Hebrews (10/13)  

1. मूसवी शरीअत आने वाली अच्छी और असली चीज़ों की सिर्फ़ नक़ली सूरत और साया है। यह उन चीज़ों की असली शक्ल नहीं है। इस लिए यह उन्हें कभी भी कामिल नहीं कर सकती जो साल-ब-साल और बार बार अल्लाह के हुज़ूर आ कर वही क़ुर्बानियाँ पेश करते रहते हैं।
2. अगर वह कामिल कर सकती तो क़ुर्बानियाँ पेश करने की ज़रूरत न रहती। क्यूँकि इस सूरत में परस्तार एक बार सदा के लिए पाक-साफ़ हो जाते और उन्हें गुनाहगार होने का शऊर न रहता।
3. लेकिन इस के बजाय यह क़ुर्बानियाँ साल-ब-साल लोगों को उन के गुनाहों की याद दिलाती हैं।
4. क्यूँकि मुम्किन ही नहीं कि बैल-बक्रों का ख़ून गुनाहों को दूर करे।
5. इस लिए मसीह दुनिया में आते वक़्त अल्लाह से कहता है, “तू क़ुर्बानियाँ और नज़रें नहीं चाहता था लेकिन तू ने मेरे लिए एक जिस्म तय्यार किया।
6. भस्म होने वाली क़ुर्बानियाँ और गुनाह की क़ुर्बानियाँ तुझे पसन्द नहीं थीं।
7. फिर मैं बोल उठा, ‘ऐ ख़ुदा, मैं हाज़िर हूँ ताकि तेरी मर्ज़ी पूरी करूँ, जिस तरह मेरे बारे में कलाम-ए-मुक़द्दस में लिखा है’।”
8. पहले मसीह कहता है, “न तू क़ुर्बानियाँ, नज़रें, भस्म होने वाली क़ुर्बानियाँ या गुनाह की क़ुर्बानियाँ चाहता था, न उन्हें पसन्द करता था” गो शरीअत इन्हें पेश करने का मुतालबा करती है।
9. फिर वह फ़रमाता है, “मैं हाज़िर हूँ ताकि तेरी मर्ज़ी पूरी करूँ।” यूँ वह पहला निज़ाम ख़त्म करके उस की जगह दूसरा निज़ाम क़ाइम करता है।
10. और उस की मर्ज़ी पूरी हो जाने से हमें ईसा मसीह के बदन के वसीले से मख़्सूस-ओ-मुक़द्दस किया गया है। क्यूँकि उसे एक ही बार सदा के लिए हमारे लिए क़ुर्बान किया गया।
11. हर इमाम रोज़-ब-रोज़ मक़्दिस में खड़ा अपनी ख़िदमत के फ़राइज़ अदा करता है। रोज़ाना और बार बार वह वही क़ुर्बानियाँ पेश करता रहता है जो कभी भी गुनाहों को दूर नहीं कर सकतीं।
12. लेकिन मसीह ने गुनाहों को दूर करने के लिए एक ही क़ुर्बानी पेश की, एक ऐसी क़ुर्बानी जिस का असर सदा के लिए रहेगा। फिर वह अल्लाह के दहने हाथ बैठ गया।
13. वहीं वह अब इन्तिज़ार करता है जब तक अल्लाह उस के दुश्मनों को उस के पाँओ की चौकी न बना दे।
14. यूँ उस ने एक ही क़ुर्बानी से उन्हें सदा के लिए कामिल बना दिया है जिन्हें मुक़द्दस किया जा रहा है।
15. रूह-उल-क़ुद्स भी हमें इस के बारे में गवाही देता है। पहले वह कहता है,
16. “रब्ब फ़रमाता है कि जो नया अह्द मैं उन दिनों के बाद उन से बाँधूँगा उस के तहत मैं अपनी शरीअत उन के दिलों में डाल कर उन के ज़हनों पर कन्दा करूँगा।”
17. फिर वह कहता है, “उस वक़्त से मैं उन के गुनाहों और बुराइयों को याद नहीं करूँगा।”
18. और जहाँ इन गुनाहों की मुआफ़ी हुई है वहाँ गुनाहों को दूर करने की क़ुर्बानियों की ज़रूरत ही नहीं रही।
19. चुनाँचे भाइयो, अब हम ईसा के ख़ून के वसीले से पूरे एतिमाद के साथ मुक़द्दसतरीन कमरे में दाख़िल हो सकते हैं।
20. अपने बदन की क़ुर्बानी से ईसा ने उस कमरे के पर्दे में से गुज़रने का एक नया और ज़िन्दगीबख़्श रास्ता खोल दिया।
21. हमारा एक अज़ीम इमाम-ए-आज़म है जो अल्लाह के घर पर मुक़र्रर है।
