← Galatians (5/6) → |
1. | मसीह ने हमें आज़ाद रहने के लिए ही आज़ाद किया है। तो अब क़ाइम रहें और दुबारा अपने गले में ग़ुलामी का जूआ डालने न दें। |
2. | सुनें! मैं पौलुस आप को बताता हूँ कि अगर आप अपना ख़तना करवाएँ तो आप को मसीह का कोई फ़ाइदा नहीं होगा। |
3. | मैं एक बार फिर इस बात की तस्दीक़ करता हूँ कि जिस ने भी अपना ख़तना करवाया उस का फ़र्ज़ है कि वह पूरी शरीअत की पैरवी करे। |
4. | आप जो शरीअत की पैरवी करने से रास्तबाज़ बनना चाहते हैं आप का मसीह के साथ कोई वास्ता न रहा। हाँ, आप अल्लाह के फ़ज़्ल से दूर हो गए हैं। |
5. | लेकिन हमें एक फ़र्क़ उम्मीद दिलाई गई है। उम्मीद यह है कि ख़ुदा ही हमें रास्तबाज़ क़रार देता है। चुनाँचे हम रूह-उल-क़ुद्स के बाइस ईमान रख कर इसी रास्तबाज़ी के लिए तड़पते रहते हैं। |
6. | क्यूँकि जब हम मसीह ईसा में होते हैं तो ख़तना करवाने या न करवाने से कोई फ़र्क़ नहीं पड़ता। फ़र्क़ सिर्फ़ उस ईमान से पड़ता है जो मुहब्बत करने से ज़ाहिर होता है। |
7. | आप ईमान की दौड़ में अच्छी तरक़्क़ी कर रहे थे! तो फिर किस ने आप को सच्चाई की पैरवी करने से रोक लिया? |
8. | किस ने आप को उभारा? अल्लाह तो नहीं था जो आप को बुलाता है। |
9. | देखें, थोड़ा सा ख़मीर तमाम गुंधे हुए आटे को ख़मीर कर देता है। |
10. | मुझे ख़ुदावन्द में आप पर इतना एतिमाद है कि आप यही सोच रखते हैं। जो भी आप में अफ़्रा-तफ़्री पैदा कर रहा है उसे सज़ा मिलेगी। |
11. | भाइयो, जहाँ तक मेरा ताल्लुक़ है, अगर मैं यह पैग़ाम देता कि अब तक ख़तना करवाने की ज़रूरत है तो मेरी ईज़ारसानी क्यूँ हो रही होती? अगर ऐसा होता तो लोग मसीह के मस्लूब होने के बारे में सुन कर ठोकर न खाते। |
12. | बेहतर है कि आप को परेशान करने वाले न सिर्फ़ अपना ख़तना करवाएँ बल्कि खोजे बन जाएँ। |
13. | भाइयो, आप को आज़ाद होने के लिए बुलाया गया है। लेकिन ख़बरदार रहें कि इस आज़ादी से आप की गुनाहआलूदा फ़ित्रत को अमल में आने का मौक़ा न मिले। इस के बजाय मुहब्बत की रूह में एक दूसरे की ख़िदमत करें। |
14. | क्यूँकि पूरी शरीअत एक ही हुक्म में समाई हुई है, “अपने पड़ोसी से वैसी मुहब्बत रखना जैसी तू अपने आप से रखता है।” |
15. | अगर आप एक दूसरे को काटते और फाड़ते हैं तो ख़बरदार! ऐसा न हो कि आप एक दूसरे को ख़त्म करके सब के सब तबाह हो जाएँ। |
16. | मैं तो यह कहता हूँ कि रूह-उल-क़ुद्स में ज़िन्दगी गुज़ारें। फिर आप अपनी पुरानी फ़ित्रत की ख़्वाहिशात पूरी नहीं करेंगे। |
17. | क्यूँकि जो कुछ हमारी पुरानी फ़ित्रत चाहती है वह उस के ख़िलाफ़ है जो रूह चाहता है, और जो कुछ रूह चाहता है वह उस के ख़िलाफ़ है जो हमारी पुरानी फ़ित्रत चाहती है। यह दोनों एक दूसरे के दुश्मन हैं, इस लिए आप वह कुछ नहीं कर पाते जो आप करना चाहते हैं। |
18. | लेकिन जब रूह-उल-क़ुद्स आप की राहनुमाई करता है तो आप शरीअत के ताबे नहीं होते। |
19. | जो काम पुरानी फ़ित्रत करती है वह साफ़ ज़ाहिर होता है। मसलन ज़िनाकारी, नापाकी, अय्याशी, |
20. | बुतपरस्ती, जादूगरी, दुश्मनी, झगड़ा, हसद, ग़ुस्सा, ख़ुदग़रज़ी, अनबन, पार्टीबाज़ी, |
21. | जलन, नशाबाज़ी, रंगरलियाँ वग़ैरा। मैं पहले भी आप को आगाह कर चुका हूँ, लेकिन अब एक बार फिर कहता हूँ कि जो इस तरह की ज़िन्दगी गुज़ारते हैं वह अल्लाह की बादशाही मीरास में नहीं पाएँगे। |
22. | रूह-उल-क़ुद्स का फल फ़र्क़ है। वह मुहब्बत, ख़ुशी, सुलह-सलामती, सब्र, मेहरबानी, नेकी, वफ़ादारी, |
23. | नर्मी और ज़ब्त-ए-नफ़्स पैदा करता है। शरीअत ऐसी चीज़ों के ख़िलाफ़ नहीं होती। |
24. | और जो मसीह ईसा के हैं उन्हों ने अपनी पुरानी फ़ित्रत को उस की रग़बतों और बुरी ख़्वाहिशों समेत मस्लूब कर दिया है। |
25. | चूँकि हम रूह में ज़िन्दगी गुज़ारते हैं इस लिए आएँ, हम क़दम-ब-क़दम उस के मुताबिक़ चलते भी रहें। |
26. | न हम मग़रूर हूँ, न एक दूसरे को मुश्तइल करें या एक दूसरे से हसद करें। |
← Galatians (5/6) → |