Isaiah (1/66) → |
1. | ज़ैल में वह रोयाएँ दर्ज हैं जो यसायाह बिन आमूस ने यहूदाह और यरूशलम के बारे में देखीं और जो उन सालों में मुन्कशिफ़ हुईं जब उज़्ज़ियाह, यूताम, आख़ज़ और हिज़क़ियाह यहूदाह के बादशाह थे। |
2. | ऐ आस्मान, मेरी बात सुन! ऐ ज़मीन, मेरे अल्फ़ाज़ पर कान धर! क्यूँकि रब्ब ने फ़रमाया है, “जिन बच्चों की पर्वरिश मैं ने की है और जो मेरे ज़ेर-ए-निगरानी पर्वान चढ़े हैं, उन्हों ने मुझ से रिश्ता तोड़ लिया है। |
3. | बैल अपने मालिक को जानता और गधा अपने आक़ा की चरनी को पहचानता है, लेकिन इस्राईल इतना नहीं जानता, मेरी क़ौम समझ से ख़ाली है।” |
4. | ऐ गुनाहगार क़ौम, तुझ पर अफ़्सोस! ऐ संगीन क़ुसूर में फंसी हुई उम्मत, तुझ पर अफ़्सोस! शरीर नसल, बदचलन बच्चे! उन्हों ने रब्ब को तर्क कर दिया है। हाँ, उन्हों ने इस्राईल के क़ुद्दूस को हक़ीर जान कर रद्द किया, अपना मुँह उस से फेर लिया है। |
5. | अब तुम्हें मज़ीद कहाँ पीटा जाए? तुम्हारी ज़िद तो मज़ीद बढ़ती जा रही है गो पूरा सर ज़ख़्मी और पूरा दिल बीमार है। |
6. | चाँद से ले कर तल्वे तक पूरा जिस्म मजरूह है, हर जगह चोटें, घाओ और ताज़ा ताज़ा ज़र्बें लगी हैं। और न उन्हें साफ़ किया गया, न उन की मर्हम-पट्टी की गई है। |
7. | तुम्हारा मुल्क वीरान-ओ-सुन्सान हो गया है, तुम्हारे शहर भस्म हो गए हैं। तुम्हारे देखते देखते परदेसी तुम्हारे खेतों को लूट रहे हैं, उन्हें यूँ उजाड़ रहे हैं जिस तरह परदेसी ही कर सकते हैं। |
8. | सिर्फ़ यरूशलम ही बाक़ी रह गया है, सिय्यून बेटी अंगूर के बाग़ में झोंपड़ी की तरह अकेली रह गई है। अब दुश्मन से घिरा हुआ यह शहर खीरे के खेत में लगे छप्पर की मानिन्द है। |
9. | अगर रब्ब-उल-अफ़्वाज हम में से चन्द एक को ज़िन्दा न छोड़ता तो हम सदूम की तरह मिट जाते, हमारा अमूरा की तरह सत्यानास हो जाता। |
10. | ऐ सदूम के सरदारो, रब्ब का फ़रमान सुन लो! ऐ अमूरा के लोगो, हमारे ख़ुदा की हिदायत पर ध्यान दो! |
11. | रब्ब फ़रमाता है, “अगर तुम बेशुमार क़ुर्बानियाँ पेश करो तो मुझे क्या? मैं तो भस्म होने वाले मेंढों और मोटे-ताज़े बछड़ों की चर्बी से उकता गया हूँ। बैलों, लेलों और बक्रों का जो ख़ून मुझे पेश किया जाता है वह मुझे पसन्द नहीं। |
12. | किस ने तुम से तक़ाज़ा किया कि मेरे हुज़ूर आते वक़्त मेरी बारगाहों को पाँओ तले रौंदो? |
13. | रुक जाओ! अपनी बेमानी क़ुर्बानियाँ मत पेश करो! तुम्हारे बख़ूर से मुझे घिन आती है। नए चाँद की ईद और सबत का दिन मत मनाओ, लोगों को इबादत के लिए जमा न करो! मैं तुम्हारे बेदीन इजतिमा बर्दाश्त ही नहीं कर सकता। |
14. | जब तुम नए चाँद की ईद और बाक़ी तक़्रीबात मनाते हो तो मेरे दिल में नफ़रत पैदा होती है। यह मेरे लिए भारी बोझ बन गई हैं जिन से मैं तंग आ गया हूँ। |
