Habakkuk (1/3)  

1. ज़ैल में वह कलाम क़लमबन्द है जो हबक़्क़ूक़ नबी को रोया देख कर मिला।
2. ऐ रब्ब, मैं मज़ीद कब तक मदद के लिए पुकारूँ? अब तक तू ने मेरी नहीं सुनी। मैं मज़ीद कब तक चीख़ें मार मार कर कहूँ कि फ़साद हो रहा है? अब तक तू ने हमें छुटकारा नहीं दिया।
3. तू क्यूँ होने देता है कि मुझे इतनी नाइन्साफ़ी देखनी पड़े? लोगों को इतना नुक़्सान पहुँचाया जा रहा है, लेकिन तू ख़ामोशी से सब कुछ देखता रहता है। जहाँ भी मैं नज़र डालूँ, वहाँ ज़ुल्म-ओ-तशद्दुद ही नज़र आता है, मुक़द्दमाबाज़ी और झगड़े सर उठाते हैं।
4. नतीजे में शरीअत बेअसर हो गई है, और बा-इन्साफ़ फ़ैसले कभी जारी नहीं होते। बेदीनों ने रास्तबाज़ों को घेर लिया है, इस लिए अदालत में बेहूदा फ़ैसले किए जाते हैं।
5. “दीगर अक़्वाम पर निगाह डालो, हाँ उन पर ध्यान दो तो हक्का-बक्का रह जाओगे। क्यूँकि मैं तुम्हारे जीते जी एक ऐसा काम करूँगा जिस की जब ख़बर सुनोगे तो तुम्हें यक़ीन नहीं आएगा।
6. मैं बाबलियों को खड़ा करूँगा। यह ज़ालिम और तल्ख़रू क़ौम पूरी दुनिया को उबूर करके दूसरे ममालिक पर क़ब्ज़ा करेगी।
7. लोग उस से सख़्त दह्शत खाएँगे, हर तरफ़ उसी के क़वानीन और अज़्मत माननी पड़ेगी।
8. उन के घोड़े चीतों से तेज़ हैं, और शाम के वक़्त शिकार करने वाले भेड़ीए भी उन जैसे फुरतीले नहीं होते। वह सरपट दौड़ कर दूर दूर से आते हैं। जिस तरह उक़ाब लाश पर झपट्टा मारता है उसी तरह वह अपने शिकार पर हम्ला करते हैं।
9. सब इसी मक़्सद से आते हैं कि ज़ुल्म-ओ-तशद्दुद करें। जहाँ भी जाएँ वहाँ आगे बढ़ते जाते हैं। रेत जैसे बेशुमार क़ैदी उन के हाथ में जमा होते हैं।
10. वह दीगर बादशाहों का मज़ाक़ उड़ाते हैं, और दूसरों के बुज़ुर्ग उन के तमस्ख़ुर का निशाना बन जाते हैं। हर क़िलए को देख कर वह हंस उठते हैं। जल्द ही वह उन की दीवारों के साथ मिट्टी के ढेर लगा कर उन पर क़ब्ज़ा करते हैं।
11. फिर वह तेज़ हवा की तरह वहाँ से गुज़र कर आगे बढ़ जाते हैं। लेकिन वह क़ुसूरवार ठहरेंगे, क्यूँकि उन की अपनी ताक़त उन का ख़ुदा है।”
12. ऐ रब्ब, क्या तू क़दीम ज़माने से ही मेरा ख़ुदा, मेरा क़ुद्दूस नहीं है? हम नहीं मरेंगे। ऐ रब्ब, तू ने उन्हें सज़ा देने के लिए मुक़र्रर किया है। ऐ चटान, तेरी मर्ज़ी है कि वह हमारी तर्बियत करें।
13. तेरी आँखें बिलकुल पाक हैं, इस लिए तू बुरा काम बर्दाश्त नहीं कर सकता, तू ख़ामोशी से ज़ुल्म-ओ-तशद्दुद पर नज़र नहीं डाल सकता। तो फिर तू इन बेवफ़ाओं की हर्कतों को किस तरह बर्दाश्त करता है? जब बेदीन उसे हड़प कर लेता जो उस से कहीं ज़ियादा रास्तबाज़ है तो तू ख़ामोश क्यूँ रहता है?
14. तू ने होने दिया है कि इन्सान से मछलियों का सा सुलूक किया जाए, कि उसे उन समुन्दरी जानवरों की तरह पकड़ा जाए, जिन का कोई मालिक नहीं।
15. दुश्मन उन सब को काँटे के ज़रीए पानी से निकाल लेता है, अपना जाल डाल कर उन्हें पकड़ लेता है। जब उन का बड़ा ढेर जमा हो जाता है तो वह ख़ुश हो कर शादियाना बजाता है।
16. तब वह अपने जाल के सामने बख़ूर जला कर उसे जानवर क़ुर्बान करता है। क्यूँकि उसी के वसीले से वह ऐश-ओ-इश्रत की ज़िन्दगी गुज़ार सकता है।
17. क्या वह मुसल्सल अपना जाल डालता और क़ौमों को बेरहमी से मौत के घाट उतारता रहे?

      Habakkuk (1/3)