← Isaiah (20/66) → |
1. | एक दिन असूरी बादशाह सर्जून ने अपने कमाँडर को अश्दूद से लड़ने भेजा। जब असूरियों ने उस फ़िलिस्ती शहर पर हम्ला किया तो वह उन के क़ब्ज़े में आ गया। |
2. | तीन साल पहले रब्ब यसायाह बिन आमूस से हमकलाम हुआ था, “जा, टाट का जो लिबास तू पहने रहा है उतार। अपने जूतों को भी उतार।” नबी ने ऐसा ही किया और इसी हालत में फिरता रहा था। |
3. | जब अश्दूद असूरियों के क़ब्ज़े में आ गया तो रब्ब ने फ़रमाया, “मेरे ख़ादिम यसायाह को बरहना और नंगे पाँओ फिरते तीन साल हो गए हैं। इस से उस ने अलामती तौर पर इस की निशानदिही की है कि मिस्र और एथोपिया का क्या अन्जाम होगा। |
4. | शाह-ए-असूर मिस्री क़ैदियों और एथोपिया के जिलावतनों को इसी हालत में अपने आगे आगे हाँकेगा। नौजवान और बुज़ुर्ग सब बरहना और नंगे पाँओ फिरेंगे, वह कमर से ले कर पाँओ तक बरहना होंगे। मिस्र कितना शर्मिन्दा होगा। |
5. | यह देख कर फ़िलिस्ती दह्शत खाएँगे। उन्हें शर्म आएगी, क्यूँकि वह एथोपिया से उम्मीद रखते और अपने मिस्री इत्तिहादी पर फ़ख़र करते थे। |
6. | उस वक़्त इस साहिली इलाक़े के बाशिन्दे कहेंगे, ‘देखो उन लोगों की हालत जिन से हम उम्मीद रखते थे। उन ही के पास हम भाग कर आए ताकि मदद और असूरी बादशाह से छुटकारा मिल जाए। अगर उन के साथ ऐसा हुआ तो हम किस तरह बचेंगे’?” |
← Isaiah (20/66) → |