Genesis (44/50)  

1. यूसुफ़ ने घर पर मुक़र्रर मुलाज़िम को हुक्म दिया, “उन मर्दों की बोरियाँ ख़ुराक से इतनी भर देना जितनी वह उठा कर ले जा सकें। हर एक के पैसे उस की अपनी बोरी के मुँह में रख देना।
2. सब से छोटे भाई की बोरी में न सिर्फ़ पैसे बल्कि मेरे चाँदी के पियाले को भी रख देना।” मुलाज़िम ने ऐसा ही किया।
3. अगली सुब्ह जब पौ फटने लगी तो भाइयों को उन के गधों समेत रुख़्सत कर दिया गया।
4. वह अभी शहर से निकल कर दूर नहीं गए थे कि यूसुफ़ ने अपने घर पर मुक़र्रर मुलाज़िम से कहा, “जल्दी करो। उन आदमियों का ताक़्क़ुब करो। उन के पास पहुँच कर यह पूछना, ‘आप ने हमारी भलाई के जवाब में ग़लत काम क्यूँ किया है?
5. आप ने मेरे मालिक का चाँदी का पियाला क्यूँ चुराया है? उस से वह न सिर्फ़ पीते हैं बल्कि उसे ग़ैबदानी के लिए भी इस्तेमाल करते हैं। आप एक निहायत संगीन जुर्म के मुर्तक़िब हुए हैं’।”
6. जब मुलाज़िम भाइयों के पास पहुँचा तो उस ने उन से यही बातें कीं।
7. जवाब में उन्हों ने कहा, “हमारे मालिक ऐसी बातें क्यूँ करते हैं? कभी नहीं हो सकता कि आप के ख़ादिम ऐसा करें।
8. आप तो जानते हैं कि हम मुल्क-ए-कनआन से वह पैसे वापस ले आए जो हमारी बोरियों में थे। तो फिर हम क्यूँ आप के मालिक के घर से चाँदी या सोना चुराएँगे?
9. अगर वह आप के ख़ादिमों में से किसी के पास मिल जाए तो उसे मार डाला जाए और बाक़ी सब आप के ग़ुलाम बनें।”
10. मुलाज़िम ने कहा, “ठीक है ऐसा ही होगा। लेकिन सिर्फ़ वही मेरा ग़ुलाम बनेगा जिस ने पियाला चुराया है। बाक़ी सब आज़ाद हैं।”
11. उन्हों ने जल्दी से अपनी बोरियाँ उतार कर ज़मीन पर रख दीं। हर एक ने अपनी बोरी खोल दी।
12. मुलाज़िम बोरियों की तलाशी लेने लगा। वह बड़े भाई से शुरू करके आख़िरकार सब से छोटे भाई तक पहुँच गया। और वहाँ बिन्यमीन की बोरी में से पियाला निकला।
13. भाइयों ने यह देख कर परेशानी में अपने लिबास फाड़ लिए। वह अपने गधों को दुबारा लाद कर शहर वापस आ गए।
14. जब यहूदाह और उस के भाई यूसुफ़ के घर पहुँचे तो वह अभी वहीं था। वह उस के सामने मुँह के बल गिर गए।
15. यूसुफ़ ने कहा, “यह तुम ने क्या किया है? क्या तुम नहीं जानते कि मुझ जैसा आदमी ग़ैब का इल्म रखता है?”
16. यहूदाह ने कहा, “जनाब-ए-आली, हम क्या कहें? अब हम अपने दिफ़ा में क्या कहें? अल्लाह ही ने हमें क़ुसूरवार ठहराया है। अब हम सब आप के ग़ुलाम हैं, न सिर्फ़ वह जिस के पास से पियाला मिल गया।”
17. यूसुफ़ ने कहा, “अल्लाह न करे कि मैं ऐसा करूँ, बल्कि सिर्फ़ वही मेरा ग़ुलाम होगा जिस के पास पियाला था। बाक़ी सब सलामती से अपने बाप के पास वापस चले जाएँ।”
18. लेकिन यहूदाह ने यूसुफ़ के क़रीब आ कर कहा, “मेरे मालिक, मेहरबानी करके अपने बन्दे को एक बात करने की इजाज़त दें। मुझ पर ग़ुस्सा न करें अगरचि आप मिस्र के बादशाह जैसे हैं।
19. जनाब-ए-आली, आप ने हम से पूछा, ‘क्या तुम्हारा बाप या कोई और भाई है?’
