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1. | कुछ देर के बाद यूसुफ़ को इत्तिला दी गई कि आप का बाप बीमार है। वह अपने दो बेटों मनस्सी और इफ़्राईम को साथ ले कर याक़ूब से मिलने गया। |
2. | याक़ूब को बताया गया, “आप का बेटा आ गया है” तो वह अपने आप को सँभाल कर अपने बिस्तर पर बैठ गया। |
3. | उस ने यूसुफ़ से कहा, “जब मैं कनआनी शहर लूज़ में था तो अल्लाह क़ादिर-ए-मुतलक़ मुझ पर ज़ाहिर हुआ। उस ने मुझे बर्कत दे कर |
4. | कहा, ‘मैं तुझे फलने फूलने दूँगा और तेरी औलाद बढ़ा दूँगा बल्कि तुझ से बहुत सी क़ौमें निकलने दूँगा। और मैं तेरी औलाद को यह मुल्क हमेशा के लिए दे दूँगा।’ |
5. | अब मेरी बात सुन। मैं चाहता हूँ कि तेरे बेटे जो मेरे आने से पहले मिस्र में पैदा हुए मेरे बेटे हों। इफ़्राईम और मनस्सी रूबिन और शमाऊन के बराबर ही मेरे बेटे हों। |
6. | अगर इन के बाद तेरे हाँ और बेटे पैदा हो जाएँ तो वह मेरे बेटे नहीं बल्कि तेरे ठहरेंगे। जो मीरास वह पाएँगे वह उन्हें इफ़्राईम और मनस्सी की मीरास में से मिलेगी। |
7. | मैं यह तेरी माँ राख़िल के सबब से कर रहा हूँ जो मसोपुतामिया से वापसी के वक़्त कनआन में इफ़्राता के क़रीब मर गई। मैं ने उसे वहीं रास्ते में दफ़न किया” (आज इफ़्राता को बैत-लहम कहा जाता है)। |
8. | फिर याक़ूब ने यूसुफ़ के बेटों पर नज़र डाल कर पूछा, “यह कौन हैं?” |
9. | यूसुफ़ ने जवाब दिया, “यह मेरे बेटे हैं जो अल्लाह ने मुझे यहाँ मिस्र में दिए।” याक़ूब ने कहा, “उन्हें मेरे क़रीब ले आ ताकि मैं उन्हें बर्कत दूँ।” |
10. | बूढ़ा होने के सबब से याक़ूब की आँखें कमज़ोर थीं। वह अच्छी तरह देख नहीं सकता था। यूसुफ़ अपने बेटों को याक़ूब के पास ले आया तो उस ने उन्हें बोसा दे कर गले लगाया |
11. | और यूसुफ़ से कहा, “मुझे तवक़्क़ो ही नहीं थी कि मैं कभी तेरा चिहरा देखूँगा, और अब अल्लाह ने मुझे तेरे बेटों को देखने का मौक़ा भी दिया है।” |
12. | फिर यूसुफ़ उन्हें याक़ूब की गोद में से ले कर ख़ुद उस के सामने मुँह के बल झुक गया। |
13. | यूसुफ़ ने इफ़्राईम को याक़ूब के बाएँ हाथ रखा और मनस्सी को उस के दाएँ हाथ। |
14. | लेकिन याक़ूब ने अपना दहना हाथ बाईं तरफ़ बढ़ा कर इफ़्राईम के सर पर रखा अगरचि वह छोटा था। इस तरह उस ने अपना बायाँ हाथ दाईं तरफ़ बढ़ा कर मनस्सी के सर पर रखा जो बड़ा था। |
15. | फिर उस ने यूसुफ़ को उस के बेटों की मारिफ़त बर्कत दी, “अल्लाह जिस के हुज़ूर मेरे बापदादा इब्राहीम और इस्हाक़ चलते रहे और जो शुरू से आज तक मेरा चरवाहा रहा है इन्हें बर्कत दे। |
16. | जिस फ़रिश्ते ने इवज़ाना दे कर मुझे हर नुक़्सान से बचाया है वह इन्हें बर्कत दे। अल्लाह करे कि इन में मेरा नाम और मेरे बापदादा इब्राहीम और इस्हाक़ के नाम जीते रहें। दुनिया में इन की औलाद की तादाद बहुत बढ़ जाए।” |
17. | जब यूसुफ़ ने देखा कि बाप ने अपना दहना हाथ छोटे बेटे इफ़्राईम के सर पर रखा है तो यह उसे बुरा लगा, इस लिए उस ने बाप का हाथ पकड़ा ताकि उसे इफ़्राईम के सर पर से उठा कर मनस्सी के सर पर रखे। |
18. | उस ने कहा, “अब्बू, ऐसे नहीं। दूसरा लड़का बड़ा है। उसी पर अपना दहना हाथ रखें।” |
19. | लेकिन बाप ने इन्कार करके कहा, “मुझे पता है बेटा, मुझे पता है। वह भी एक बड़ी क़ौम बनेगा। फिर भी उस का छोटा भाई उस से बड़ा होगा और उस से क़ौमों की बड़ी तादाद निकलेगी।” |
20. | उस दिन उस ने दोनों बेटों को बर्कत दे कर कहा, “इस्राईली तुम्हारा नाम ले कर बर्कत दिया करेंगे। जब वह बर्कत देंगे तो कहेंगे, ‘अल्लाह आप के साथ वैसा करे जैसा उस ने इफ़्राईम और मनस्सी के साथ किया है’।” इस तरह याक़ूब ने इफ़्राईम को मनस्सी से बड़ा बना दिया। |
21. | यूसुफ़ से उस ने कहा, “मैं तो मरने वाला हूँ, लेकिन अल्लाह तुम्हारे साथ होगा और तुम्हें तुम्हारे बापदादा के मुल्क में वापस ले जाएगा। |
22. | एक बात में मैं तुझे तेरे भाइयों पर तर्जीह देता हूँ, मैं तुझे कनआन में वह क़ितआ देता हूँ जो मैं ने अपनी तल्वार और कमान से अमोरियों से छीना था।” |
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