22. इस लिए आएँ, हम ख़ुलूसदिली और ईमान के पूरे एतिमाद के साथ अल्लाह के हुज़ूर आएँ। क्यूँकि हमारे दिलों पर मसीह का ख़ून छिड़का गया है ताकि हमारे मुज्रिम ज़मीर साफ़ हो जाएँ। नीज़, हमारे बदनों को पाक-साफ़ पानी से धोया गया है।
23. आएँ, हम मज़्बूती से उस उम्मीद को थामे रखें जिस का इक़्रार हम करते हैं। हम डाँवाँडोल न हो जाएँ, क्यूँकि जिस ने इस उम्मीद का वादा किया है वह वफ़ादार है।
24. और आएँ, हम इस पर ध्यान दें कि हम एक दूसरे को किस तरह मुहब्बत दिखाने और नेक काम करने पर उभार सकें।
25. हम बाहम जमा होने से बाज़ न आएँ, जिस तरह बाज़ की आदत बन गई है। इस के बजाय हम एक दूसरे की हौसलाअफ़्ज़ाई करें, ख़ासकर यह बात मद्द-ए-नज़र रख कर कि ख़ुदावन्द का दिन क़रीब आ रहा है।
26. ख़बरदार! अगर हम सच्चाई जान लेने के बाद भी जान-बूझ कर गुनाह करते रहें तो मसीह की क़ुर्बानी इन गुनाहों को दूर नहीं कर सकेगी।
27. फिर सिर्फ़ अल्लाह की अदालत की हौलनाक तवक़्क़ो बाक़ी रहेगी, उस भड़कती हुई आग की जो अल्लाह के मुख़ालिफ़ों को भस्म कर डालेगी।
28. जो मूसा की शरीअत रद्द करता है उस पर रहम नहीं किया जा सकता बल्कि अगर दो या इस से ज़ाइद लोग इस जुर्म की गवाही दें तो उसे सज़ा-ए-मौत दी जाए।
29. तो फिर क्या ख़याल है, वह कितनी सख़्त सज़ा के लाइक़ होगा जिस ने अल्लाह के फ़र्ज़न्द को पाँओ तले रौंदा? जिस ने अह्द का वह ख़ून हक़ीर जाना जिस से उसे मख़्सूस-ओ-मुक़द्दस किया गया था? और जिस ने फ़ज़्ल के रूह की बेइज़्ज़ती की?
30. क्यूँकि हम उसे जानते हैं जिस ने फ़रमाया, “इन्तिक़ाम लेना मेरा ही काम है, मैं ही बदला लूँगा।” उस ने यह भी कहा, “रब्ब अपनी क़ौम का इन्साफ़ करेगा।”
31. यह एक हौलनाक बात है अगर ज़िन्दा ख़ुदा हमें सज़ा देने के लिए पकड़े।
32. ईमान के पहले दिन याद करें जब अल्लाह ने आप को रौशन कर दिया था। उस वक़्त के सख़्त मुक़ाबले में आप को कई तरह का दुख सहना पड़ा, लेकिन आप साबितक़दम रहे।
33. कभी कभी आप की बेइज़्ज़ती और अवाम के सामने ही ईज़ारसानी होती थी, कभी कभी आप उन के साथी थे जिन से ऐसा सुलूक हो रहा था।
34. जिन्हें जेल में डाला गया आप उन के दुख में शरीक हुए और जब आप का माल-ओ-मता लूटा गया तो आप ने यह बात ख़ुशी से बर्दाश्त की। क्यूँकि आप जानते थे कि वह माल हम से नहीं छीन लिया गया जो पहले की निस्बत कहीं बेहतर है और हर सूरत में क़ाइम रहेगा।
35. चुनाँचे अपने इस एतिमाद को हाथ से जाने न दें क्यूँकि इस का बड़ा अज्र मिलेगा।
36. लेकिन इस के लिए आप को साबितक़दमी की ज़रूरत है ताकि आप अल्लाह की मर्ज़ी पूरी कर सकें और यूँ आप को वह कुछ मिल जाए जिस का वादा उस ने किया है।
37. क्यूँकि कलाम-ए-मुक़द्दस यह फ़रमाता है, “थोड़ी ही देर बाक़ी है तो आने वाला पहुँचेगा, वह देर नहीं करेगा।
38. लेकिन मेरा रास्तबाज़ ईमान ही से जीता रहेगा, और अगर वह पीछे हट जाए तो मैं उस से ख़ुश नहीं हूँगा।”
39. लेकिन हम उन में से नहीं हैं जो पीछे हट कर तबाह हो जाएँगे बल्कि हम उन में से हैं जो ईमान रख कर नजात पाते हैं।

  Hebrews (10/13)