20. हम ने जवाब दिया, ‘हमारा बाप है। वह बूढ़ा है। हमारा एक छोटा भाई भी है जो उस वक़्त पैदा हुआ जब हमारा बाप उम्ररसीदा था। उस लड़के का भाई मर चुका है। उस की माँ के सिर्फ़ यह दो बेटे पैदा हुए। अब वह अकेला ही रह गया है। उस का बाप उसे शिद्दत से पियार करता है।’
21. जनाब-ए-आली, आप ने हमें बताया, ‘उसे यहाँ ले आओ ताकि मैं ख़ुद उसे देख सकूँ।’
22. हम ने जवाब दिया, ‘यह लड़का अपने बाप को छोड़ नहीं सकता, वर्ना उस का बाप मर जाएगा।’
23. फिर आप ने कहा, ‘तुम सिर्फ़ इस सूरत में मेरे पास आ सकोगे कि तुम्हारा सब से छोटा भाई तुम्हारे साथ हो।’
24. जब हम अपने बाप के पास वापस पहुँचे तो हम ने उन्हें सब कुछ बताया जो आप ने कहा था।
25. फिर उन्हों ने हम से कहा, ‘मिस्र लौट कर कुछ ग़ल्ला ख़रीद लाओ।’
26. हम ने जवाब दिया, ‘हम जा नहीं सकते। हम सिर्फ़ इस सूरत में उस मर्द के पास जा सकते हैं कि हमारा सब से छोटा भाई साथ हो। हम तब ही जा सकते हैं जब वह भी हमारे साथ चले।’
27. हमारे बाप ने हम से कहा, ‘तुम जानते हो कि मेरी बीवी राख़िल से मेरे दो बेटे पैदा हुए।
28. पहला मुझे छोड़ चुका है। किसी जंगली जानवर ने उसे फाड़ खाया होगा, क्यूँकि उसी वक़्त से मैं ने उसे नहीं देखा।
29. अगर इस को भी मुझ से ले जाने की वजह से जानी नुक़्सान पहुँचे तो तुम मुझ बूढ़े को ग़म के मारे पाताल में पहुँचाओगे’।”
30. यहूदाह ने अपनी बात जारी रखी, “जनाब-ए-आली, अब अगर मैं अपने बाप के पास जाऊँ और वह देखें कि लड़का मेरे साथ नहीं है तो वह दम तोड़ देंगे। उन की ज़िन्दगी इस क़दर लड़के की ज़िन्दगी पर मुन्हसिर है और वह इतने बूढ़े हैं कि हम ऐसी हर्कत से उन्हें क़ब्र तक पहुँचा देंगे।
31. यहूदाह ने अपनी बात जारी रखी, “जनाब-ए-आली, अब अगर मैं अपने बाप के पास जाऊँ और वह देखें कि लड़का मेरे साथ नहीं है तो वह दम तोड़ देंगे। उन की ज़िन्दगी इस क़दर लड़के की ज़िन्दगी पर मुन्हसिर है और वह इतने बूढ़े हैं कि हम ऐसी हर्कत से उन्हें क़ब्र तक पहुँचा देंगे।
32. न सिर्फ़ यह बल्कि मैं ने बाप से कहा, ‘मैं ख़ुद इस का ज़ामिन हूँगा। अगर मैं इसे सलामती से वापस न पहुँचाऊँ तो फिर मैं ज़िन्दगी के आख़िर तक क़ुसूरवार ठहरूँगा।’
33. अब अपने ख़ादिम की गुज़ारिश सुनें। मैं यहाँ रह कर इस लड़के की जगह ग़ुलाम बन जाता हूँ, और वह दूसरे भाइयों के साथ वापस चला जाए
34. अगर लड़का मेरे साथ न हुआ तो मैं किस तरह अपने बाप को मुँह दिखा सकता हूँ? मैं बर्दाश्त नहीं कर सकूँगा कि वह इस मुसीबत में मुब्तला हो जाएँ।”

  Genesis (44/50)