Genesis (23/50)  

1. सारा 127 साल की उम्र में हब्रून में इन्तिक़ाल कर गई।
2. उस ज़माने में हब्रून का नाम क़िर्यत-अर्बा था, और वह मुल्क-ए-कनआन में था। इब्राहीम ने उस के पास आ कर मातम किया।
3. फिर वह जनाज़े के पास से उठा और हित्तियों से बात की। उस ने कहा,
4. “मैं आप के दर्मियान परदेसी और ग़ैरशहरी की हैसियत से रहता हूँ। मुझे क़ब्र के लिए ज़मीन बेचें ताकि अपनी बीवी को अपने घर से ले जा कर दफ़न कर सकूँ।”
5. हित्तियों ने जवाब दिया, “हमारे आक़ा, हमारी बात सुनें! आप हमारे दर्मियान अल्लाह के रईस हैं। अपनी बीवी को हमारी बेहतरीन क़ब्र में दफ़न करें। हम में से कोई नहीं जो आप से अपनी क़ब्र का इन्कार करेगा।”
6. हित्तियों ने जवाब दिया, “हमारे आक़ा, हमारी बात सुनें! आप हमारे दर्मियान अल्लाह के रईस हैं। अपनी बीवी को हमारी बेहतरीन क़ब्र में दफ़न करें। हम में से कोई नहीं जो आप से अपनी क़ब्र का इन्कार करेगा।”
7. इब्राहीम उठा और मुल्क के बाशिन्दों यानी हित्तियों के सामने ताज़ीमन झुक गया।
8. उस ने कहा, “अगर आप इस के लिए तय्यार हैं कि मैं अपनी बीवी को अपने घर से ले जा कर दफ़न करूँतो सुहर के बेटे इफ़्रोन से मेरी सिफ़ारिश करें
9. कि वह मुझे मक्फ़ीला का ग़ार बेच दे। वह उस का है और उस के खेत के किनारे पर है। मैं उस की पूरी क़ीमत देने के लिए तय्यार हूँ ताकि आप के दर्मियान रहते हुए मेरे पास क़ब्र भी हो।”
10. इफ़्रोन हित्तियों की जमाअत में मौजूद था। इब्राहीम की दरख़्वास्त पर उस ने उन तमाम हित्तियों के सामने जो शहर के दरवाज़े पर जमा थे जवाब दिया,
11. “नहीं, मेरे आक़ा! मेरी बात सुनें। मैं आप को यह खेत और उस में मौजूद ग़ार दे देता हूँ। सब जो हाज़िर हैं मेरे गवाह हैं, मैं यह आप को देता हूँ। अपनी बीवी को वहाँ दफ़न कर दें।”
12. इब्राहीम दुबारा मुल्क के बाशिन्दों के सामने अदबन झुक गया।
13. उस ने सब के सामने इफ़्रोन से कहा, “मेहरबानी करके मेरी बात पर ग़ौर करें। मैं खेत की पूरी क़ीमत अदा करूँगा। उसे क़बूल करें ताकि वहाँ अपनी बीवी को दफ़न कर सकूँ।”
14. इफ़्रोन ने जवाब दिया, “मेरे आक़ा, सुनें। इस ज़मीन की क़ीमत सिर्फ़ 400 चाँदी के सिक्के है। आप के और मेरे दर्मियान यह क्या है? अपनी बीवी को दफ़न कर दें।”
15. इफ़्रोन ने जवाब दिया, “मेरे आक़ा, सुनें। इस ज़मीन की क़ीमत सिर्फ़ 400 चाँदी के सिक्के है। आप के और मेरे दर्मियान यह क्या है? अपनी बीवी को दफ़न कर दें।”
16. इब्राहीम ने इफ़्रोन की मतलूबा क़ीमत मान ली और सब के सामने चाँदी के 400 सिक्के तोल कर इफ़्रोन को दे दिए। इस के लिए उस ने उस वक़्त के राइज बाट इस्तेमाल किए।
17. चुनाँचे मक्फ़ीला में इफ़्रोन की ज़मीन इब्राहीम की मिल्कियत हो गई। यह ज़मीन मम्रे के मशरिक़ में थी। उस में खेत, खेत का ग़ार और खेत की हुदूद में मौजूद तमाम दरख़्त शामिल थे।
18. हित्तियों की पूरी जमाअत ने जो शहर के दरवाज़े पर जमा थी ज़मीन के इन्तिक़ाल की तस्दीक़ की।
19. फिर इब्राहीम ने अपनी बीवी सारा को मुल्क-ए-कनआन के उस ग़ार में दफ़न किया जो मम्रे यानी हब्रून के मशरिक़ में वाक़े मक्फ़ीला के खेत में था।
20. इस तरीक़े से यह खेत और उस का ग़ार हित्तियों से इब्राहीम के नाम पर मुन्तक़िल कर दिया गया ताकि उस के पास क़ब्र हो।

  Genesis (23/50)