क़ौम के लिए ग़ैरत को देख कर शर्मिन्दा हो जाएँगे। तब तू अपनी भस्म करने वाली आग उन पर नाज़िल करेगा। |
12. | ऐ रब्ब, तू हमें अम्न-ओ-अमान मुहय्या करता है बल्कि हमारी तमाम काम्याबियाँ तेरे ही हाथ से हासिल हुई हैं। |
13. | ऐ रब्ब हमारे ख़ुदा, गो तेरे सिवा दीगर मालिक हम पर हुकूमत करते आए हैं तो भी हम तेरे ही फ़ज़्ल से तेरे नाम को याद कर पाए। |
14. | अब यह लोग मर गए हैं और आइन्दा कभी ज़िन्दा नहीं होंगे, उन की रूहें कूच कर गई हैं और आइन्दा कभी वापस नहीं आएँगी । क्यूँकि तू ने उन्हें सज़ा दे कर हलाक कर दिया, उन का नाम-ओ-निशान मिटा डाला है। |
15. | ऐ रब्ब, तू ने अपनी क़ौम को फ़रोग़ दिया है। तू ने अपनी क़ौम को बड़ा बना कर अपने जलाल का इज़्हार किया है। तेरे हाथ से उस की सरहद्दें चारों तरफ़ बढ़ गई हैं। |
16. | ऐ रब्ब, वह मुसीबत में फंस कर तुझे तलाश करने लगे, तेरी तादीब के बाइस मंत्र फूँकने लगे। |
17. | ऐ रब्ब, तेरे हुज़ूर हम दर्द-ए-ज़ह में मुब्तला औरत की तरह तड़पते और चीख़ते चिल्लाते रहे। |
18. | जनने का दर्द मह्सूस करके हम पेच-ओ-ताब खा रहे थे। लेकिन अफ़्सोस, हवा ही पैदा हुई। न हम ने मुल्क को नजात दी, न दुनिया के नए बाशिन्दे पैदा हुए। |
19. | लेकिन तेरे मुर्दे दुबारा ज़िन्दा होंगे, उन की लाशें एक दिन जी उठेंगी। ऐ ख़ाक में बसने वालो, जाग उठो और ख़ुशी के नारे लगाओ! क्यूँकि तेरी ओस नूरों की शबनम है, और ज़मीन मुर्दा रूहों को जन्म देगी। |
20. | ऐ मेरी क़ौम, जा और थोड़ी देर के लिए अपने कमरों में छुप कर कुंडी लगा ले। जब तक रब्ब का ग़ज़ब ठंडा न हो वहाँ ठहरी रह। |
21. | क्यूँकि देख, रब्ब अपनी सुकूनतगाह से निकलने को है ताकि दुनिया के बाशिन्दों को सज़ा दे। तब ज़मीन अपने आप पर बहाया हुआ ख़ून फ़ाश करेगी और अपने मक़्तूलों को मज़ीद छुपाए नहीं रखेगी। |
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