← Isaiah (21/66) → |
1. | दल्दल के इलाक़े के बारे में अल्लाह का फ़रमान : जिस तरह दश्त-ए-नजब में तूफ़ान के तेज़ झोंके बार बार आ पड़ते हैं उसी तरह आफ़त बियाबान से आएगी, दुश्मन दह्शतनाक मुल्क से आ कर तुझ पर टूट पड़ेगा। |
2. | रब्ब ने हौलनाक रोया में मुझ पर ज़ाहिर किया है कि नमकहराम और हलाकू हर्कत में आ गए हैं। ऐ ऐलाम चल, बाबल पर हम्ला कर! ऐ मादी उठ, शहर का मुहासरा कर! मैं होने दूँगा कि बाबल के मज़्लूमों की आहें बन्द हो जाएँगी। |
3. | इस लिए मेरी कमर शिद्दत से लरज़ने लगी है। दर्द-ए-ज़ह में मुब्तला औरत की सी घबराहट मेरी अंतड़ियों को मरोड़ रही है। जो कुछ मैं ने सुना है उस से मैं तड़प उठा हूँ, और जो कुछ मैं ने देखा है, उस से मैं हवासबाख़्ता हो गया हूँ। |
4. | मेरा दिल धड़क रहा है, कपकपी मुझ पर तारी हो गई है। पहले शाम का धुन्दल्का मुझे पियारा लगता था, लेकिन अब रोया को देख कर वह मेरे लिए दह्शत का बाइस बन गया है। |
5. | ताहम बाबल में लोग मेज़ लगा कर क़ालीन बिछा रहे हैं। बेपर्वाई से वह खाना खा रहे और मै पी रहे हैं। ऐ अफ़्सरो, उठो! अपनी ढालों पर तेल लगा कर लड़ने के लिए तय्यार हो जाओ! |
6. | रब्ब ने मुझे हुक्म दिया, “जा कर पहरेदार खड़ा कर दे जो तुझे हर नज़र आने वाली चीज़ की इत्तिला दे। |
7. | जूँ ही दो घोड़ों वाले रथ या गधों और ऊँटों पर सवार आदमी दिखाई दें तो ख़बरदार! पहरेदार पूरी तवज्जुह दे।” |
8. | तब पहरेदार शेरबबर की तरह पुकार उठा, “मेरे आक़ा, रोज़-ब-रोज़ मैं पूरी वफ़ादारी से अपनी बुर्जी पर खड़ा रहा हूँ, और रातों मैं तय्यार रह कर यहाँ पहरादारी करता आया हूँ। |
9. | अब वह देखो! दो घोड़ों वाला रथ आ रहा है जिस पर आदमी सवार है। अब वह जवाब में कह रहा है, ‘बाबल गिर गया, वह गिर गया है! उस के तमाम बुत चिकना-चूर हो कर ज़मीन पर बिखर गए हैं’।” |
10. | ऐ गाहने की जगह पर कुचली हुई मेरी क़ौम! जो कुछ इस्राईल के ख़ुदा, रब्ब-उल-अफ़्वाज ने मुझे फ़रमाया है उसे मैं ने तुम्हें सुना दिया है। |
11. | अदोम के बारे में रब्ब का फ़रमान : सईर के पहाड़ी इलाक़े से कोई मुझे आवाज़ देता है, “ऐ पहरेदार, सुब्ह होने में कितना वक़्त बाक़ी है? ऐ पहरेदार, सुब्ह होने में कितना वक़्त बाक़ी है?” |
12. | पहरेदार जवाब देता है, “सुब्ह होने वाली है, लेकिन रात भी। अगर आप मज़ीद पूछना चाहें तो दुबारा आ कर पूछ लें।” |
13. | मुल्क-ए-अरब के बारे में रब्ब का फ़रमान : ऐ ददानियों के क़ाफ़िलो, मुल्क-ए-अरब के जंगल में रात गुज़ारो। |
14. | ऐ मुल्क-ए-तैमा के बाशिन्दो, पानी ले कर पियासों से मिलने जाओ! पनाहगुज़ीनों के पास जा कर उन्हें रोटी खिलाओ! |
15. | क्यूँकि वह तल्वार से लेस दुश्मन से भाग रहे हैं, ऐसे लोगों से जो तल्वार थामे और कमान ताने उन से सख़्त लड़ाई लड़े हैं। |
16. | क्यूँकि रब्ब ने मुझ से फ़रमाया, “एक साल के अन्दर अन्दर क़ीदार की तमाम शान-ओ-शौकत ख़त्म हो जाएगी। |
17. | क़ीदार के ज़बरदस्त तीरअन्दाज़ों में से थोड़े ही बच पाएँगे।” यह रब्ब, इस्राईल के ख़ुदा का फ़रमान है। |
← Isaiah (21/66) → |