← Genesis (34/50) → |
1. | एक दिन याक़ूब और लियाह की बेटी दीना कनआनी औरतों से मिलने के लिए घर से निकली। |
2. | शहर में एक आदमी बनाम सिकम रहता था। उस का वालिद हमोर उस इलाक़े का हुक्मरान था और हिव्वी क़ौम से ताल्लुक़ रखता था। जब सिकम ने दीना को देखा तो उस ने उसे पकड़ कर उस की इस्मतदरी की। |
3. | लेकिन उस का दिल दीना से लग गया। वह उस से मुहब्बत करने लगा और पियार से उस से बातें करता रहा। |
4. | उस ने अपने बाप से कहा, “इस लड़की के साथ मेरी शादी करा दें।” |
5. | जब याक़ूब ने अपनी बेटी की इस्मतदरी की ख़बर सुनी तो उस के बेटे मवेशियों के साथ खुले मैदान में थे। इस लिए वह उन के वापस आने तक ख़ामोश रहा। |
6. | सिकम का बाप हमोर शहर से निकल कर याक़ूब से बात करने के लिए आया। |
7. | जब याक़ूब के बेटों को दीना की इस्मतदरी की ख़बर मिली तो उन के दिल रंजिश और ग़ुस्से से भर गए कि सिकम ने याक़ूब की बेटी की इस्मतदरी से इस्राईल की इतनी बेइज़्ज़ती की है। वह सीधे खुले मैदान से वापस आए। |
8. | हमोर ने याक़ूब से कहा, “मेरे बेटे का दिल आप की बेटी से लग गया है। मेहरबानी करके उस की शादी मेरे बेटे के साथ कर दें। |
9. | हमारे साथ रिश्ता बाँधें, हमारे बेटे-बेटियों के साथ शादियाँ कराएँ। |
10. | फिर आप हमारे साथ इस मुल्क में रह सकेंगे और पूरा मुल्क आप के लिए खुला होगा। आप जहाँ भी चाहें आबाद हो सकेंगे, तिजारत कर सकेंगे और ज़मीन ख़रीद सकेंगे।” |
11. | सिकम ने ख़ुद भी दीना के बाप और भाइयों से मिन्नत की, “अगर मेरी यह दरख़्वास्त मन्ज़ूर हो तो मैं जो कुछ आप कहेंगे अदा कर दूँगा। |
12. | जितना भी महर और तुह्फ़े आप मुक़र्रर करें मैं दे दूँगा। सिर्फ़ मेरी यह ख़्वाहिश पूरी करें कि यह लड़की मेरे अक़द में आ जाए।” |
13. | लेकिन दीना की इस्मतदरी के सबब से याक़ूब के बेटों ने सिकम और उस के बाप हमोर से चालाकी करके |
14. | कहा, “हम ऐसा नहीं कर सकते। हम अपनी बहन की शादी किसी ऐसे आदमी से नहीं करा सकते जिस का ख़तना नहीं हुआ। इस से हमारी बेइज़्ज़ती होती है। |
15. | हम सिर्फ़ इस शर्त पर राज़ी होंगे कि आप अपने तमाम लड़कों और मर्दों का ख़तना करवाने से हमारी मानिन्द हो जाएँ। |
16. | फिर आप के बेटे-बेटियों के साथ हमारी शादियाँ हो सकेंगी और हम आप के साथ एक क़ौम बन जाएँगे। |
17. | लेकिन अगर आप ख़तना कराने के लिए तय्यार नहीं हैं तो हम अपनी बहन को ले कर चले जाएँगे।” |
18. | यह बातें हमोर और उस के बेटे सिकम को अच्छी लगीं। |
19. | नौजवान सिकम ने फ़ौरन उन पर अमल किया, क्यूँकि वह दीना को बहुत पसन्द करता था। सिकम अपने ख़ान्दान में सब से मुअज़्ज़ज़ था। |
20. | हमोर अपने बेटे सिकम के साथ शहर के दरवाज़े पर गया जहाँ शहर के फ़ैसले किए जाते थे। वहाँ उन्हों ने बाक़ी शहरियों से बात की। |
21. | “यह आदमी हम से झगड़ने वाले नहीं हैं, इस लिए क्यूँ न वह इस मुल्क में हमारे साथ रहें और हमारे दर्मियान तिजारत करें? हमारे मुल्क में उन के लिए भी काफ़ी जगह है। आओ, हम उन की बेटियों और बेटों से शादियाँ करें। |
22. | लेकिन यह आदमी सिर्फ़ इस शर्त पर हमारे दर्मियान रहने और एक ही क़ौम बनने के लिए तय्यार हैं कि हम उन की तरह अपने तमाम लड़कों और मर्दों का ख़तना कराएँ। |
23. | अगर हम ऐसा करें तो उन के तमाम मवेशी और सारा माल हमारा ही होगा। चुनाँचे आओ, हम मुत्तफ़िक़ हो कर फ़ैसला कर लें ताकि वह हमारे दर्मियान रहें।” |
24. | सिकम के शहरी हमोर और सिकम के मश्वरे पर राज़ी हुए। तमाम लड़कों और मर्दों का ख़तना कराया गया। |
25. | तीन दिन के बाद जब ख़तने के सबब से लोगों की हालत बुरी थी तो दीना के दो भाई शमाऊन और लावी अपनी तल्वारें ले कर शहर में दाख़िल हुए। किसी को शक तक नहीं था कि क्या कुछ होगा। अन्दर जा कर उन्हों ने बच्चों से ले कर बूढ़ों तक तमाम मर्दों को क़त्ल कर दिया |
26. | जिन में हमोर और उस का बेटा सिकम भी शामिल थे। फिर वह दीना को सिकम के घर से ले कर चले गए। |
27. | इस क़त्ल-ए-आम के बाद याक़ूब के बाक़ी बेटे शहर पर टूट पड़े और उसे लूट लिया। यूँ उन्हों ने अपनी बहन की इस्मतदरी का बदला लिया। |
28. | वह भेड़-बक्रियाँ, गाय-बैल, गधे और शहर के अन्दर और बाहर का सब कुछ ले कर चलते बने। |
29. | उन्हों ने सारे माल पर क़ब्ज़ा किया, औरतों और बच्चों को क़ैदी बना लिया और तमाम घरों का सामान भी ले गए। |
30. | फिर याक़ूब ने शमाऊन और लावी से कहा, “तुम ने मुझे मुसीबत में डाल दिया है। अब कनआनी, फ़रिज़्ज़ी और मुल्क के बाक़ी बाशिन्दों में मेरी बदनामी हुई है। मेरे साथ कम आदमी हैं। अगर दूसरे मिल कर हम पर हम्ला करें तो हमारे पूरे ख़ान्दान का सत्यानास हो जाएगा।” |
31. | लेकिन उन्हों ने कहा, “क्या यह ठीक था कि उस ने हमारी बहन के साथ कस्बी का सा सुलूक किया?” |
← Genesis (34/50) → |