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1. | अब इन्सानों में से चुने गए इमाम-ए-आज़म को इस लिए मुक़र्रर किया जाता है कि वह उन की ख़ातिर अल्लाह की ख़िदमत करे, ताकि वह गुनाहों के लिए नज़राने और क़ुर्बानियाँ पेश करे। |
2. | वह जाहिल और आवारा लोगों के साथ नर्म सुलूक रख सकता है, क्यूँकि वह ख़ुद कई तरह की कमज़ोरियों की गिरिफ़्त में होता है। |
3. | यही वजह है कि उसे न सिर्फ़ क़ौम के गुनाहों के लिए बल्कि अपने गुनाहों के लिए भी क़ुर्बानियाँ चढ़ानी पड़ती हैं। |
4. | और कोई अपनी मर्ज़ी से इमाम-ए-आज़म का पुरवक़ार उह्दा नहीं अपना सकता बल्कि लाज़िम है कि अल्लाह उसे हारून की तरह बुला कर मुक़र्रर करे। |
5. | इसी तरह मसीह ने भी अपनी मर्ज़ी से इमाम-ए-आज़म का पुरवक़ार उह्दा नहीं अपनाया। इस के बजाय अल्लाह ने उस से कहा, “तू मेरा फ़र्ज़न्द है, आज मैं तेरा बाप बन गया हूँ।” |
6. | कहीं और वह फ़रमाता है, “तू अबद तक इमाम है, ऐसा इमाम जैसा मलिक-ए-सिद्क़ था।” |
7. | जब ईसा इस दुनिया में था तो उस ने ज़ोर ज़ोर से पुकार कर और आँसू बहा बहा कर उसे दुआएँ और इल्तिजाएँ पेश कीं जो उसे मौत से बचा सकता था। और अल्लाह ने उस की सुनी, क्यूँकि वह ख़ुदा का ख़ौफ़ रखता था। |
8. | वह अल्लाह का फ़र्ज़न्द तो था, तो भी उस ने दुख उठाने से फ़रमाँबरदारी सीखी। |
9. | जब वह कामिलियत तक पहुँच गया तो वह उन सब की अबदी नजात का सरचश्मा बन गया जो उस की सुनते हैं। |
10. | उस वक़्त अल्लाह ने उसे इमाम-ए-आज़म भी मुतअय्यिन किया, ऐसा इमाम जैसा मलिक-ए-सिद्क़ था। |
11. | इस के बारे में हम मज़ीद बहुत कुछ कह सकते हैं, लेकिन हम मुश्किल से इस की तश्रीह कर सकते हैं, क्यूँकि आप सुनने में सुस्त हैं। |
12. | असल में इतना वक़्त गुज़र गया है कि अब आप को ख़ुद उस्ताद होना चाहिए। अफ़्सोस कि ऐसा नहीं है बल्कि आप को इस की ज़रूरत है कि कोई आप के पास आ कर आप को अल्लाह के कलाम की बुन्यादी सच्चाइयाँ दुबारा सिखाए। आप अब तक ठोस खाना नहीं खा सकते बल्कि आप को दूध की ज़रूरत है। |
13. | जो दूध ही पी सकता है वह अभी छोटा बच्चा ही है और वह रास्तबाज़ी की तालीम से नावाक़िफ़ है। |
14. | इस के मुक़ाबले में ठोस खाना बालिग़ों के लिए है जिन्हों ने अपनी बलूग़त के बाइस अपनी रुहानी बसारत को इतनी तर्बियत दी है कि वह भलाई और बुराई में इमतियाज़ कर सकते हैं। |
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