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1. | ऐ रब्ब, तू मेरा ख़ुदा है, मैं तेरी ताज़ीम और तेरे नाम की तारीफ़ करूँगा। क्यूँकि तू ने बड़ी वफ़ादारी से अनोखा काम करके क़दीम ज़माने में बंधे हुए मन्सूबों को पूरा किया है। |
2. | तू ने शहर को मल्बे का ढेर बना कर हम्लों से मह्फ़ूज़ आबादी को खंडरात में तब्दील कर दिया। ग़ैरमुल्कियों का क़िलआबन्द महल यूँ ख़ाक में मिलाया गया कि आइन्दा कभी शहर नहीं कहलाएगा, कभी अज़ सर-ए-नौ तामीर नहीं होगा। |
3. | यह देख कर एक ज़ोरावर क़ौम तेरी ताज़ीम करेगी, ज़बरदस्त अक़्वाम के शहर तेरा ख़ौफ़ मानेंगे। |
4. | क्यूँकि तू पस्तहालों के लिए क़िलआ और मुसीबतज़दा ग़रीबों के लिए पनाहगाह साबित हुआ है। तेरी आड़ में इन्सान तूफ़ान और गर्मी की शिद्दत से मह्फ़ूज़ रहता है। गो ज़बरदस्तों की फूँकें बारिश की बौछाड़ |
5. | या रेगिस्तान में तपिश जैसी क्यूँ न हों, ताहम तू ग़ैरमुल्कियों की गरज को रोक देता है। जिस तरह बादल के साय से झुलसती गर्मी जाती रहती है, उसी तरह ज़बरदस्तों की शेख़ी को तू बन्द कर देता है। |
6. | यहीं कोह-ए-सिय्यून पर रब्ब-उल-अफ़्वाज तमाम अक़्वाम की ज़बरदस्त ज़ियाफ़त करेगा। बेहतरीन क़िस्म की क़दीम और साफ़-शफ़्फ़ाफ़ मै पी जाएगी, उम्दा और लज़ीज़तरीन खाना खाया जाएगा। |
7. | इसी पहाड़ पर वह तमाम उम्मतों पर का निक़ाब उतारेगा और तमाम अक़्वाम पर का पर्दा हटा देगा। |
8. | मौत इलाही फ़त्ह का लुक़्मा हो कर अबद तक नेस्त-ओ-नाबूद रहेगी। तब रब्ब क़ादिर-ए-मुतलक़ हर चिहरे के आँसू पोंछ कर तमाम दुनिया में से अपनी क़ौम की रुस्वाई दूर करेगा। रब्ब ही ने यह सब कुछ फ़रमाया है। |
9. | उस दिन लोग कहेंगे, “यही हमारा ख़ुदा है जिस की नजात के इन्तिज़ार में हम रहे। यही है रब्ब जिस से हम उम्मीद रखते रहे। आओ, हम शादियाना बजा कर उस की नजात की ख़ुशी मनाएँ।” |
10. | रब्ब का हाथ इस पहाड़ पर ठहरा रहेगा। लेकिन मोआब को वह यूँ रौंदेगा जिस तरह भूसा गोबर में मिलाने के लिए रौंदा जाता है। |
11. | और गो मोआब हाथ फैला कर उस में तैरने की कोशिश करे तो भी रब्ब उस का ग़रूर गोबर में दबाए रखेगा, चाहे वह कितनी महारत से हाथ-पाँओ मारने की कोशिश क्यूँ न करे। |
12. | ऐ मोआब, वह तेरी बुलन्द और क़िलआबन्द दीवारों को गिराएगा, उन्हें ढा कर ख़ाक में मिलाएगा। |
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