15. | बेशक अपने हाथों को दुआ के लिए उठाते जाओ, मैं ध्यान नहीं दूँगा। गो तुम बहुत ज़ियादा नमाज़ भी पढ़ो, मैं तुम्हारी नहीं सुनूँगा, क्यूँकि तुम्हारे हाथ ख़ूनआलूदा हैं। |
16. | पहले नहा कर अपने आप को पाक-साफ़ करो। अपनी शरीर हर्कतों से बाज़ आओ ताकि वह मुझे नज़र न आएँ। अपनी ग़लत राहों को छोड़ कर |
17. | नेक काम करना सीख लो। इन्साफ़ के तालिब रहो, मज़्लूमों का सहारा बनो, यतीमों का इन्साफ़ करो और बेवाओं के हक़ में लड़ो!” |
18. | रब्ब फ़रमाता है, “आओ हम अदालत में जा कर एक दूसरे से मुक़द्दमा लड़ें। अगर तुम्हारे गुनाहों का रंग क़िर्मिज़ी हो जाए तो क्या वह दुबारा बर्फ़ जैसे उजले हो जाएँगे? अगर उन का रंग अर्ग़वानी हो जाए तो क्या वह दुबारा ऊन जैसे सफ़ेद हो जाएँगे? |
19. | अगर तुम सुनने के लिए तय्यार हो तो मुल्क की बेहतरीन पैदावार से लुत्फ़अन्दोज़ होगे। |
20. | लेकिन अगर इन्कार करके सरकश हो जाओ तो तल्वार की ज़द में आ कर मर जाओगे। इस बात का यक़ीन करो, क्यूँकि रब्ब ने यह कुछ फ़रमाया है।” |
21. | यह कैसे हो गया है कि जो शहर पहले इतना वफ़ादार था वह अब कस्बी बन गया है? पहले यरूशलम इन्साफ़ से मामूर था, और रास्ती उस में सुकूनत करती थी। लेकिन अब हर तरफ़ क़ातिल ही क़ातिल हैं! |
22. | ऐ यरूशलम, तेरी ख़ालिस चाँदी ख़ाम चाँदी में बदल गई है, तेरी बेहतरीन मै में पानी मिलाया गया है। |
23. | तेरे बुज़ुर्ग हटधर्म और चोरों के यार हैं। यह रिश्वतखोर सब लोगों के पीछे पड़े रहते हैं ताकि चाय-पानी मिल जाए। न वह पर्वा करते हैं कि यतीमों को इन्साफ़ मिले, न बेवाओं की फ़र्याद उन तक पहुँचती है। |
24. | इस लिए क़ादिर-ए-मुतलक़ रब्ब-उल-अफ़्वाज जो इस्राईल का ज़बरदस्त सूर्मा है फ़रमाता है, “आओ, मैं अपने मुख़ालिफ़ों और दुश्मनों से इन्तिक़ाम ले कर सुकून पाऊँ। |
25. | मैं तेरे ख़िलाफ़ हाथ उठाऊँगा और ख़ाम चाँदी की तरह तुझे पोटाश के साथ पिघला कर तमाम मैल से पाक-साफ़ कर दूँगा। |
26. | मैं तुझे दुबारा क़दीम ज़माने के से क़ाज़ी और इबतिदा के से मुशीर अता करूँगा। फिर यरूशलम दुबारा दार-उल-इन्साफ़ और वफ़ादार शहर कहलाएगा।” |
27. | अल्लाह सिय्यून की अदालत करके उस का फ़िद्या देगा, जो उस में तौबा करेंगे उन का वह इन्साफ़ करके उन्हें छुड़ाएगा। |
28. | लेकिन बाग़ी और गुनाहगार सब के सब पाश पाश हो जाएँगे, रब्ब को तर्क करने वाले हलाक हो जाएँगे। |
29. | बलूत के जिन दरख़्तों की पूजा से तुम लुत्फ़अन्दोज़ होते हो उन के बाइस तुम शर्मसार होगे, और जिन बाग़ों को तुम ने अपनी बुतपरस्ती के लिए चुन लिया है उन के बाइस तुम्हें शर्म आएगी। |
30. | तुम उस बलूत के दरख़्त की मानिन्द होगे जिस के पत्ते मुरझा गए हों, तुम्हारी हालत उस बाग़ की सी होगी जिस में पानी नायाब हो। |
31. | ज़बरदस्त आदमी फूस और उस की ग़लत हर्कतें चिंगारी जैसी होंगी। दोनों मिल कर यूँ भड़क उठेंगे कि कोई भी बुझा नहीं सकेगा। |
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